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जज लोया केस: फैसला खिलाफ गया तो न्यायिक तंत्र को शर्मिंदा करने की कोशिश कर रही है कांग्रेस

यह विडंबना है कि सुप्रीम कोर्ट को याचिकाकर्ता और उनका समर्थन करने वालों के खिलाफ इतनी कठोरता से पेश आया है

Sanjay Singh

इससे पहले कभी भी एक्टिविस्टों, उदारवादी समर्थकों और कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राजनीतिक कमाई करने की कोशिश नहीं की थी, वह भी ऐसे मामले में जिसमें वो हार गए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी आलोचना की है. जज बीएच लोया की मौत के मामले में कांग्रेस पार्टी ने एक्टिविस्ट वकील प्रशांत भूषण के 'सुप्रीम कोर्ट के इतिहास का काला दिन' वाले बयान का करीब-करीब समर्थन करते हुए इसे 'भारत के इतिहास का दुखद दिन' करार दिया. ऐसा करते हुए पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ना सिर्फ जज लोया केस के फैसले पर सवाल उठाया बल्कि यह फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट पर भी अंगुली उठाई.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को, सिर्फ इसलिए कि फैसला उनकी पसंद का नहीं था और जिससे उन्हें बीजेपी और इसके अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई में मदद मिल सकती थी या जिससे उनकी पार्टी और सुप्रीम लीडर राहुल गांधी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी, सिरे से खारिज कर देना और इसके लिए दुखद दिन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है- क्या एक पार्टी जिसने आजादी के बाद 60 साल से ज्यादा समय तक भारत पर राज किया, उसका आचरण ऐसा होना चाहिए?


पूरे न्यायिक तंत्र के खिलाफ नजर आता है ये धड़ा

बड़ी अदालत द्वारा दिए गए किसी फैसले की आलोचना एक स्वीकार्य परंपरा रही है, लेकिन इस मामले में तो किसी को नहीं छोड़ा गया- संबंधित निचली अदालत के जज, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट. कांग्रेस और इसके एक्टिविस्ट वकील मित्र, एनजीओ का एक धड़ा, और तथाकथित वाम-उदारवादी-लोकतंत्रवादी एक ही पाले में खड़े नजर आते हैं.

यह जताने के लिए कि कांग्रेस ऐसे मुद्दे के लिए लड़ रही थी, जो समग्र रूप में लोगों से जुड़ा हुआ था, सुरजेवाला ने भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा- 'माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन लोगों के लिए कई अनसुलझे सवाल छोड़ दिए हैं, जो जज लोया की मौत के मामले में निष्पक्ष जांच और इंसाफ की मांग कर रहे थे… भारत के लोगों की तरफ से हम आधिकारिक रूप से जज लोया की मौत से जुड़ी वैध आशंकाओं और सवालों को सामने रखना चाहते हैं…भारत के लोग जवाब का इंतजार कर रहे हैं.'

हो सकता है कि यह बयान देते हुए सुरजेवाला ने प्राइम टाइम के एक जाने-माने एंकर द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों को उठा लिया हो और इसे अपना बना कर पेश कर दिया हो, लेकिन उनके यह दावा करते समय कि वह भारत की जनता की तरफ से कह रहे हैं, उन्हें शायद ध्यान नहीं था कि भारत की जनता ने कांग्रेस और इसकी नीतियों को राष्ट्र हो या राज्य, चुनाव-दर-चुनाव खारिज कर दिया है. ऐसा नहीं है कि जो सवाल वह पूछ रहे हैं, या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की तरफ इंगित कर रहे हैं, या जिससे लोग नतीजा निकालें कि उनका इशारा सत्तारूढ़ दल के अध्यक्ष की तरफ है, उन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच के सामने वकीलों ने बहस नहीं की होगी.

