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शशिकला पर SC का फैसला: अगर यही सजा जयललिता को होती तो?

इस पूरे भ्रष्टाचार की कलंक कथा में शशिकला महज एक ‘कॉलेटरल डैमेज’ की तरह हैं.

Sandipan Sharma

सियासत की विडंबनाओं का सच भी बेहद चौंकाने वाला होता है. अब जरा ओ. पनीरसेल्वम को ही देखिए. अपने विरोधी शशिकला के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत वो ऐसे कर रहे हैं जैसे उन्होंने पहला संसदीय चुनाव जीता हो.

यही हाल उनके समर्थकों का भी है जिनके चेहरे पर ये भाव सहज दिखता है कि आखिरकार न्याय की जीत हुई.


लेकिन जरा सोचिए, सुप्रीम कोर्ट ने यही फैसला अगर तमिलनाडु में अम्मा कही जाने वाली जे. जयललिता के जिंदा रहते हुए सुनाया होता तो पनीरसेल्वम और उनके समर्थकों की क्या प्रतिक्रिया होती ?

सोचकर देखिए कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा होता और जे. जयललिता को चार साल की जेल के साथ हैवी पेनाल्टी की सजा सुनाई गई होती तो क्या प्रतिक्रिया होती ?

जयललिता भी उतनी ही दोषी हैं जितनी शशिकला 

दरअसल, शशिकला को जेल और चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असल मतलब नहीं भूलना चाहिए. साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने जयललिता को भ्रष्ट तरीकों से दौलत जमा करने का दोषी पाया है. ये भी साफ है कि जयललिता की विरासत पर ये न्यायालय का कड़ा प्रहार है. हालांकि जयललिता अब इस दुनिया में नहीं हैं, लिहाजा वो इस सजा को नहीं भोग सकतीं.

लेकिन ये भी सच है कि आखिरकार 20 साल के बाद इस मामले में न्याय हुआ है. लेकिन न्याय देने में हुई देरी की वजह से जिस सजा की हकदार जयललिता थीं उससे वो बच गईं. लेकिन ये संयोग ही है (दुर्भाग्य शशिकला के लिए) कि इससे पहले की शशिकला अम्मा की विरासत को आगे बढ़ातीं, उन्हें न्यायालय के कठोर फैसले का सामना करना पड़ रहा है.

लेकिन इस पूरे भ्रष्टाचार की कलंक कथा में शशिकला महज एक ‘कॉलेटरल डैमेज’ की तरह हैं.

इस मामले में अब तक फैसला रोककर रखने की सुप्रीम कोर्ट की अपनी वजह हो सकती हैं क्योंकि देश की सर्वोच्च अदालत ने जून 2016 में ही इस मामले में न्याय कर दिया था लेकिन फैसला सुनाने की प्रक्रिया को रोक रखा था. लेकिन इस आठ महीने के दौरान तमिलनाडु की राजनीति भारी बदलाव के दौर से गुजरी.

सजा में देरी की वजह से बनी रहीं थीं सीएम

तकनीकी तौर पर जयललिता आठ महीने पहले ही भ्रष्टाचार की दोषी पाई गई थीं. इस फैसले से उन्हें फौरन चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेने से रोक दिया जा सकता था. यहां तक कि सजा काटने के छह साल बाद तक वो किसी भी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकती थीं.

लेकिन इस मामले में सजा का फैसला सुनाने में हुई देरी की वजह से वो राज्य की मुख्यमंत्री बनी रहीं. और जिस सजा की हकदार जयललिता थीं वो अब शशिकला की नियति बन चुकी है.

लेकिन इस फैसले की विडंबना देखिए कि ये एआईएडीएमके के लिए सही वक्त पर आया है. फैसले के बाद जिन समर्थकों को निराश होना चाहिए था वही आज बाहर निकल कर खुशियां मना रहे हैं. इस फैसले ने एक तरह से जयललिता के मरणोपरांत पनीरसेल्वम को उनकी विरासत का नैतिक उत्तराधिकारी तो बना दिया है. लेकिन उस विरासत का जो भ्रष्टाचार की बदौलत बढ़ाया और पनपा है.

न्याय की बात कर रहे पन्नीरसेल्वम तब क्या करते?

अगर अम्मा आज जिंदा होतीं तो पनीरसेल्वम उनकी जगह प्रॉक्सी चीफ मिनिस्टर बने होते. और शायद जयललिता के खड़ाऊं को कुर्सी पर रखकर पनीरसेल्वम राजकाज का काम वैसे ही चला रहे होते जैसा कि श्री राम के वनवास जाने के बाद उनके छोटे भाई भरत ने किया था.

हालांकि, इसे लेकर वो तमाम आलोचनाओं के शिकार और हंसी के पात्र बने होते. बावजूद, इस फैसले के बाद वो नैतिक वर्चस्व की लड़ाई में विजयी साबित हुए हैं. उनकी छवि एक ऐसे शख्स की बनी है जिसने सच्चाई के साथ खड़े होने का दम दिखाया है.

जबकि शशिकला न सिर्फ भ्रष्ट बल्कि सत्ता की लालच में जोड़-तोड़ में माहिर एक नेता के तौर पर तमिलनाडु की सियासी इतिहास का हिस्सा बन जाएंगी. एक ऐसी नेता जिसने सत्ता का सपना तो देखा लेकिन जेल की सलाखें उनका इंतजार कर रही हैं.

वो एक ऐसी नेता के रूप में याद की जाएंगी जिन्होंने आगे पांच साल के सफर की योजना तो बनाई थी लेकिन उन्हें अपने अगले कुछ दिनों के अस्तित्व का ही आभास नहीं रहा. एक तरह से शशिकला के लिए ये सही सजा है. क्योंकि उन्होंने वर्षों तक सत्ता और विलासिता का सुख भोगा है. वो भी सिर्फ एक महज संयोग की वजह से कि वो जयललिता के संपर्क में बहुत पहले आ गई थीं.

लेकिन विडंबना देखिए कि जयललिता ने जो कुछ अपने जिंदा रहते शशिकला को दिया वो विरासत उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद वापस भी ले लिया है.

शशिकला सिर्फ चार साल जेल में ही नहीं बिताएंगी. ऐसा लगता है कि उन्हें बाकी जिंदगी अब अपनी महत्वाकांक्षाओं को न पूरा कर सकने की भारी कसक के साथ बिताना पड़ेगा.