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'संघ और बीजेपी की सफलता के मूल में राष्ट्रवाद'

बीजेपी के मुखपत्र 'कमल संदेश' के कार्यकारी संपादक शिवशक्ति बख्शी से बातचीत

Amitesh

लोकसभा चुनाव के बाद से ही लगातार कांग्रेस का ग्राफ गिरता जा रहा है. एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा है. एकमात्र पंजाब को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस के हाथ केवल हार ही लगी है.

विरोधी तो विरोधी हैं कांग्रेस के भीतर से भी बड़ी सर्जरी की वकालत की जा रही है. लेकिन, कांग्रेस के इस हालात का जिम्मेदार आखिर कौन है? कांग्रेस आलाकमान या फिर कांग्रेस की गलत नीतियां.


हालात पर अलग-अलग लोगों की अपनी-अपनी राय है. लेकिन, बीजेपी के मुखपत्र 'कमल संदेश' के कार्यकारी संपादक शिवशक्ति बख्शी बीजेपी के उत्थान और कांग्रेस के पतन पर अपनी अलग सोच और राय रखते हैं.

कांग्रेस ने गांधी के विचारों को हाशिए पर डाला 

बतौर शिवशक्ति बख्शी कांग्रेस इस तरह के हालत के लिए खुद जिम्मेदार है. कांग्रेस ने आजादी के बाद नेहरू-इंदिरा राज में गांधीवादी सोच से ही अपने  आप को अलग कर लिया.

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बातचीत में शिवशक्ति बख्शी कहते हैं कि कांग्रेस ने अपने आइडियोलाजिकल और आर्गनाइजेशनल दोनों ही कोर मुद्दों को खत्म कर दिया जिसका परिणाम है कि वो आज इस अवस्था तक पहुंच गई है.

बख्शी का मानना है कि आजादी के आंदोलन के वक्त जिस राष्ट्रवाद के मुद्दे को आगे कर कांग्रेस आगे बढ़ी थी. धीरे-धीरे कांग्रेस ने उसी परंपरा से किनारा कर लिया और इस राष्ट्रवाद को आरएसएस ने अपना लिया.

पहले कांग्रेस राष्ट्रवाद और गोरक्षा के मुद्दे को उठाती थी 

संघ परिवार गोरक्षा के मुद्दे को उठाता है, राष्ट्रवाद के मुद्दे पर पूरा फोकस करता है. लेकिन, गौर करें तो पहले गांधीवादी कांग्रेस गोरक्षा की बात करती थी. अब इसे संघ के लोग करते हैं.

बतौर शिवशक्ति बख्शी कांग्रेस ने राष्ट्रवाद से मुंह मोड़ लिया जिसके चलते कांग्रेस का ग्राफ धीरे-धीरे गिरता चला गया. अब एक सियासी दल के रूप में कांग्रेस के उसी स्पेस को बीजेपी ने कवर कर लिया है.

हालांकि उनका मानना है कि संघ परिवार और बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े स्तर पर छा जाने के पीछे कई और वजहें भी हैं. दरअसल, संघ परिवार के पास गांधीवादी सोच के अलावा भी और कई सारी बातें हैं जिसके चलते उसका दायरा काफी बड़ा हो जाता है.

गांधीवादी सोच अपना कर संघ ने निचले तबके तक पहुंच बनाई

बख्शी का मानना है कि गांधीवादी सोच को अपना कर संघ ने समाज में निचले तबके तक अपनी पहुंच बनाई है. खासतौर पर ट्राइबल क्षेत्रों में भी संघ की पहचान और पैठ बढ़ी है.

इसके अलावा संघ ने वामपंथी संगठनों के तौर-तरीकों से भी बहुत कुछ सीखा. मसलन, ट्रेड यूनियन के जरिए मजदूरों और समाज के उन तबकों में भी अपनी पैठ बनाई है.

छात्र संगठन के जरिए छात्रों और युवाओं को अपने पास लाने में काफी मदद मिली है. इन सबसे संघ परिवार का दायरा और ज्यादा बढ़ गया है.

इसके अलावा संघ की तरफ से ईसाइयत के उस सिस्टम को भी अपनाया गया जिसमें एक पादरी अपना सबकुछ संगठन के लिए न्योछावर कर देता है. इसी तर्ज पर संघ के भीतर अविवाहित रहकर अपना सबकुछ समाज को देने की परंपरा है. जिसके माध्यम से एक स्वयंसेवक प्रचारक की भूमिका में अविवाहित जीवन व्यतीत करता है.

संघ हिंदूवादी नहीं राष्ट्रवादी संगठन है 

शिवशक्ति बख्शी मानते हैं कि संघ को केवल हिंदू और हिंदूवादी संगठन मानना गलत है. संघ हिंदूवादी नहीं राष्ट्रवादी संगठन है.

हिंदू महासभा एक हिंदूवादी संगठन था जिससे कांग्रेस ने उसे रोक लिया. लेकिन, संघ-बीजेपी के मूल में राष्ट्रवाद है लिहाजा कांग्रेस इसे रोक नहीं पाई.

(फोटो: पीटीआई)

उनका मानना है कि वामपंथी एक्सक्लूजन में विश्वास करते हैं लेकिन, बीजेपी का इन्क्लूजन में भरोसा है जिसमें सबको साथ लेकर चला जाता है.

यही वजह है कि कांग्रेस और लेफ्ट दोनों पिछड़ते चले गए हैं और बीजेपी का एक अखिल भारतीय स्वरूप इस वक्त सबके सामने है.

शिवशक्ति बख्शी का मानना है कि आने वाले कई सालों तक बीजेपी का कोई विकल्प सामने नहीं दिख रहा है क्योंकि कांग्रेस के भीतर वो दम नहीं रहा और बीजेपी के विकल्प के तौर पर कोई दूसरी शक्ति फिलहाल सामने भी नहीं है.