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मुख्यमंत्री येदियुरप्पा बहुमत कब साबित करेंगे, ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही तय हो पाएगा ?

रात भर चले सियासी ड्रामे के बीच आखिरकार बी एस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी बार शपथ ले ली है.

Amitesh

रात भर चले सियासी ड्रामे के बीच आखिरकार बी एस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी बार शपथ ले ली है. लेकिन, सदन के भीतर बहुमत कब साबित होगा इसको लेकर संशय बना हुआ है. खुद येदियुरप्पा ने कहा कि कल या उसके अगले दिन इस बारे में बताया जाएगा.

येदियुरप्पा का बहुमत साबित करने के लिए कल के बाद अपने पत्ते खोलने का समय यह दिखा रहा है कि उनकी नजरें भी सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई हैं. कल सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जो भी फैसला आएगा उस पर कर्नाटक की कहानी और आगे की राजनीति निर्भर करेगी.


इसके पहले देर रात चली सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद कोर्ट ने साफ कर दिया कि कर्नाटक में बी एस येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह को नहीं रोका जाएगा. कांग्रेस और बीजेपी दोनों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में देर रात बहस चलती रही. अब येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण के बाद अगले दिन यानी शुक्रवार 18 मई को सुबह साढ़े दस बजे सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर आगे सुनवाई होगी.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बीजेपी से अपने समर्थक विधायकों की सूची भी मांगी है. दरअसल, कांग्रेस और जेडीएस की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि हमारे पास बहुमत का आंकड़ा है, लेकिन, अब कोर्ट ने येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण के बाद बीजेपी और उसके समर्थक विधायकों की सूची तलब किया है.

सुप्रीम कोर्ट के इस कदम के बाद बीजेपी खेमे में भी खलबली है. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, उसके अपने 104 विधायकों की सूची तैयार है. लेकिन, असल कहानी शुरू होगी बाकी आठ विधायकों की सूची को लेकर. क्या बीजेपी बाकी आठ विधायकों की सूची भी कोर्ट को सौंपेगी. एक निर्दलीय, एक केपीजेपी के विधायक के साथ बीजेपी संपर्क में है. कोशिश बीएसपी के एकमात्र विधायक को भी साथ लाने की है. लेकिन, बाकी दूसरे विधायकों को लेकर पार्टी का क्या रुख होगा.

बीजेपी के सूत्र बहुमत का दावा भी कर रहे हैं. उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि सदन के भीतर कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायक उनका साथ देंगे. लेकिन, अगर उन विधायकों के नाम को कोर्ट के सामने बीजेपी रखती है, तो इससे दो तरह की परेशानी हो सकती है. पहला सुप्रीम कोर्ट यह सवाल खड़ा कर सकता है कि दूसरे दलों के विधायकों के पाला बदल कर साथ आना क्या गैर-कानूनी नहीं है. क्या यह दलबदल विरोधी कानून के दायरे में नहीं आता है ? दूसरी परेशानी है कि अगर कोर्ट के सामने बीजेपी 112 विधायकों के समर्थन की सूची रखती है तो फिर उस परिस्थिति में कांग्रेस और जेडीएस के नेता इन विधायकों को लेकर और सतर्क हो जाएंगे.

लेकिन, बीजेपी अगर 112 विधायकों के समर्थन की सूची कोर्ट के सामने नहीं रखती है तो उस परिस्थिति में राज्यपाल द्वारा सबसे पहले बीजेपी को सरकार बनाने के न्योते पर भी सवाल खड़ा हो सकता है.

इन सारी संभावनाओं पर बीजेपी के भीतर मंथन चल रहा है. रणनीति बनाई जा रही है. बी एस येदियुरप्पा का बयान उसी रणनीति को दिखाता है जिसमें वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बहुमत साबित करने की तारीख बताने की बात कर रहे हैं.

क्या है बीजेपी की रणनीति ?

