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फ़र्स्टपोस्ट एक्सक्लूसिव: मंदसौर हादसे में किसानों का हाथ नहीं- शिवराज सिंह चौहान

शिवराज मानते है कि किसानों के मन में तकलीफ है लेकिन वो उम्मीद करें कि अच्छे दिन जल्द आएंगे

Kinshuk Praval

मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन के बाद मंदसौर और नीमच में जमकर हिंसा भड़की. पुलिस फायरिंग में 6 लोगों की मौत भी हो गई. एमपी के सीएम उपवास पर बैठे. हालात अब सामान्य हैं. लेकिन सुलगते सवाल अब भी बाकी हैं कि आखिर मंदसौर हिंसा के पीछे की असली वजह क्या थी. क्या वाकई किसान हिंसक हो गए थे या फिर आंदोलन के पीछे कुछ अराजक तत्वों का हाथ था.

साथ ही बड़ा सवाल ये भी कि आखिर किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए शिवराज सिंह चौहान अब क्या कर रहे हैं. मध्य प्रदेश सरकार ने क्या स्थाई समाधान ढूंढे हैं ताकि भविष्य में फिर इस तरह मंदसौर जैसी घटना न हो. मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत की.


फ़र्स्टपोस्ट: आपकी छवि किसानों के हितैषी के तौर पर है. आप किसानों के प्रति संवेदनशील माने जाते है. आपके शासनकाल में किसानों में रोष भी नहीं देखा गया. लेकिन अचानक किसान आंदोलन के चलते मंदसौर और नीमच जल उठता है. क्या असली वजह मानते हैं?

शिवराज सिंह चौहान: एक तो मैं पहले स्पष्ट कर दूं कि मध्यप्रदेश में किसानों के कल्याण के लिए जो काम हुआ वो शायद पहले कभी कहीं नहीं हुआ है. मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जो अपने किसानों को माइनस टेन पर्सेंट ब्याज पर कर्ज देता है. खाद और बीज के लिए एक लाख ले जाओ और नब्बे हजार वापस करो. दस प्रतिशत मूलधन भी सरकार भरती है और ब्याज तो सरकार भरती ही है. हमने सिंचाई का रकबा साढ़े सात लाख हेक्टेयर था उसे बढ़ाकर 40 लाख हेक्टेयर किया. कुल मिलाकर कुआं और ट्यूबवेल को मिला दिया जाए तो हमने एक लाख दस हजार हेक्टेयर कर दिया. हमने सीड रिप्लेसमेंट की दर तीस प्रतिशत कर दी. अच्छे बीज उपलब्ध कराए. बिजली की पर्याप्त उपलब्धता हुई. हमने किसानों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कई तरीकों से पद्धतियां बदली. कृषि के लिए आजमाए हुए उपायों की लंबी फेहरिस्त है.

उसका परिणाम ये हुआ कि मध्यप्रदेश की विकास दर कई वर्षों से 20+ बनी हुई है. इस साल के सीजन में भी 25 प्रतिशत के आसपास अपेक्षित है. पांच साल में उत्पादन दोगुने से ज्यादा हो गया. कई जगह सौ प्रतिशत से भी ज्यादा का उत्पादन हुआ. ये हमारे लिए गर्व का विषय भी है कि मध्यप्रदेश की बंपर पैदावार ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.

गेहूं जैसी चीज में हमने पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को पीछे छोड़ दिया. लेकिन केवल गेहूं नहीं, केवल धान नहीं बल्कि जब दलहन का आव्हान हुआ कि दलहन इम्पोर्ट करनी पड़ती है और मध्यप्रदेश दलहन पैदा करे तो हमने दलहन भी पैदा किया. उसके भी हमने रिकॉर्ड तोड़े. चाहे वो तुअर, मसूर, चना या उड़द हो. इसके साथ साथ फलों और सब्जियों में भी पैदावार अच्छी हुई. इस बार प्याज 32 लाख मीट्रिक टन पैदा हुआ है . अपने आप में एक रिकॉर्ड है. इसलिए एक तरफ कृषि उत्पादन मध्यप्रदेश में तेजी से बढ़ा लेकिन इस साल एक तकलीफ का विषय ये रहा कि चीजों की कीमतें काफी गिरीं.

स्वाभाविक रूप से जिस चीज के दाम आठ-नौ हजार रुपए क्विंटल रहे हों, वो इस साल 4 से पांच हजार रुपए क्विंटल हो जाएंगे तो मन में तकलीफ होगी ही. डीओसी के निर्यात बंद होने की वजह से सोयाबीन के दाम गिरे. प्याज, टमाटर, आलू, संतरा के बंपर उत्पादन की वजह से उनके दाम भी गिरे. मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि ये तकलीफ जरूर हुई. रेट गिरने की वजह से किसानों के मन में तकलीफ थी कि उन्हें भाव सही नहीं मिले. उसके हम उपाय कर रहे थे.

