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कांग्रेस को 'अंडा' लाने से बचना है, तो अपनाना होगा थरूर का फंडा

शशि थरूर ने कहा है कि कांग्रेस के लिए 'लाइट बीजेपी' की फेरी लगाना 'कोक जीरो' जैसा ही है

Akshaya Mishra

अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के साथ एक साक्षात्कार में शशि थरूर ने कहा है कि, कांग्रेस के लिए 'लाइट बीजेपी' की फेरी लगाना 'कोक जीरो' जैसा ही है...क्योंकि हमें शून्य के अलावा और कुछ नहीं मिलने वाला.

उन्होंने बीजेपी का मुकाबला करने के लिए हलके हिंदुत्व की दिशा में बढ़ने वाले विपक्षी दलों के बढ़ते लालच को लेकर उन्हें आगाह किया है. उन्होंने कांग्रेस से धर्मनिरपेक्षता को लेकर किसी तरह का समझौता न करने की नीति पर चलने की अपील की.


चलो ठीक है. विपक्षी दलों का भगवा दिशा में आगे बढ़ना धर्मनिरपेक्षता की हार जैसा होगा. इसका एक मतलब यह भी होगा कि हम अपने देश की विविधता वाली संस्कृति का खात्मा भी कर रहे हैं. शायद ये एक अनुकूलन, मिलनसारिता और सहिष्णु गुणों के लिए प्रसिद्ध देश के सबसे बड़े आनुवंशिक परिवर्तन की शुरुआत होगी.

ये परिवर्तन भारत को किसी भी इस्लामी देश जैसा बना देगा. मिसाल के लिए दूर जाने की जरूरत नहीं है पाकिस्तान को ही ले लीजिए.

माना जाता है कि एक हिंदूकरण से रंगा-पुता भारत विनाशकारी साबित होगा जो कि आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ते समाज और उदार और बड़े पैमाने पर मिल कर चलने वाले अतीत के साथ लगातार टकराव में फंसा देश बन जाएगा.

लेकिन सबसे पहले तो ये सोचने वाली बात है कि धर्मनिरपेक्षता इतनी हताश हालत में पहुंची ही क्यों? दुर्भाग्य से धर्मनिरपेक्षतावादियों को जो बीजेपी द्वारा बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं की दलाली पर शोर मचाने में देर नहीं लगाते, को अभी भी अपने-आप से कई जवाब मांगने हैं.

कांग्रेस नेता और सांसद शशि थरूर

अल्पसंख्यकों को तुष्ट करने में लगे, बहुसंख्यक विरोधी.....शैतानी और दुर्भावनापूर्ण सोच वाले- यही वो छवि है जो बीजेपी ने धर्मनिरपेक्षतावादियों की बना दी है . हालांकि, ये पार्टी इस रणनीति पर काफी समय से कायम है लेकिन दूसरी तरफ से इस पर कोई कायदे का जवाबी हमला नहीं बोला गया है.

रक्षात्मक रवैया

कांग्रेस सहित दूसरी तरफ खड़ी सभी बड़ी ताकतों ने काफी हद तक इसके खिलाफ अपने जवाब में रक्षात्मक रवैया ही अख्तियार किया हुआ है. इस तरह से मानो वे किसी अपराधबोध से ग्रस्त हों.

कांग्रेस का पुनरुत्थान काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि इस स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्ष देश में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को ये पार्टी कितने बेहतर तरीके से लोगों के सामने पेश कर सकेगी. ये इस पार्टी का इतिहास और इसके नेताओं का कद देखते हुए किसी विडंबना से कम नहीं है.

लेकिन बात ये है कि अब ये भी साफ नजर आ रहा है कि पार्टी में कोई न कोई गड़बड़ जरूर है. अब ये पार्टी केवल धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करके लोगों के पास नहीं जा सकती.

अब इसे किसी न किसी तरह से कोई नया रास्ता निकालना ही होगा. फिर उस नए रास्ते या नजरिए को सामान्य लोगों तक इस तरह से पहुंचाना होगा कि वे उसपर विश्वास कर सकें.

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चूंकि...इस पार्टी की छवि भावनात्मक रूप से जनता के दिलो-दिमाग में काफी उलटी पैठ गई है, इसलिए इसको बड़ी बारीकी से अपना इलाज करना होगा.

बीजेपी ने बड़ी चतुराई से धर्मनिरपेक्षता पर हमले को राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ दिया और लोगों की कल्पनाओं को अपनी मुट्ठी में कर लिया है. आखिरकार, धर्मनिरपेक्षता किसी भी दिन राष्ट्रवाद से बड़ा और गंभीर मुद्दा नहीं हो सकता.

राष्ट्रवादी कलेवर

यहां तक कि ये पार्टी जब हिंदुत्व की बात करती है तो उसे भी राष्ट्रवादी रंग में रंगकर ही करती है. इस माहौल में कांग्रेस के लिए ये जरूरी हो गया है कि वो धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपने नए नजरिए में बीजेपी के अपनायी गई इस रूपरेखा को ध्यान में रखे. क्या ऐसा करना आसान होगा? हरगिज नहीं.

थरूर आक्रामक धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते हैं. ये सुनने में अच्छा लगता है पर ऐसा होगा कैसे? अगर कांग्रेस पार्टी अपने मौजूदा तौर-तरीकों पर बरकरार रहती है तो इसका सीधा मतलब ये होगा कि वो फिर से अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के प्रति खुलकर नर्म रुख अपना रही है.

मुसलमानों के प्रति अब तक कांग्रेस का दृष्टिकोण काफी हद तक अस्पष्ट और पाखंड से भरा रहा है. अब वो जमाने गए जब किसी समुदाय में असुरक्षा की भावना को भड़का कर चुनावी राजनीति की जाती थी.

जितना ज्यादा दिग्विजय सिंह जैसे नेता राष्ट्र के खिलाफ अपराधों में शामिल लोगों को समर्थन देंगे, उतना ही वो बहुसंख्यकों से दूर चले जाएंगे और तो और मुसलमानों का भी एक हिस्सा उन्हें छोड़ जाएगा.

एक और महत्वपूर्ण सवाल है. इस पूरे समीकरण से अल्पसंख्यकों को बाहर ले आइए. इसके बाद ये देखने की बात होगी कि हिंदुओं के लिए आप अपनी धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या कैसे करते हैं? शायद ही कोई ऐसा स्पष्टीकरण होगा जो हमने अभी तक नहीं सुना होगा.

कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता हिंदुओं के लिए उदासीन होने के साथ-साथ उन्हें खारिज भी करती है. जिसका नतीजा अब नजर आ रहा है. यदि पार्टी गंभीर है तो उसे खुद को धर्मनिरपेक्षता के मायने पहले समझाने होंगे और इसपर अपनी समझ स्पष्ट करनी होगी. उसके बाद ही ये जनता तक पहुंचने की कोशिश कर सकती है.

पार्टी को थरूर जैसे लोगों की जरूरत है जो कि इस मुद्दे पर गहराई से विचार कर सकें. बेशक, नरम हिंदुत्व ज्यादा बढ़त नहीं दिला पाएगा जैसा कि वे कहते हैं. 'पार्टी को शून्य मिलेगा', लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं कि ये फॉर्मूला कांग्रेस को बीजेपी की वैचारिक-बी टीम तो बना ही देगा.