न्यायपालिका के तीनों स्तर पर लगाए गए आरोप

हकीकत तो यह है कि सुनवाई के दौरान न्यायपालिका के तीनों स्तर- निचले, उच्च और सर्वोच्च को लेकर इससे कहीं ज्यादा तीखे आरोप लगाए गए, जिससे बेंच को बदनीयती का शक हुआ, जिसकी तरफ दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने भी इशारा किया. लोया केस में एक्टिविस्टों, कुछ वकीलों और कांग्रेस पार्टी द्वारा दिखाई गई आक्रामकता किसी को भी सोचने पर मजबूर कर देगी कि ये इस मामले की सुनवाई करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जजों की खिंचाई कर रहे हैं. और अब फैसला उनके खिलाफ चला गया है तो वह न्यायिक तंत्र को शर्मिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. मत भूलिए कि भारत के 125 करोड़ लोगों के लिए न्यायपालिका व्यवस्था में भरोसा और आस्था बनाए रखने की अंतिम उम्मीद है.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जज लोया के केस में निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए, एक्टिविस्ट-वकील और कांग्रेस पार्टी की कोशिश अमित शाह को घेरने की थी और जज की मौत में उन्हें शक के घेरे में रखने की थी.

याचिकाकर्ताओं पर बेतरह नाराज हुआ कोर्ट

ऐसा बहुत कम होता है कि सुप्रीम कोर्ट कोई मामला खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर इस तरह नाराज हो, जैसा कि बृहस्पतिवार को जज लोया केस में हुआ. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम. खानविलकर की तीन सदस्यीय पीठ ने कहाः

'हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि रिट याचिका में कतई कोई अर्हता (मेरिट) नहीं है. अदालत के लिए चार न्यायिक अधिकारियों के स्पष्ट और सुसंगत बयान पर शक करने का कोई कारण नहीं है. दस्तावेजी सुबूत प्रमाणित करते हैं कि जज लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है. अदालत के पास ऐसा मानने के लिए कोई आधार नहीं है कि मौत की स्थितियों और कारण पर तर्कपूर्ण तरीके से शक किया जाए, जिससे आगे और जांच की जरूरत हो.'

'याचिकाकर्ता और मध्यवर्तियों के वकीलों ने बार-बार अदालत को बताने की कोशिश की कि उनका कोई निजी एजेंडा नहीं है, और उन्होंने यह कार्यवाही न्यायिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए शुरू की है. यह कह कर कि जज लोया की मौत से जुड़े हालात की जांच की मांग करने का असली मकसद न्यायपालिका संस्थान का संरक्षण करना है, सद्भावना का आभास पैदा करने की कोशिश की गई. लेकिन जैसा कि सुनवाई के दौरान बातें निकल कर आईं, यह साफ हो गया कि याचिका न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला करने और न्यायिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को घटाने की एक छिपी हुई कोशिश है. न्यायिक पुनरीक्षण कानून के शासन को संरक्षित रखने का एक शक्तिशाली हथियार है. लेकिन यहां हमारा सामना फूहड़ आरोपों की बाढ़ से हुआ है. हत्या में साजिशकर्ताओं के साथ मिले होने का मामूली सबूत भी नहीं होने की दशा में अदालत निश्चित रूप से न्यायिक अधिकारियों के बयान पर भरोसा करेगी. जिला अदालतों के जज उनकी स्वतंत्रता पर चौतरफा हमले का आसान निशाना होते हैं. यह अदालत अगर उनके साथ नहीं खड़ी होती है तो अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम समझी जाएगी.'

अदालत अपने फैसले में इससे ज्यादा साफ तरीके से कुछ नहीं कह सकती थी. फैसले में कहा गया है कि कारोबारी प्रतिद्वंद्विता बाजार में निपटाई जानी चाहिए और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता लोकतंत्र के मैदान में. यह अदालत की जिम्मेदारी है कि वो कानून की हिफाजत करे.

यह विडंबना है कि सुप्रीम कोर्ट को याचिकाकर्ता और उनका समर्थन करने वालों के खिलाफ इतनी कठोरता से पेश आया है, लेकिन वही लोग और संगठन जिन्हें आज रक्षात्मक मुद्रा में होना चाहिए था, ऐसी बातें फैला रहे हैं, जो इस फैसले को संदिग्ध बना रही हैं.