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खुदा के बंदो, भगवान के प्यारो, हमें बख्श दो

सोनू निगम ने धार्मिक गुंडागर्दी पर सवाल उठाया लेकिन सुनेगा कौन?

Rakesh Kayasth

गायक सोनू निगम की फरियाद जायज है. सुबह का वक्त सबसे मीठी नींद का होता है. मस्जिद से उठने वाली अजान में भले कितनी ही रुहानियत क्यों ना हो, गहरी नींद में सोते किसी आदमी को कर्कश ही लगेगी. सोनू निगम की बात से मैं ज्यादा अच्छी तरह रिलेट कर सकता हूं क्योंकि मैं भी उन्ही तरह पीड़ित हूं. लाउडस्पीकर से आनेवाली अजान की आवाज से रोज सुबह मेरी भी नींद टूटती है. मैं बिस्तर पर पड़ा-पड़ा एक पुराना शेर दोहराता हूं-

दी मुअज्जन ने अजां वस्ल की शब पिछले पहर


हाय कमबख्त को किस वक्त खुदा याद आया

लेकिन मुझे परेशानी सिर्फ खुदा के बंदों से नहीं भगवान के प्यारों से भी है. हाउसिंग सोसाइटी के ठीक बाहर एक मंदिर भी है, जहां के लाउड स्पीकर से फिल्मी पैरोडी वाले भजन रात-दिन चलते रहते हैं. मैं एक कर्मकांडी हिंदू परिवार में पैदा हुआ हूं. बचपन से वैदिक मंत्रोचार सुनने की आदत रही है. थर्ड क्लास फिल्मी पैरोडी बहुत कष्ट देती है. फिर भी मेरा एतराज घटिया पैरोडी पर नहीं है. अपनी-अपनी श्रद्धा! समस्या वो कानफाड़ू आवाज़ है, जो बिना मेरी मर्जी के मेरे बेडरूम तक पहुंचती है.

एक नागरिक होने के नाते शांतिपूर्ण तरीके से जीना मेरा अधिकार है. लेकिन मेरे इस अधिकार की रक्षा कौन करेगा? मुंबई पुलिस ध्वनि प्रदूषण के मामले में बहुत संवेदनशील है. एक वक्त के बाद और तय सीमा से ज्यादा शोर हो तो फौरन बंद करवा देती है. लेकिन धार्मिक शोर के आगे पुलिस भी बेबस है.

धार्मिक शोर तभी बंद हो सकते हैं, जब इसके लिए धार्मिक समुदाय खुद पहल करें. एक उदाहरण गुड फ्राइडे का है. मुंबई में ईसाई समुदाय के कुछ धर्मगुरूओं ने इस बार शोर-रहित गुड फ्राइडे मनाने की अपील की. इसका बहुत अच्छा असर हुआ. शहर के कई इलाकों में चर्च से लाउड स्पीकर गायब थे.

लेकिन ऐसी मिसालें बाकी समुदायों में नहीं है. जिन धार्मिक समूहों में अपना राजनीतिक ताकत दिखाने की बेचैनी है, वे संगठित धार्मिक गुंडागर्दी को खुलकर बढ़ावा देते हैं, ये बात आप अपने रोजमर्रा के अनुभवों से महसूस कर सकते हैं. क्या आपने धार्मिक गुंडागर्दी के खिलाफ किसी नेता को खड़े होते देखा है? हमारे नेता हमेशा धार्मिक गुंडों के साथ ही नज़र आते हैं.

रामनवमी और मुहरर्म के जुलूस के रास्तों को लेकर बड़े-बड़े नेता सड़क पर उतरते हैं. बीच सड़क नमाज पढ़वाने की जिद को लेकर नेता आंदोलन करते हैं. लेकिन कोई भी ऐसा नेता नजर नहीं आता जो ये कहे कि सड़क आम नागरिकों के चलने के लिए हैं. धार्मिक कार्यक्रम तयशुदा जगहों पर होने चाहिए और इसकी कीमत पर ट्रैफिक नहीं रोकी जानी चाहिए. पूरा सरकारी सिस्टम धार्मिक गुंडों के पक्ष में है. ऐसे में सर्वधर्म समभाव और समसरता की बातें बेहद खोखली लगती हैं.

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सर्वधर्म समभाव के बारे में मैं यही कहूंगा कि मैं सभी धर्मों से समान रूप से पीड़ित हूं, इसलिए सबके लिए एक जैसा भाव रखना मेरी मजबूरी है.

अगर आप भी कभी गाजियाबाद में कांवड़ियों के हाथों पिटे हों या पिटते-पिटते बचे हों, शब-ए-बारात के हुड़दंगियों से आपने मुश्किल से अपनी जान बचाई हो या गुरू पर्व पर आपको राह चलते किसी ने जबरदस्ती शर्बत पिलाया हो और ना पीने पर मां-बहन की गालियां दी हों तो मेरी तरह यकीनन आप भी `सर्वधर्म समभाव' रखते होंगे.

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ज्ञानी लोगो ने कहा है, सभी धर्मों का सार एक है. मुझे भी लगता है कि सभी धर्मों का मूल तत्व एक ही है और वो है—सार्वजनिक गुंडागर्दी. आध्यात्मिक प्रवचन सुनना अच्छा लगता है. लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में हमारा पाला जिस धर्म से पड़ता है, वो बेहद आक्रामक, खौफनाक, क्रूर और अश्लील है.

यह धर्म गुंडागर्दी करने वालों को खुली छूट देता है और नागरिकों के शांतिपूर्ण ढंग से जीने के बुनियादी अधिकार का हनन करता है. इस देश में निजी आस्था ही कानून है. कानून तो बस एक तरह की निजी आस्था है, थोड़े बहुत लोग अपनी श्रद्धा से मान लेते हैं.

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सोनू निगम ने एक बड़ा सवाल उठाया है, लेकिन हमारे धार्मिक और राजनीतिक नेता इस सवाल पर सोचेंगे इस बात की उम्मीद फिलहाल नज़र नहीं आती है.