view all

सृजन स्कैम: मनोरमा देवी के इशारे पर चल रहा था ये खेल!

घोर आश्चर्य की बात है कि भागलपुर में चल रही ‘लंगर’ की भनक बिहार सरकार के तीन सीएम को भी नहीं लग सकी

Kanhaiya Bhelari

सृजन स्कैम नेत्री मनोरमा देवी के इशारे पर 13 डीएम, 5 डीडीसी, 40 एडीम, 15 बैंक अधिकारियों के अलावा 2003 से लेकर जनवरी 2017 तक बिहार सरकार में कार्यरत लगभग सभी सहकारिता मंत्री कसरत करते रहे हैं. राजनीतिक जीवों की बात करें तो भागलपुर जिला के एक कांग्रेसी विधायक को छोड़कर सबों ने बहती गंगा में डुबकी लगाई है.

वंचित इस बुजुर्ग कांग्रेसी विधायक को अफसोस है कि जिला में इतने दिनों तक खुल्लमखुल्ला लंगर चल रहा था और उनको प्रसाद खाने के लिए किसी ने एक बार भी न्योता नहीं दिया. ‘स्कैम में शामिल सब लोग त जानले-पहचानल थे. बाकी हमको शायद ये सोचकर नहीं भनक लगने दिया कि हम पोल खेाल देते’. वैसे इन्हें साफ-सुथरी छवि का माना जाता है.


घोर आश्चर्य की बात है कि भागलपुर में चल रही ‘लंगर’ की भनक बिहार सरकार के तीन सीएम को भी नहीं लग सकी. ऐसा तीनों दावा कर रहें हैं. ये दूसरी बात है कि इनके दावों पर भरोसा करने के लिए ‘भक्तों’ के अलावा कोई और तैयार नहीं हैं. पहली सीएम राबड़ी देवी थीं जिनके कार्यकाल में स्कैम की नींव पड़ी.

दूसरे और तीसरे सीएम क्रमशः नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी और फिर नीतीश कुमार रहें हैं जिनकी आंखें तो दूर, घ्राण शक्ति भी इस स्कैम तक नहीं पहुंच सकी.

राबड़ी देवी पर टन के भाव से भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. पति लालू प्रसाद और तब के डी फैक्टो सीएम लालू प्रसाद चारा घोटाले में कोर्ट द्वारा दोषी करार हैं. अभी बेल पर बाहर हैं. जीतन राम मांझी के राज-काज चलाने के तरीके से सब वाकिफ हैं. चाहे सरकारी मुलाजिम हों या जनता उनको कभी किसी ने सीरियसली नहीं लिया. कुर्सी मिलने के शुरुआती 6 महीने तक नीतीश कुमार की खडाऊं को गद्दी पर रखकर राज किए. जबकि बाकी समय खडाऊं से झंझट मोल लेकर कुर्सी बचाने में समय गंवा दिए.

बहरहाल, कम्पलीट 11 साल तक बिहार में ‘सुशासन’ रहा. सैंकड़ों बार सीएम नीतीश कुमार ने स्वयं अपने देख-रेख में प्रत्येक विभागों की गहन समीक्षा की. जिला के अधिकारियों के साथ अनगिनत बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की. अपने निजी खुफिया तंत्र को भी सक्रिय रखा. फिर भी चिड़ियों ने दाना चुग लिया. मजेदार बात ये है कि कई चिड़ियों को सुशासन की सरकार ने बारम्बार मलाईदार पद पुरस्कार के रूप में भी दिया.

ठोस सबूत होने के बाद भी किसके दबाव में छुपाया गया? 

ठोस सबूत के साथ स्थानीय अखबार में खबर छपी है कि कम से कम 4 बार स्कैम उजागर हुआ है जिसे अधिकारियों ने किसी के दबाव में दबाया. 2003 में तत्कालिन डीएम केपी रमैया ने सभी बीडीओ को सृजन में सरकारी पैसा जमा करने का आदेश दिया जिसे 2008 में तत्कालिन डीएम ने बंद करा दिया. लेकिन जिलाधिकारी ने जांच क्यों नहीं कराई? तथा अपने से ऊपर के अफसरों को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी? हालांकि डीएम ने लेखक को बताया कि 'हमने ऊपर जानकारी दे दी थी. मुझे शांत रहने के लिए कहा गया’.

सहरसा भ-ूअर्जन विभाग का अकाउंट भागलपुर के बैंक ऑफ बड़ौदा में था. 2013 में इस खाते से 162 करोड़ सृजन के खाते में ट्रांसफर किया गया. पैसे की डिमांड दो साल बाद हुई तो सृजन नेत्री ने सरकार के खाते में उतनी रकम डलवा दी. कहते हैं बीते मार्च में इसकी भनक सहरसा और भागलपुर डीएम को लग चुकी थी. लेकिन ये चुप रहे.

तीसरी बार बांका के भू-अर्जन पदाधिकारी जयश्री ठाकूर द्वारा 7.32 करोड़ सृजन के खाते में जमा करने का मामला पकड़ा गया. आय से अधिक संपति रखने के अरोप में इस महिला अफसर की गिरफ्तारी भी हुई. विजीलेंस ने केस भी दर्ज किया था. लेकिन कोइ ठोस कार्यवाई नहीं हुई. अभी के बिहार पुलिस के चीफ पीके ठाकुर विजीलेंस के एडीजी हुआ करते थे. शायद ठाकुर को ठाकुर के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला. पर सृजन स्कैम के उजागर होने के बाद ठाकुर को नौकरी से बर्खास्त करके जेल भेज दिया गया है.

जिलाधिकारी के पास रिपोर्ट होने पर जांच नहीं कराई गई 

सहकारिता विभाग हर साल ऑडिट कराता था. जिसकी रिपोर्ट जिलाधिकारी से लेकर राज्य तक के आला अफसर के पास मैाजूद रहा है. उस रिपोर्ट में स्पष्ट है कि सृजन बैंक चला रहा है. जबकि उसे केवल को-आॅपरेटिव सोसाइटी चलाना था. आखिर जांच क्यों नहीं की गई?

सरकार का कहना है कि चेक बाउन्स होने के बाद 8 अगस्त को भागलपुर डीएम आदेश तीतरमारे के सुज्ञान में सृजन स्कैम आया और उन्होने जांच का आदेश दिया. जबकि सच्चाई ये है कि पिछले तीन महीने से सरकारी चेक बिना भुगतान के लौट रहा था. 178 करोड़ रुपए के तीन या चार चेक थे.

अंतिम बार डीएम ने चेक के साथ ट्रेजरी का चालान लगाकर भेजा जिसे बैंक को बाउन्स करने के अलावा कोई चारा नहीं था. तीन महीने से बिना भुगतान के वापस लौट रही चेकों की बात जानने के बाद डीएम ने अपने अधिनस्थ पदाधिकारियों के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया?

बहरहाल, सृजन स्कैम को सीबीआई ने टेक अप कर ली है. उधर राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी ने भी दर्जनो लोगों को पकड़कर गहन पुछताछ की है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)