लेकिन जहां तक मंदसौर का सवाल है तो मैं एक निवेदन करना चाहूंगा कि पूरी देश में ये संदेश गया है कि जैसे किसान आंदोलन पूरे मध्यप्रदेश में हुआ है. सच्चाई ये बिल्कुल नहीं है. 51 जिले मध्यप्रदेश में हैं. पूरे सागर संभाग में कुछ नहीं हुआ.जबलपुर,रीवा, शहडोल, ग्वालियर और भोपाल संभाग में कुछ नहीं हुआ. केवल इंदौर में कांग्रेस प्रायोजित कुछ चीजें हुईं. बाकी कहीं कुछ नहीं हुआ. आंदोलन में जहां हिंसा हुई तो उसका केंद्र मंदसौर था. मंदसौर के आंदोलन में अगर आप बहुत गहराई से जाएंगे तो देखेंगे कि हिंसा करने वाले और गड़बड़ी करने वाले जिनके बारे में मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वो किसान नहीं थे.

उसमें अराजक तत्व और आसमाजिक तत्वों का प्रवेश हो चुका था. एक बात मैंने स्वीकार कर ली कि किसानों के मन में असंतोष था क्योंकि रेट गिर रहे थे. लेकिन किसान ये नहीं कर सकता है जो मंदसौर में हुआ. असंतोष जताने के किसान के अपने तरीके होते हैं. जिस तरह से मुंह में कपड़े बांधकर दुकानों में आग लगाई गई और ये भी जानकारियां मिली हैं कि अराजक तत्वों को मदद की गई. उनकी गाड़ियों में पेट्रोल डलवाया गया और पैसे दिये गए उसकी खोजबीन हो रही है. उसकी जांच हो रही है. लेकिन वो किसान नहीं थे.

किसान अपने हाथ से जलाने का काम कभी नहीं कर सकता. उसके पीछे कुछ और लोग थे. राजनीति भी उसके पीछे थी. अब खुलेआम कांग्रेस के नेता ये कह रहे हैं, उनके वीडियो न्यूज़ चैनल में देखे गए हैं जिसमें थाना जलाने, आग लगाने की बात की जा रही है....इसका मतलब ये था कि मौका देखकर ऐसी परिस्थितियां कर दो कि अराजकता पैदा हो जाए और मध्यप्रदेश जो कृषि के क्षेत्र में शानदार रिकॉर्ड के लिया माना जाता है, किसान हितैषी होने के लिए जाना जा सकता है, उसे बदनाम भी किया जाए और राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जाएं. स्वार्थी तत्व ही मंदसौर में इकट्ठे हुए. जिनकी हम गहराई से जांच करेंगे.

फ़र्स्टपोस्ट: मंदसौर- और नीमच की पहचान अफीम की खेती के लिए होती है. क्या ये माना जाए कि किसान आंदोलन की हिंसा के पीछे अफीम माफिया का भी हाथ हो सकता है?

शिवराज सिंह चौहान: हमने स्मगलिंग के खिलाफ कड़ी कार्रवाइयां की थीं. कई लोग जो अपराधी थे और जो कुख्यात अपराधी थे वो जेल गए. एनएसए लगाया गया. मैंने ये निर्देश दिया कि कोई भी अपराधी छोड़ा नहीं जाए. अब जो लोग पकड़े गए तो उनके मन में तकलीफ स्वाभाविक थी. जिस ढंग के उनके काम-धंधे थे उसका बंद होना उनकी तकलीफ का एक कारण था. लेकिन मैं फिर भी कहता हूं कि पूरी जांच के बाद ही लोगों को बेनकाब करेंगे.

फ़र्स्टपोस्ट: मंदसौर की घटना पर न्यायिक जांच की जा रही है?

शिवराज सिंह चौहान: जी हां , न्यायिक जांच हो रही है.

फ़र्स्टपोस्ट: आंदोलन में अब दूसरा पक्ष देखते हैं किसानों का. आप किसानों की मांगों को कितना जायज़ मानते हैं?

शिवराज सिंह चौहान: देखिए किसानों की मांगें जहां तक लाभकारी दाम की है बिल्कुल न्यायोचित है. बिल्कुल जायज है. मुझे कहते हुए खुशी हो रही है कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इस मामले में बहुत ही जागरुक हैं. बहुत संवेदनशील हैं. किसानों की आय दोगुनी कैसे हो इसका रोडमैप बनाया है. परिणाम आने में वक्त लगेगा.