बीजेपी फिलहाल अपनी पहली बाजी जीत गई है. लेकिन, अब उसकी असली लड़ाई शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अगर सदन के भीतर जल्द बहुमत साबित करने को कहा गया तो उसको लेकर पार्टी अभी से ही रणनीति बना रही है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अगर सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिन के बजाए जल्द बहुमत साबित करने को कहा तो उसको लेकर रणनीति पर मंथन हो रहा है. पहले भी कई मौकों पर कोर्ट ने ऐसा फैसला दिया है.

कैसे जुटेगा बहुमत का आंकड़ा ?

बीजेपी का दावा है कि उसके पास बहुमत है. बीजेपी के अपने 104 विधायक हैं. इसके अलावा उसने एक निर्दलीय विधायक और केपीजेपी के एक विधायक के समर्थन लेने की कोशिश की है. अगर इन दोनों का समर्थन बीजेपी को मिल जाता है तो उसका आंकड़ा 106 हो जाएगा.

इसके अलावा बीएसपी के एक विधायक पर भी बीजेपी की नजर है. बीजेपी के रणनीतिकार उसे भी अपने साथ लेने की कोशिश कर रहे हैं. अगर बीजेपी की रणनीति सफल भी हो जाती है तो आंकड़ा 107 ही पहुंच पाएगा, जो कि बहुमत से पांच कम रहने वाला है.

बीजेपी की नजर अब कांग्रेस के ऐसे सात विधायकों पर है जो कि जेडीएस को समर्थन देने से नाराज बताए जा रहे हैं. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की नजर इन सात विधायकों पर है. ये विधायक लिंगायत समुदाय से आते हैं, जो कि लिंगायत मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा को समर्थन दे सकते हैं या फिर बहुमत साबित करने के वक्त सदन से गैर हाजिर रहकर भी बीजेपी को फायदा पहुंचा सकते हैं.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, अगर ये सात विधायक गैर हाजिर हुए तो बहुमत का आंकड़ा घटकर 108 तक आ जाएगा, जिसे बीजेपी आसानी से हासिल कर सकती है. इसके अलावा जेडीएस के भी कुछ विधायक ऐसे हैं जो बीजेपी के संपर्क में बताए जा रहे हैं.

कल कांग्रेस विधायक दल की बैठक में तीन विधायक नहीं पहुंच पाए थे. कांग्रेस विधायक राजशेखर पाटिल, नरेंद्र और अनंत सिंह तीनों गैर हाजिर रहे थे. इन्हें रेड्डी बंधुओं का करीबी बताया जाता है. उधर, जेडीएस विधायक दल की बैठक में भी राजा वेंकटप्पा औ वेंकट राव नादागौड़ा नहीं पहुंचे थे. इन सभी पांचों विधायकों को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं. बीजेपी सूत्रों का दावा है कि इन पांचों विधायकों के अलावा भी और कई विधायक साथ आ सकते हैं.

हालांकि बीजेपी सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस और जेडीएस के लगभग दर्जन भर विधायक उसके संपर्क में हैं. बीजेपी ने जो रणनीति बनाई है उसके मुताबिक, पाला बदलने वाले विधायकों को मंत्री पद दिया जा सकता है. लेकिन, उनकी सदस्यता जाने की सूरत में उनके लिए दो विकल्प रखे जा रहे हैं. पहला वो खुद या अपने किसी रिश्तेदार को विधानसभा का चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ा दें या फिर एक महीने बाद यानी जून में ही होने वाले विधान परिषद के चुनाव में बीजेपी की तरफ से एमएलसी बना दिए जाएं. इस तरह उनका मंत्रीपद भी बरकरार रह सकता है.

विपक्ष का खरीद-फरोख्त का आरोप

कांग्रेस और जेडीएस ने बीजेपी पर विधायकों के खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया है. कुमारस्वामी ने तो यहां तक कह दिया है कि उनके विधायकों को 100 करोड़ तक ऑफर दिया जा रहा है. राज्यपाल के फैसले के विरोध में विपक्ष की तरफ से धरना भी दिया जा रहा है. बीजेपी के दावे को झुठलाते हुए अपने सभी विधायकों के साथ होने का दावा कांग्रेस-जेडीएस की तरफ से किया जा रहा है.

लेकिन, सबकुछ फिलहाल कोर्ट के पाले में है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक की राजनीति एक नई करवट ले सकती है.