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केरल का सोलर स्कैम: आयोग की रिपोर्ट में लगाए आरोपों को साबित करना मुश्किल

इन आरोपों का खंडन करते हुए चांडी कहते हैं कि उनके खिलाफ लगाए यौन दुराचार के आरोपों में अगर जरा भी सच्चाई है तो वह अपना राजनीतिक करियर खत्म करने को तैयार हैं

TK Devasia

केरल के ‘सोलर स्कैम’, जिसमें एक शिक्षित दंपती शामिल हैं और जिन्होंने वर्ष 2010 में ‘वैकल्पिक’ सोलर सॉल्यूशन देने का वादा करके करीब तीन दर्जन लोगों को 6.5 करोड़ रुपए का चूना लगाया, पर आई रिपोर्ट को लेकर विधिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सवाल उठ रहे हैं.

पूर्व की कांग्रेस की अगुवाई वाले UDF (यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) की ओर से  साल 2013 में नियुक्त जस्टिस जी. सिवराजन आयोग की 1073 पेज की रिपोर्ट में 74 साल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी और 21 अन्य पर अंगुली उठाई गई है. इन 21 लोगों में दो केंद्रीय मंत्री, तीन प्रदेश के मंत्री, एमएलए, एक सांसद और कई आला पुलिस अधिकारी शामिल हैं. इस रिपोर्ट को बृहस्पतिवार को मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने सदन में रखा.


रिपोर्ट कहती है कि चांडी और उनके सहयोगियों ने पैसा और सेक्स के एवज में बीजू राधाकृष्णन और उसकी लिव-इन पार्टनर सरिता एस. नायर की ओर से  शुरू की गई एक संदिग्ध कंपनी की मदद की.

कर दिया गया है एसआईटी का गठन 

2016 के विधानसभा चुनाव में UDF सरकार, जो बुरी तरह चुनाव हार गई, को हिला देने वाला यह घोटाला राज्य के राजनीतिक हल्कों में लंबे समय तक गूंजता रहेगा. लेफ्ट फ्रंट सरकार ने न्यायिक आयोग की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच के लिए एक पुलिस महानिदेशक की निगरानी में स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम का गठन कर दिया है. इधर UDF आयोग की रिपोर्ट को अदालत में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है.

UDF इस रिपोर्ट को खारिज करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की कानूनी सलाह ले भी चुका है. याचिका का एक प्रमुख बिंदु हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले न्यायिक आयोग का अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करना है.

पूर्व मुख्यमंत्री, जिन पर घूस खाने और यौन दुराचार के आरोप हैं, का कहना है आयोग ने उसको सौंपे गई जिम्मेदारी से बाहर जाकर उनकी पार्टी के कई लोगों को इसमें घसीट लिया.

गलत दिशा में कमीशन ने जांच किया है 

चांडी का कहना है कि 'कमीशन को विधानसभा और बाहर उठाए गए सवालों को लेकर सोलर स्कैम और इससे जुड़े वित्तीय लेन-देन की जांच के लिए कहा गया था. लेकिन इसने मुख्य आरोपी सरिता की ओर से लिखा बताए जा रहे एक पत्र में लगाए गए सारे आरोपों और आयोग के सामने दिए बयान को बिना पुष्टि के वस्तुतः ज्यों का त्यों उतार दिया. यह आयोग को दिए गए निर्देश के विपरीत था.'

वह पत्र की असलियत पर भी सवाल खड़े करते हैं. असली पत्र 24 जुलाई 2013 को लिखा गया था, उसमें 21 पन्ने थे, लेकिन जो उसने आयोग के सामने पेश किया, उसमें 25 पन्ने थे. जेल प्रमुख एलेक्जेंडर जैकब, जिन्होंने यह पत्र उसके वकील को सौंपने से पहले पढ़ा था, ने आयोग के सामने गवाही में कहा कि इसमें पूर्व मुख्यमंत्री का नाम नहीं था.

हालांकि रिपोर्ट में शामिल पत्र में चांडी का नाम प्रमुखता से दिखता है. पत्र में आरोप लगाया गया है कि चांडी ने मुख्यमंत्री के सरकारी बंगले क्लिफ हाउस में सरिता के साथ कई बार ओरल सेक्स किया. इन आरोपों का खंडन करते हुए चांडी कहते हैं कि उनके खिलाफ लगाए यौन दुराचार के आरोपों में अगर जरा भी सच्चाई है तो वह अपना राजनीतिक करियर खत्म करने को तैयार हैं.

रिपोर्ट के आधार पर दर्ज नहीं हो सकता कोई केस 

हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील मोहम्मद शाह का कहना है कि रिपोर्ट के आधार पर कोई केस दर्ज नहीं किया सकता, क्योंकि न्यायिक आयोग ने आरोपों के बारे में कोई स्वतंत्र जांच नहीं की है.

हालांकि पैनल ने इस आरोप की तरफ इशारा किया है कि सरिता कई जगहों पर लोगों को ब्लैकमेल करने के लिए वीआईपी का नाम लिया करती थी. पैनल ने अपनी रिपोर्ट में इन बातों को शामिल किया है और कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अंतर्गत इसको अवैध पारितोषिक (घूस) माना जाना चाहिए.

एडवोकेट शाह ने फर्स्ट पोस्ट से कहा, 'घूस में मर्जी शामिल है. इसका अर्थ है कि सरिता ने अपनी मर्जी से सेक्सुअल फायदे दिए. अगर ऐसा है तो आरोपों को साबित करने के लिए सबूत की जरूरत होगी. लेकिन इस मामले में सरिता ने कुछ लोगों और जगहों का सिर्फ नाम लिया है. उसने तारीख या समय समेत कोई और ब्योरा नहीं दिया है. ऐसे आरोप अदालत में टिक नहीं सकते.'

वह कहते हैं कि शायद यही वजह है कि सरकार चांडी और बाकियों के खिलाफ केस दर्ज करने के.

(फोटो साभारः न्यूज 18 केरल)