जहां तक बम्पर उत्पादन से दाम गिरने की वजह से किसानों की परेशानी की बात है तो हमने उपाय करते हुए गेहूं और धान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने का फैसला किया. प्याज जो दो रुपए किलो नहीं बिक रहा था तो मध्यप्रदेश राज्य ने अकेले ये फैसला किया कि हम उसे 8 रुपए किलो खरीदेंगे. दो दिन पहले तक हम चार लाख मीट्रिक टन प्याज खरीद चुके हैं. लगातार प्याज अभी आ रही है जिसे हम खरीदने का इंतजाम कर रहे हैं.

फ़र्स्टपोस्ट: दालों का 5225 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदने का फैसला किया गया है. ये क्या स्थाई समाधान है?

शिवराज सिंह चौहान: मैं केवल ये कहूंगा कि लाभाकारी मूल्य देना ही स्थाई समाधान है. अभी मूंग जैसी दालों के दाम 3500रुपए क्विंटल हो गए हैं. हमने उसको बढ़ाकर 5225 रुपए क्विंटल खरीदा. किसानों के मन में संतोष है. किसान अपनी मूंग दाल बेच रहे हैं. किसान अपनी उड़द,तुअर दाल बेच रहे हैं. लेकिन इसके साथ साथ हमने मध्यप्रदेश में एक चीज और की है. कि किसानों के जो उत्पाद हैं खासतौर से जिनके दाम भारत सरकार तय नहीं करती है. उनके लिए मूल्य लागत आयोग का गठन हमने कर दिया है. ताकि किसान बता सके कि आलू, प्याज, टमाटर पैदा करने में उसकी क्या लागत आती है. फिर लाभकारी मूल्य की हमलोग नीति बनाएंगे.

हमने एक हजार करोड़ रुपए की लागत से मूल्य स्थिरिकरण कोष बनाया है. ताकि अगर कहीं रेट एकदम से कम होंगे तो हम लोग बाजार में खुद खरीदेंगे ताकि दाम उठ जाए. साथ ही हमने ये फैसला किया है कि अगर किसान दो फसलों के लिए एक साथ लोन लेना चाहता है तो हम उसे जीरो पर्सेंट ब्याज पर देंगे. एक फैसला हमने और किया है कि 378 नगरीय निकाय हैं मध्यप्रदेश में. हम हर नगर में एक किसान बाजार रखेंगे जहां किसान सीधे उपभोक्ता को  अपनी चीजें बेच सकेगा. किसान की तकलीफ जायज है और उसकी तकलीफ को दूर करने के लिए हमने प्रमाणिक प्रयास किये हैं.

फ़र्स्टपोस्ट: किसानों की अपनी व्यथा है. एक तरफ कुदरत का गुस्सा है तो दूसरी तरफ सरकार की नीतियां.

किसानों की सबसे बड़ी शिकायत सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्यों के दावों को लेकर होती है क्योंकि इसके बावजूद किसान कम कीमत पर अपनी चीजें बेचने को मजबूर होते हैं. सच्चाई ये है कि सरकार के पास उसकी खरीद की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती है. किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने को मजबूर हैं. आखिर क्यों किसानों को अपनी उपज की लागत नहीं मिल पाती है?

शिवराज सिंह चौहान: मैं ये मानता हूं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चीजों को खरीदना चाहिये. हमने मध्यप्रदेश में युद्धस्तर पर ये व्यवस्था की है. हम लोग न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद रहे हैं. आगे भी इसकी खरीद की पुख्ता व्यवस्था हम करेंगे.

फ़र्स्टपोस्ट: मुद्रा स्थिरिकरण कोष के बारे में बताएं.

शिवराज: हमने एक हजार रुपए एक कोष में इसलिए डाले ताकि मान लीजिए अचानक किसी चीज के रेट गिर गए तो किसान को घाटा न हो. हमारी सरकार अपना पैसा लगा कर वो चीज खरीद लेगी. उस खरीद का फायदा ये होगा कि एक तो दाम का गिरना थम जाएगा. दूसरी बात ये है कि मिनिमम प्राइज पर जब सरकार खरीदेगी तो उससे नीचे तो दाम नहीं जाएगा.

