पिछले रविवार को शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने हरियाणा के पिपली नगर के अनाज बाजार में बड़ी रैली के दौरान ऐसा बयान दिया जिसके बाद हरियाणा से लेकर पंजाब तक सियासी बवाल मच गया. सुखबीर बादल ने कहा कि उनकी पार्टी अकाली दल हरियाणा में अगले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अकेले ही लड़ेगी.
बादल ने दावा किया कि हमने पंजाब में जो भी वादा किया था उसे पूरा किया है. अब हम हरियाणा के लोगों के कल्याण के लिए काम करने की जिम्मेदारी ले सकते हैं. बादल का कहना था कि अब वो यह जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने पंजाबियों से अपील की कि वे हरियाणा में एक नया इतिहास लिखने के लिए अकाली दल के झंडे तले एकत्रित हों. उन्होंने कहा कि एक बार आप अकाली दल के तहत एकजुट हो गए तो आपको सत्ता हासिल करने से कोई रोक नहीं सकता.
कई घोषणाओं का ऐलान
बादल हरियाणा के लोगों से अपनी इस रैली के दौरान कई घोषणाएं भी कर गए. बादल का कहना था कि अगर उनकी पार्टी हरियाणा में सत्ता में आई तो कृषि क्षेत्र के लिए मुफ्त बिजली दी जाएगी. इसके अलावा हर खेत के लिए मुफ्त पाइप सिंचाई पानी, दलित परिवारों को हर महीने मुफ्त 400 यूनिट तक बिजली देने समेत कई घोषणाएं कीं.
हरियाणा में पंजाबी समुदाय के लोगों की तादाद अच्छी खासी है. सुखबीर बादल ने पंजाबी समुदाय के लोगों से अपील भी कर दी कि वे हरियाणा में एक नया अध्याय और नया इतिहास लिखले के लिए अकाली दल के झंडे तले एकजुट हो जाएं.
पिपली में सुखबीर बादल का यह बयान एनडीए के भीतर की उस हलचल को दिखा रहा है, जिसके तहत एक-एक कर बीजेपी के सभी सहयोगी कभी न कभी अपने-अपने हिसाब से दबाव की राजनीति कर रहे हैं.
नाराज हो रहे हैं एनडीए के सहयोगी
आंध्रप्रदेश के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग के नाम पर टीडीपी ने पहले ही एनडीए से खुदको अलग कर लिया है. अब चंद्रबाबू नायडू खुलकर विपक्ष की भूमिका में नजर आने लगे हैं. कई मौकों पर एलजेपी की तरफ से भी बीजेपी को आंखें दिखाई जाती हैं. एलजेपी सांसद और पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने एससी-एसटी एक्ट के मामले में सरकार के खिलाफ कड़े तेवर दिखाए थे. उन्होंने हर संभावना को खुला रखने की बात की थी, लेकिन, मोदी सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पटलने के बाद एलजेपी के तेवर नरम पड़ गए हैं.
लेकिन, बीजेपी के लिए ज्यादा परेशानी पुरानी सहयोगी शिवसेना के तेवर से है. शिवसेना ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि 2019 का लोकसभा चुनाव वो बीजेपी से अलग लड़ेगी. बीजेपी की तरफ से कई बार डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी की गई है लेकिन, इन सबके बावजूद शिवसेना के तेवर नरम नहीं पड़ रहे हैं.
अब अकाली दल की पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में एकला चलो का नारा बीजेपी के लिए राहत वाला तो कतई नहीं कहा जा सकता. गौरतलब है कि इसके पहले तक बीजेपी के साथ मिलकर ही अकाली दल चुनाव लड़ती रही है. यहां तक कि पंजाब में भी पिछले साल के विधानसभा चुनाव के वक्त भी दोनों पार्टियों ने गठबंधन के तहत ही चुनाव लड़ा था.
किसको होगा फायदा
यहां तक कि बीजेपी के भीतर इस बात को लेकर आवाज भी उठती रही कि लगातार दस साल से सत्ता में रहने के कारण अकाली सरकार के खिलाफ पंजाब में एंटीइंकंबेंसी फैक्टर है. बीजेपी के भीतर एक धड़ा चाहता था कि अगर अलग होकर चुनाव लड़ें तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को ही होगा और पार्टी आप के उभार को रोक सकेगी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. बीजेपी आलाकमान ने हार की पूरी संभावना के बावजूद उस वक्त अपने पुराने सहयोगी के ही साथ जाने का फैसला किया.
नतीजा सामने था और बीजेपी-अकाली गठबंधन की बुरी हार हुई. यहां तक कि कांग्रेस सत्ता में आई जबकि आप मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरा. बावजूद इसके बीजेपी अकाली दल को नाराज करने का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती.
अपने सहयोगियों को सहेजने और एकजुट रखने की कोशिश में बीजेपी आलाकमान लगा हुआ है. इसी कड़ी में जून में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रकाश सिंह बादल बादल और सुखबीर सिंह बादल से मुलाकात भी की थी. 2019 की संभावनाओं पर चर्चा भी की थी.
अकाली दल ने नहीं खोले पत्ते
ये अलग बात है कि पंजाब को लेकर अभी अकाली दल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, जिससे कहा जा सके कि आने वाले दिनों में पंजाब को लेकर अलग-अलग राह पर चलने की कोशिश हो रही है. लेकिन, पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का हरियाणा में पंजाबी समुदाय को एक कर अकाली दल के बैनर तले एक होने का नारा सहयोगी बीजेपी के लिए परेशान करने वाला है.
क्योंकि हरियाणा में पंजाबी समुदाय की तादाद अच्छी खासी है. ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के साथ ही हरियाणा में विधानसभा का चुनाव भी हो सकता है. अबतक अकाली दल बीजेपी की सहयोगी के तौर पर ही रही है. लेकिन, बीजेपी को मदद करने वाली अकाली अगर हरियाणा में बीजेपी से अलग राह अख्तियार कर ली तो फिर उसे मुश्किलें हो सकती हैं.