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मीरा कुमार पर हमले ने 'पुरानी' सुषमा स्वराज की याद दिला दी

सुषमा एक अहम नेता हैं, उन्हें किसी दूसरी जिम्मेदारी के लिए गंवाया नहीं जा सकता.

Sanjay Singh

सुषमा स्वराज ने शनिवार को 'लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार (तत्कालीन) नेता प्रतिपक्ष के साथ ऐसा सलूक करती थीं' ट्वीट करते हुए 2013 के बजट सत्र के दौरान के 6.23 मिनट के वीडियो के साथ-साथ एक अखबार की चार साल पुरानी खबर पोस्ट करके आत्म संयमन की अपनी नीति को अलविदा कह दिया कि उन्हें बतौर विदेश मंत्री घरेलू राजनीतिक मुद्दों पर अपनी विचारों को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए.

सुषमा ने इसी संदर्भ में दी पॉयनियर अखबार की पुरानी रिपोर्ट की लिंक भी पोस्ट कर दी जिसकी हेडलाइन थी 'स्पीकर ने सुषमा स्वराज के छह मिनट के भाषण के दौरान 60 बार टोका-टाकी की'.


सुषमा और मीरा के संबंध

सुषमा ये तर्क दे सकती हैं कि चुनावों के वक्त पूरा माहौल बदल जाता है जहां कार्यपालिका की जिम्मेदारी निभा रही शीर्ष राजनीतिक हस्ती भी अपनी सरकारी हैसियत की परवाह किये बगैर पार्टी प्रचारक की भूमिका निभाने लगती है और राष्ट्रपति का चुनाव भी इस मामले में कोई अपवाद नहीं है.

जिन्होंने संसद की रिपोर्टिंग की है वे 15वीं लोकसभा के दौरान नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और लोकसभा की स्पीकर के बीच के निरंतर अदावतों के गवाह रहे हैं. उनके बीच कभी मधुर संबंध नहीं रहे.

सुषमा एक दमदार वक्ता और सशक्त सांसद रही हैं. ये एक अलग मसला है कि मई 2014 में मोदी सरकार में सुषमा स्वराज के विदेश मंत्री बनने के बाद राष्ट्र उनके जोरदार भाषण सुनने से वंचित रह गया है जिसके लिए वो मशहूर रही हैं. हालांकि वो एक कुशल विदेश मंत्री साबित हुई हैं लेकिन उन्होंने सार्वजनिक जीवन में जानबूझकर लो प्रोफाइल बरकरार रखी है.

संसद में अपने मंत्रालय से जुड़े विषयों पर उन्होंने अपनी बात विस्तार के साथ रखी लेकिन ऐसे मौके कम ही आए. उन्होंने शब्दों के साथ किफायत बरती और ये नीति अपनाई- ट्वीट ज्यादा, बोलना कम.

अपने इस ट्वीट के जरिये सुषमा ने विस्मृत होते जा रहे अपने कुशल वक्तृत्व क्षमता की याद दिला दी कि वो नेता प्रतिपक्ष के रूप में कैसे यूपीए पर उसकी गलतियों के लिए जोरदार प्रहार किया करती थीं. ये ट्वीट पोस्ट करते हुए सुषमा ने ना सिर्फ स्पीकर के रूप में मीरा कुमार के पक्षपाती तेवर को हाइलाइट किया बल्कि तथाकथित एकजुट विपक्ष के राष्ट्रपति के उम्मीदवार पर वार करके बतौर बीजेपी नेता अपने दायित्वों को भी निभाया.

द पॉयनियर में छपी रिपोर्ट उन्हीं के दावों की पुष्टि करती है।

इत्तेफाक ये है कि यह ट्वीट उस दिन पोस्ट हुआ जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में भारतीयों के साथ बातचीत में एक मंत्री के रूप में उनकी क्षमताओं की जमकर तारीफ कर रहे थे जिन्होंने विदेशी धरती पर संकट में फंसे भारतीय मूल के लोगों को राहत देने के लिए सोशल मीडिया खासकर ट्विटर का सर्वोत्तम इस्तेमाल किया.

सुषमा रात में दो बजे भी विदेश में रह रहे संकट में फंसे भारतीय के ट्वीट पर कार्रवाई करतीं और ये सुनिश्चित करने का प्रयास करतीं कि विदेशी धरती पर उस व्यक्ति के पास सहायता 20 घंटे के अंदर पहुंच जाये. ये इस बात का संकेत है कि ये जनोपयोगी सरकार है और ये सुशासन का प्रमाण है. मोदी ने ये भी कहा कि विदेश मंत्रालय एक समय में सिर्फ कोट पैंट और टाई पहनने वाले लोगों की ही चिंता करता था लेकिन अब ये विदेशी धरती पर रहने वाले सर्वाधिक गरीब भारतीयों से भी जुड़ गया है.

सुषमा ने मोदी के भाषण के इस हिस्से को भी पोस्ट किया.

कुछ हलकों में सुषमा का नाम राष्ट्रपति के बीजेपी के संभावित उम्मीदवारों के रूप में भी लिया जा रहा था. लेकिन ये सम्मान एक अनजाने दलित नेता रामनाथ कोविंद को हासिल हो गया, जो बिहार के राज्यपाल पद पर थे. सुषमा सर्वाधिक वरिष्ठ मंत्रियों में से एक हैं और उन्हें इस बात का अफसोस भी नहीं होगा कि वो देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद को हासिल करने का मौका चूक गईं.

सुषमा और उनके समर्थक मोदी की तारीफ को उनके कामकाज के तौर तरीके का पुरस्कार के तौर पर लेंगे. बताते हैं कि एक समय मई 2014 में मोदी और सुषमा के बीच रिश्तों की शुरूआत विश्वासहीनता की स्थिति के साथ हुई थी.

उपराष्ट्रपति के लिए सुषमा?

राष्ट्रपति पद पर बीजेपी के उम्मीदवार के एलान के पहले सुषमा का नाम कुछ और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ लिया जा रहा था जो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के दावेदार थे क्योंकि जुलाई-अगस्त में इन दोनों पदों को भरा जाना था. राष्ट्रपति के नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. जब नये राष्ट्रपति 25 जुलाई को कार्यभार ग्रहण करेंगे तब उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का मसला सामने आएगा.

सुषमा उपराष्ट्रपति पद के दावेदारों में से एक होंगी. उपराष्ट्रपति राज्य सभा का सभापति भी होता है. सुषमा राज्य सभा में रही हैं और विपक्षी नेताओं एनडीए के घटक दलों के साथ उनके अच्छे कामकाजी संबंध रहे हैं.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन के वक्त मोदी और अमित शाह राज्यसभा के सुगम और कुशल संचालन की उसकी योग्यता को भी ध्यान में रखेंगे. मोदी सरकार के पास कार्यकाल के सिर्फ दो साल बचे हैं और ये महत्वपूर्ण है कि ऊपरी सदन का कामकाज बगैर किसी बाधा के चले और प्रमुख कानून बिना किसी व्यवधान के पारित हो सकें.

यहां ये सवाल उठना लाजिमी है कि सुषमा के प्रति मोदी की अगाध प्रशंसा का मतलब आखिर क्या है. इसको लेकर अटकलबाजियां जारी हैं- पहला ये कि सुषमा विदेशी मंत्री के रूप में बहुत उपयोगी हैं और उन्हें किसी दूसरी जिम्मेदारी के लिए गंवाया नहीं जा सकता और दूसरा ये कि वो एक स्मार्ट नेता हैं जो सौंपी जाने वाली नयी चुनौतियों के लिए खुद को तैयार कर सकती हैं.