मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने उपवास के प्रताप से कर्जदार किसानों के आंदोलन का अंत क्या किया. खुद की हार से निराश विपक्षी फिक्सिंग का आरोप लगाने लगे. मीडिया में बयान देने लगे कि उपवास फिक्स था. अब समझ नहीं आता कि फिक्सिंग पर इतना गंभीर होने की क्या जरूरत है.
अपने देश में तो क्रिकेट हो या सियासत सर्वदा से फिक्सिंग संस्कृति का बोलबाला रहा है. यहां सब कुछ फिक्स होता रहा है, यह भी कि कब कौन सी खिचड़ी पकानी है और हांड़ी में कब तक उबाल लाना है. फिक्सिंग सियासत में समस्या नहीं है और ना ही यह इसका स्याह पक्ष है. फिक्सिंग तो सियासत का गोपनीय पर सबसे अहम पक्ष है.
सियासी किताब ककहरा है फिक्सिंग
फिक्सिंग सियासी किताब का ककहरा है. जिसे जाने बिना राजनीति शास्त्र को समझना नामुमकिन है. जैसे कब सत्ताधारी दल के विरोध में शेर जैसी आवाज निकालनी है, कब किस मुद्दे पर बकरी की तरह मिमियाना है, कब वैचारिक विरोध के बावजूद गधे की तरह रेंकना है और कब जनहित का हवाला देकर घोड़े की तरह हिनहिनाना है.
यह सब जाने बिना सियासत में उतरना बिना चप्पू के नाव चलाने जैसा है. अच्छा राजनीतिज्ञ वही होता है जो अपनी सहूलियत और फायदे के हिसाब से सब कुछ फिक्स करता है. कब किस विवाद को उठाना है, अपना उल्लू सीधा करने के लिए कार्यकर्त्ता को किस तरह उल्लू बनाना है. कैसे मतदाता को मुंगेरी लाल के हसीन सपनों में उलझाना है. यानी ए से लेकर जेड तक सब कुछ फिक्स.
वैसे भी अपने यहां क्या कुछ फिक्स नहीं रहा है. पिछले दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो साफ हो जायेगा की सबकुछ फिक्स था. अखिलेश बनाम शिवपाल की लड़ाई फिक्स थी. आडवाणी की राष्ट्रपति उम्मीदवारी से जुदाई फिक्स थी. महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी का घमासान फिक्स था. बिहार में परीक्षा से पहले ही टॉपर छात्रों का स्थान फिक्स था. विजय माल्या का लंदन भाग जाना फिक्स था.
नो फिक्स नो गेम
जानकर तो यहां तक बताते हैं कि धरना, प्रदर्शन ही नहीं मुजफ्फरपुर, सहारनपुर और मंदसौर का दंगा भी फिक्स था. फिक्सिंग को कौन नहीं स्वीकारता है. अरविंद केजरीवाल मानते हैं कि ईवीएम की बटन में बीजेपी का निशान फिक्स था.
मायावती का मानना है कि यूपी चुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी का गठजोड़ फिक्स था. बीजेपी का कहना है कि केजरीवाल पर स्याही फेकना फिक्स था. शरद यादव का कहना है कि नीतीश कुमार का सोनिया गांधी के डिनर को ना और बीजेपी के लंच के लिए हां पहले से फिक्स था.
अवधू गुरु का तो कहना है कि फिक्स कामयाबी का सबसे कारगर फंडा है. फिक्स होने से रिस्क नहीं रहता. सरकारी दफ्तर में बाबू का रेट फिक्स हो तो काम की गारंटी तय है, ठेके में मंत्री जी का कोटा फिक्स हो तो विकास की गारंटी तय है. रियलिटी शो में मारपीट गालीगलौज फिक्स हो तो प्रसिद्धी तय है. रैंपवाक पर मॉडल का टॉप सरकना फिक्स हो तो अखबारों में जगह मिलना तय है.
लीलाधर का तो कहना है कि नो रिस्क, नो गेम का जमाना गया अब तो 'नो फिक्स, नो गेम' का जमाना है. लिहाजा शिवराज चौहान को उपवास फिक्स करने पर दाद देनी चाहिए.