फ़र्स्टपोस्ट: किसान की ये मांग होती है कि कम से कम विपरीत परिस्थितियों में उसे उसके उत्पादन मूल्य की लागत मिल जाए. क्योंकि ऐसी भी स्थिति होती है कि जब उसके पास भाड़े तक का पैसा नहीं होता है क्योंकि बिक्री की कीमत उससे भी कम होती है. तो क्या ये मुद्रा स्थिरिकरण कोष उसमें कारगर साबित हो सकेगा?

शिवराज: निश्चित तौर पर. जैसे हम प्याज खरीद रहे हैं तो हम उसी से खरीद रहे हैं. एकदम हमें पैसे की जरूरत है प्याज खरीदने की तो हमारे पास एक कोष में पैसा है. हमने प्याज खरीदने में देर नहीं की. 8 रुपए किलो प्याज का मतलब है कि हमने किसान को बहुत बेहतर लाभाकारी मूल्य देने की कोशिश की है.

फ़र्स्टपोस्ट: आपके शासनकाल में मध्यप्रदेश में शहरी विकास काफी तेजी से हुआ. आपको क्या नहीं लगता कि शहरों के विकास की रफ्तार में खेत-खलिहान और गांव-किसान पीछे छूट गए?

शिवराज सिंह चौहान -  मध्यप्रदेश में ये बात सही नहीं है. एक तरफ हमने शहरी विकास किया है तो दूसरी तरफ हर गांव को रोड कनेक्टिविटी दी है. हमारे यहां गांवों की सड़कें बहुत अच्छी बनी हैं. हम लोगों ने गांव में एक रोड कनेक्टिविटी, 24 घंटे बिजली, पीने के पानी के लिए नल जल योजनाएं शुरु की ताकि पीने का साफ पानी मिले. हमने समूह पेयजल योजना बनाई है. हम तेजी से इस पर काम कर रहे हैं. सब गांव में नहीं हुआ है. लेकिन हमने शुरुआत की है. हमने गांव की बुनियादी सुविधाओं पर जोर दिया है.

गांव के अंदर की सड़कें पक्की होना, हर घर में शौचालय होना, स्कूल भवन, आंगनबाड़ी भवन यानी जो मिनिमम सुविधाएं बड़े गांवों में होती हैं जैसे हाट, बाज़ार हों ताकि लोग अपना काम धंधा शुरु कर सकें. उसके साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी हम बेरोजगार नौजवानों को मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना,बहुउद्यमी योजना के अंतर्गत लोन दे रहे हैं. हम नए काम भी शुरु कर रहे हैं. जो बुनियादी सुविधाएं हम शहर में दे रहे हैं वही हम गांवों में भी दे रहे हैं. गांव पहले से बहुत बेहतर हुए हैं विकास के मामले में.

फ़र्स्टपोस्ट: क्या यूपी में किसानों की कर्जमाफी का असर मध्यप्रदेश में भी किसान आंदोलन में दिखाई पड़ा?

शिवराज सिंह चौहान: नहीं मैं ऐसा नहीं कहूंगा. हर प्रदेश की अपनी अलग अलग स्थितियां होती हैं. अब जब हम

एमपी में माइनस दस प्रतिशत पर कर्जा दे रहे हैं यानी आप मूलधन भी दस प्रतिशत कम ले रहे हैं तो यहां परिस्थितियां अलग हैं और बाकी जगह जहां इस तरह की योजनाएं नहीं हैं वहां हालात अलग हैं.

फ़र्स्टपोस्ट: आप कहते हैं कि किसान भगवान हैं और आप खेती को लाभ का धंधा बनाएंगे. लेकिन जब बात कर्ज़माफ़ी की होती है तो शिवराज एकदम से सख्त हो जाते हैं.

शिवराज सिंह चौहान: नहीं.  हम सख्त कभी नहीं हुए. हमने हमेशा कहा कि उत्पादन की लागत कम करना, उत्पादन बढ़ाना, फसलों का विविधिकरण करना, प्राकृतिक आपदा आए तो अच्छी राहत देना. मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है कि अगर ओला, इल्ली, सूखा या पाले से नुकसान हो जाए तो हम 16 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से राहत की राशि देते हैं. पिछले साल चार हजार आठ सौ करोड़ रुपए हमने राहत की राशि बांटी. फिर चार हजार चार सौ करोड़ रुपए हमने फसल बीमा के दिये. तो इतना पैसा बीच में किसानों के पास जाता है. वहीं आठ हजार करोड़ रुपए हम बिजली की सब्सिडी पर खर्च करते हैं. कई तरह की हम सुविधाएं दे रहे हैं. किसानों के प्रति हम पूरी तरह संवेदनशील हैं. लेकिन हमारी योजनाएं अलग अलग तरह की हैं जिससे हम किसानों को राहत पहुंचाने का काम करते हैं.

