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यूपी के लड़कों को पहला खतरा 'बुजुर्ग ब्रिगेड' से

संकेत इस बात के हैं कि शिवपाल यादव एसपी के बागी प्रत्याशियों का प्रचार करने जाएंगे.

Pramod Joshi

अखिलेश यादव ने सपा की आंतरिक लड़ाई में जीत हासिल करने के बावजूद पार्टी के एक हिस्से को नाराज भी कर लिया है. हालांकि मुलायम सिंह की परंपरागत सीट जसवंतनगर से शिवपाल यादव पार्टी के चुनाव चिह्न पर खड़े हैं. पर उनकी नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ सकती है.

शिवपाल को हाशिए पर पहुंचाना खतरनाक भी हो सकता है. अपमानजनक स्थिति ने उन्हें बगावत की ओर धकेल दिया है. बदले की भावना में वे कुछ भी कर सकते हैं. इससे पार्टी का नुकसान नहीं होगा, यह भी नहीं मान लेना चाहिए.


शिवपाल के लिए असहनीय स्थिति

शिवपाल यादव ने घोषणा की है, हम 11 मार्च के बाद नई पार्टी बनाएंगे.

पार्टी ने जसवंतनगर से टिकट देकर उनके पारिवारिक महत्व को स्वीकार तो किया, पर उनके नामांकन के समय न तो अखिलेश साथ थे और न मुलायम. उनके ज्यादातर समर्थकों के टिकट काट दिए गए हैं. यह स्थिति उनके लिए असहनीय है.

यों भी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन करके काफी ऐसी सीटों पर अपना दावा छोड़ दिया है, जिनपर एसपी कार्यकर्ता लड़ना चाहते थे. अब तक शिवपाल ने कोई कड़वा बयान नहीं दिया था लेकिन मंगलवार को पर्चा भरते हुए उन्होंने अपनी नाराजगी को जाहिर कर दिया. देखना होगा कि अखिलेश उनकी बात को कितनी गंभीरता से लेते हैं?

शिवपाल ने कहा, कल तक बहुत सारी अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन आज हमने पर्चा समाजवादी पार्टी और साइकिल से भर दिया. हालांकि, प्रदेश में पार्टी के स्टार प्रचारकों में उनका नाम नहीं है. अखिलेश ने उनके इलाके में प्रचार का कार्यक्रम भी नहीं बनाया है. संभव है कि मुलायम सिंह उनके प्रचार के लिए आएं.

समाजवादी पार्टी और परिवार के अंदर संग्राम है भी या नहीं, इसे लेकर कयास हैं. विरोधी कहते हैं कि यह सब ड्रामेबाजी है. यह भी सच है कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच सुलह हो चुकी है. या कहें कि टकराव उस सीमा तक नहीं है, जितना था. लेकिन शिवपाल तो अकेले पड़ गए.

मुलायम के विरोधाभासी बयानों से संशय

रविवार को लखनऊ में कांग्रेस और सपा के गठबंधन की घोषणा के बाद मुलायम सिंह यादव का बयान आया कि मैं गठबंधन के पक्ष में प्रचार नहीं करूंगा. दूसरी ओर सोमवार को दिल्ली के एक राष्ट्रीय अखबार में उनका यह बयान भी छपा कि मैं 12 फरवरी से एसपी के लिए प्रचार करूंगा.

उन्होंने अखिलेश के संदर्भ में कहा, 'सब कुछ दे दिया है उसे. आखिर बेटा है मेरा. किसी और ने ये नहीं किया है. (पंजाब के मुख्यमंत्री) बादल को देख लीजिए.' मुलायम सिंह ने यह बात लखनऊ से दिल्ली आते हुए फ्लाइट में कही.

मुलायम ने शिवपाल के संदर्भ में जो कहा वह भी महत्वपूर्ण है.

, 'जीत जाएगा शिवपाल चुनाव. बहुत शरीफ है. नाराज था, पर अब चुप है. मेरे लिए उसने पुलिस की लाठी खाई है.'

मंगलवार को शिवपाल ने चुप्पी तोड़ दी. इटावा में पिछले रविवार को उन्होंने एक नए कार्यालय का उद्घाटन किया. इसका नाम है ‘मुलायम के लोग.’ माना जा रहा है कि इस दफ्तर से समाजवादी पार्टी के बागी उम्मीदवारों की मदद की जाएगी.

शिवपाल सिंह यादव के फेसबुक वॉल से साभार.

शिवपाल यादव जसवंतनगर से एसपी के प्रत्याशी हैं. उनके समर्थक मानते हैं कि वे बागी उम्मीदवार हैं. सवाल है कि उन्होंने नई पार्टी बनाने की घोषणा क्यों की? क्या यह मुलायम सिंह यादव के लिए संदेश है? संभव है उन्हें मना लिया जाए, पर क्या वे अपनी पराजय को इतनी आसानी से स्वीकार कर लेंगे? स्वीकार नहीं करेंगे तो करेंगे क्या? क्या शिवपाल फैक्टर पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है?

खबरें हैं कि उनके कई समर्थक बीजेपी के संपर्क में हैं. नुकसान का अनुमान अभी भले ही न लगाया जा सके, पर कहीं न कहीं होगा जरूर. एसपी के कोर कार्यकर्ता को कांग्रेस के साथ हुए गठबंधन को लेकर शिकायतें भी हैं. शिवपाल को हाशिए पर पहुंचाना पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है.

पिता-पुत्र का राजीनामा होने के बाद मुलायम ने 38 प्रत्याशियों की सूची अखिलेश को दी थी. बताते हैं कि उनमें से भी कुछ को टिकट नहीं दिया गया. जसवंतनगर से भी पहले शिवपाल का नाम नहीं, उनके बेटे आदित्य का नाम था.

संकेत इस बात के हैं कि शिवपाल यादव एसपी के बागी प्रत्याशियों का प्रचार करने जाएंगे. प्रतीक रूप में ही सही जसवंतनगर का इस तरह से ‘बागियों का गढ़’ बनना पार्टी के लिए अशुभ संकेत है.