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बाबरी मस्जिद विध्वंस: सुप्रीम कोर्ट ने कहा जल्द हो सुनवाई, आडवाणी-भारती पर केस चले

आडवाणी समेत सभी 13 आरोपियों पर न सिर्फ भड़काऊ भाषण देने बल्कि मस्जिद गिराने का भी आपराधिक केस चलेगा.

FP Politics

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से आया ताजा बयान बीजेपी के बड़े और कुछ रिटायर हो चुके नेताओं की मुश्किलें बढ़ा सकता है.

अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट इंडिया टुडे के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में आरोपी रहे बीजेपी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के खिलाफ चल रहे केस की सुनवाई में हो रही देरी पर चिंता जाहिर की है.


कोर्ट ने कहा है कि केस के जल्द निपटारे के लिए अगर जरुरी हो तो वो तीनों आरोपियों के खिलाफ लखनऊ और रायबरेली कोर्ट में अलग-अलग चल रहे मामलों की सुनवाई एक साथ कर सकती है.

कोर्ट ने रायबरेली में चल रहे बाबरी विध्वंस के एक अन्य मामले को लखनऊ भेजने की बात कही है, जहां पहले से ही एक मुख्य मामले की सुनवाई चल रही है. सीबीआई ने भी इस पर सहमति जताई है.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ये भी संकेत दिया कि इस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 13 लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने का मामला एक बार फिर से खोला जा सकता है.

कौन गया सुप्रीम कोर्ट

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की न्यूज वेबसाइट लिखता है, साल 2010 में रायबरेली की निचली अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े आपराधिक साजिश रचने के आरोप से आडवाणी सहित सभी 13 लोगों को बरी करने के फैसले को दिया था.

रायबरेली की निचली अदालत के इस फैसले को मई 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी मान लिया था.

इसके फैसले के आने के 9 महीने बाद सीबीआई ने हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. तब आडवाणी और अन्य आरोपियों ने पूरे मामले में देरी होने के कारण इस याचिका को निरस्त करने की मांग की थी. जिसपर कोर्ट ने सीबीआई से सफाई मांगी.

साल 2015 में 70 साल के हाजी महबूब ने भी इस मसले पर अदालत में अपील की. महबूब ने कोर्ट से कहा कि केंद्र में बीजेपी की सरकार होने और गृहमंत्री राजनाथ सिंह का सीबीआई पर पूरा कंट्रोल होने के कारण ये मुमकिन है कि ये पार्टी के बड़े नेताओं के खिलाफ साजिश का केस चलाया ही न जाए.

इस मामले के एक आरोपी कल्याण सिंह इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं.

कौन हैं हाजी महबूब   

हाजी महबूब रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के न सिर्फ आरंभिक याचिकाकर्ताओं में से एक हैं बल्कि वे रायबरेली में इससे जुड़े केस में मुस्लिम समुदाय की तरफ से चश्मदीद भी रहे हैं.

वे 2011 में सीबीआई कोर्ट के सामने पेश होकर ये बयान दे चुके हैं कि उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी और बीजेपी के अन्य बड़े नेताओं को 6 दिसंबर 1992 वाले दिन मस्जिद को गिराए जाने से पहले भड़काऊ भाषण देते हुए देखा था.

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महबूब ने आरोप हटाए जाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी याचिका डाली थी, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया था. उनके मुताबिक चूंकि सीबीआई ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में अपील कर रखी थी इसलिए उन्हें इसकी जरुरत महसूस नहीं हुई.

लेकिन, अब जबकि केंद्र में बीजेपी की सरकार है तब उन्हें डर है कि सीबीआई कहीं पूरे मामले को दबाव में आकर कमजोर न कर दे.

क्या ये इस मामले का इकलौता विचाराधीन केस है?

नहीं, ऐसा नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2010 में ये आदेश दिया था कि विवादास्पद भूमि की 2.77 एकड़ जमीन को हिंदू, मुसलमानों और निर्मोही अखाड़ा के बीच बांट दिया जाए लेकिन साल 2011 के मई में अदालत ने एक बार फिर से वहां 1994 और 2002 के फैसलों के अनुरूप यथापूर्व स्थिती बहाल करने का आदेश दिया.

जिसका अनुमोदन साल 2013 में जस्टिस आफ़ताब आलम ने भी किया और तब से इस विवादस्पद भूमि में किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हुई है.

ट्रायल कोर्ट में और कितने मामले?

लखनऊ और रायबरेली के कोर्ट में एक-एक केस हैं, जिसकी सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट एक साथ करना चाहती है.

लखनऊ हाईकोर्ट में दर्ज मुकदमें में आरोपियों पर बाबरी मस्जिद का विध्वंस करने का आरोप है और रायबरेली की अदालत में दर्ज केस में भड़काऊ भाषण देकर लोगों को भड़काने का आरोप है.

हालांकि, तकनीकी कारणों का हवाला देकर लखनऊ हाईकोर्ट ने आडवाणी समेत सभी 13 आरोपियों के खिलाफ केस रद्द कर दिया था.

कौन हैं आरोपी?

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद थाने में दो एफआईआर दर्ज किए गए थे. पहले एफआईआर में कारसेवकों पर मस्जिद ढहाने का आरोप लगाया गया था.

दूसरे एफआईआर में, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णुहरि डालमिया और साध्वी ऋतंभरा पर भड़काऊ भाषण देकर कार सेवकों को उत्तेजित करने का आरोप लगा था. इसमें बाल ठाकरे का नाम भी शामिल था जिसे बाद में हटा लिया गया.

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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई    

पिछले 2 साल से कोर्ट में इस केस की सुनवाई नहीं हुई है. इसपर आखिरी बार तब कुछ हलचल हुई थी जब मार्च 2015 में अदालत ने हाजी महबूब को छुट्टी पर जाने की अर्जी डालने की मंजूरी दी थी.

हाजी महबूब की अर्जी सीबीआई की अपील के साथ आयी थी. बाद में जजों के रिटायरमेंट के बाद ये बेंच बदल गया.

सोमवार सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीसी घोष और रोहिंटन नरीमन की खंडपीठ ने कहा है कि, सिर्फ तकनीकी आधार पर आडवाणी और अन्य लोगों को बरी करने की बात नहीं मानी जा सकती.

अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को सभी 13 लोगों के खिलाफ सप्लीमेंटरी चार्जशीट दायर करने का भी निर्देश देने का संकेत दिया है, जैसा अन्य आठ आरोपियों के खिलाफ किया गया.

अब क्या होगा?

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला 22 मार्च को आ सकता है. लेकिन, एलके आडवाणी के वकील केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक साजिश के मामले को दोबारा खोलने का विरोध किया है.

उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि कोर्ट ऐसी कोई भी आदेश देने से पहले उन्हें अदालत में अपनी बात रखने का मौका दें.

उनके मुताबिक ज्वाइंट ट्रायल का आदेश देने पर इस मामले के सभी 183 गवाहों को दोबारा बुलाना पड़ेगा जो काफी मुश्किल काम है. इसलिए मामले की दोबारा सुनवाई की अनुमति नहीं देनी चाहिए.

लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा आदेश दे देती है तो आडवाणी समेत सभी 13 आरोपियों पर न सिर्फ भड़काऊ भाषण देने या भीड़ को उत्तेजित करने का केस चलेगा, बल्कि- उनपर मस्जिद गिराने का भी आपराधिक केस चलेगा.