फ़र्स्टपोस्ट: मंदसौर की हिंसा के बाद उपवास रखने का फैसला कैसे लिया?

शिवराज सिंह चौहान: देखिए मन अंदर से बहुत आहत था. बहुत दुखी था. मंदसौर में जिस तरह से हिंसा हुई वो बहुत दुखी करने वाली थी. जो फायरिंग हुई वो अंदर तक कभी न भूलने वाला जख्म दे गई. परिस्थितियां और बाकी सब चीजें क्या थीं वो न्यायिक जांच से पता चलेगा. इसके बाद भी मुझे लगा कि छिटपुट लोग ये प्रयास कर रहे हैं कि प्रदेश जल जाए. आग लग जाए प्रदेश में. मुझे लगा कि मेरे प्रदेश की जनता शांतिप्रिय है और अगर मैं शांति की अपील उपवास करके करूंगा तो ये नैतिक और आत्मबल बढ़ाने वाला फैसला होगा. मन में ये भरोसा था कि लोगों के मन में ये बात लगेगी. पूरा प्रदेश ये फैसला करेगा कि पूरे प्रदेश में शांति रहे. इसलिए अचानक मुझे लगा कि मुझे उपवास पर बैठना चाहिए.

फ़र्स्टपोस्ट: आपका उपवास तुड़वाने के लिए पीड़ित परिवार सामने आया. उनके मुआवज़े में बात कहां तक आगे बढ़ी है?

शिवराज: उनके खाते में मुआवज़ा पहुंच गया है. जो हमने तय किया था वो उनके खातों में पहुंच गया. वो परिवार हमारे परिवार हैं. जिस परिवार का सदस्य चला गया हो तो उनके कष्ट और तकलीफ को हम जानते हैं. कई बार आंदोलन में इस तरह निर्दोष लोग शिकार हो जाते हैं. हम जीवन भर उनके साथ खड़े हैं.

फ़र्स्टपोस्ट: फ़र्स्टपोस्ट के मंच से आप किसानों को बतौर सीएम और बतौर किसानों के हितैषी नेता क्या संदेश देना चाहेंगे?

शिवराज: मैं किसान बहनों-भाइयों और प्रदेश की जनता से यही कहना चाहूंगा कि सरकार आपकी है, मैं आपका हूं, आपके लिए हूं, हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं उपज को खरीदने के लिए भी, समस्याओं के समाधान के लिए भी. जो तकलीफ है उसके समाधान के लिए मैं जुटा हूं. आप आएं और हम साथ साथ काम करें. मिल कर काम करें और आजतक हम मिलकर काम करते ही रहे हैं. मिल कर काम करेंगे तो हर तरह की समस्या का समाधान होगा. मैं किसान भाइयों-बहनों से ये भी कहना चाहता हूं कि हम पूरी प्याज खरीदेंगे, मूंग खरीदेंगे,उड़द खरीदेंगे. हम भरसक ये कोशिश कर रहे हैं कि हमारे किसानों को ठीक दाम मिल जाएं. आइए मिलकर एकसाथ इस समस्या से निपटें. ये जो आज का समय थोड़ा कष्ट का आया है ये बीतेगा और कल बहुत अच्छा समय हमारा आएगा.

फ़र्स्टपोस्ट: तो ये माना जाए कि भविष्य में फिर किसान आंदोलन के हालात एमपी में नहीं दिखाई देंगे?

शिवराज: मुझे नहीं लगता कि अब भविष्य में ऐसी कोई स्थिति बनेगी.

फ़र्स्टपोस्ट: आखिरी में ये बताएं कि क्या सरकारी मशीनरी की तरफ से किसान आंदोलन की स्थिति के आंकलन में चूक या देरी हो गई?

शिवराज -  देखिए इस तरह के आंदोलन की कल्पना मैंने नहीं की थी. दूसरा ये है कि पूरे प्रदेश में ये आंदोलन नहीं हुआ है. अगर ऐसी बात होती तो पूरे प्रदेश में फैल गया होता. सच्चाई ये है कि हम कल्पना नहीं कर सके कि किसी आंदोलन में लोग आगजनी करेंगे और गाड़ियों में आग लगाएंगे. इसलिए हमने स्थानीय प्रशासन पर कार्रवाई की और कलेक्टर-एसपी को सस्पेंड किया. न्यायिक जांच के बाद जिसके खिलाफ लापरवाही का मामला सामने आएगा उसके खिलाफ कार्रवाई भी होगी. कल्पना किसी को भी नहीं थी कि एकदम ऐसा हो सकता है.