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ई मजबूरी के गठबंधन है, एहमा बड़ा पेंच है

भले ही खूब दावे हों लेकिन जमीन पर गठबंधन पूरी तरह से काम नहीं कर रहा है

Amitesh

बलरामपुर जिले के तुलसीपुर विधानसभा क्षेत्र में इस बार चुनाव काफी रोचक हो गया है. रोचक इसलिए भी कि पहले से इस सीट से तीन बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके रिजवान जहीर की बेटी इस बार चुनाव मैदान में हैं.

ज़ेबा रिजवान कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं. लेकिन, यहां समाजवादी पार्टी के मौजूदा एमएलए अब्दुल मसूद खां ने भी पर्चा भर दिया है. मजे की बात यह है कि मसूद खां को साइकिल चुनाव चिन्ह मिल भी गया है.


अब्दुल मसूद खां कभी रिजवान जहीर के ही शागिर्द हुआ करते थे, लेकिन, आज दोनों की राहें जुदा हैं. अब रिजवान जहीर बेटी को जिताना के लिए लगे हैं.

रिजवान का दावा- जीत हमारी होगी

अपने समर्थकों के साथ रणनीति बना रहे रिजवान जहीर कहते हैं यहां रिजवानी दल काम करता है यहां हमारे समर्थक बहुत ज्यादा हैं, अब जीत हमारी ही होगी.

ज़ेबा रिजवान भी कहती हैं कि लोगों का प्यार मिल रहा है. क्षेत्र के लोग मुझे भरोसा देते हुए कहते हैं ‘इहां बन्नी तू निश्चिंत रहो तोहर अब्बा यहां से जीतत हैं और जीतीहें.’

इस पूरे इलाके में रिजवान जहीर का किसी जमाने में सिक्का चलता था. अब उन्होंने अपनी बेटी को चुनाव में उतारा है. लेकिन, दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी से अब्दुल मसूद खां भी दम खम के साथ ताल ठोंक रहे हैं.

साफ शब्दों में कहें तो तुलसीपुर में गठबंधन फेल हो गया है.

लेकिन, एसपी-कांग्रेस के बीच गठबंधन पर कन्फ्यूजन केवल तुलसीपुर में ही नहीं है. कई और विधानसभा सीटें हैं जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है.

बलरामपुर के बगल के जिले गोंडा में भी सपा और कांग्रेस आपस में ही उलझ रहे हैं. गोंडा के गौरा सीट से कांग्रेस से तरुण पटेल और सपा के रामप्रताप सिंह एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में डटे हैं.

रायबरेली और अमेठी का हाल तो और भी बुरा है. जहां कांग्रेस और एसपी दोनों के उम्मीदवार मैदान में हैं. अमेठी में संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह कांग्रेस से और एसपी की तरफ से गायत्री प्रजापति मैदान में हैं.

इसके अलावा और भी बहुत सारी सीटें हैं जहां बेमेल गठबंधन का अलग रंग दिख रहा है.

दरअसल, अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के जरिए एक बेहतर और मजबूत विकल्प देने का संदेश दिया था. अखिलेश की कोशिश थी कि इससे मुस्लिम मतदाताओं को एक बेहतर संदेश भी जाएगा.

अखिलेश इस कोशिश में सफल तो रहे लेकिन पहले से कमजोर कांग्रेस को ज्यादा सीटें देकर अखिलेश ने शायद एक गलती कर दी है. इन दोनों दलों के गठबंधन के बाद पांच साल से सत्ता में काबिज सपा के टिकट के दावेदारों की बेचैनी बढ़ गई है.

इन सपाइयों की बेचैनी को शिवपाल और मुलायम की शह भी मिल रही है. उन इलाकों में जहां कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. एसपी के जमीनी कार्यकर्ता उस उत्साह से काम करते नहीं दिख रहे हैं.

रोड शो के जरिए उत्साह भरने की नाकाम कोशिश

राहुल गांधी और अखिलेश यादव के रोड शो से उत्साह भरने की कोशिश भी की जा रही है, लेकिन, लगता है कि अखिलेश यादव ने कुछ ज्यादा ही सीटें कांग्रेस को दे दी हैं.

रह-रह कर समाजवादी पार्टी के भीतर का ज्वार बाहर आ भी रहा है. सपा की तरफ से रामकरण आर्या का बयान काफी कुछ कह जाता है जिसमें उन्होंने कांग्रेस को छोटे शैतान की कैटेगरी में लाकर खड़ा दिया है.

यह हाल जमीन पर भी है. एसपी और काग्रेस के कार्यकर्ता कई इलाकों में एक-दूसके के खिलाफ लड़ रहे हैं.

कांग्रेस के प्रदेश के नेता और कार्यकर्ता पहले भी एसपी के साथ गठबंधन के खिलाफ दिख रहे थे. लेकिन, राहुल–प्रियंका की जिद के आगे सबकी बोलती बंद हो गई.

बलरामपुर के कांग्रेस जिलाध्यक्ष अनुज सिंह भी इसे कांग्रेस आलाकमान का फैसला बताते हैं. लेकिन, अपने दिल का दर्द बयां कर ही जाते हैं.

अनुज सिंह का दावा है ‘येह जिला में गठबंधन से कांग्रेस का नुकसान भवा है, नहीं तो इस बार चारों सीट कांग्रेस जीत जात.’

फिलहाल दावा खूब हो रहा है यूपी के लड़के मीडिया में साथ-साथ तो खूब दिख रहे हैं लेकिन, यूपी के लड़कों का साथ यूपी को कितना पसंद आ रहा है, यह अभी लाख टके का सवाल बना हुआ है.