मेरठ की सरधना सीट संगीत सोम की वजह से सुर्खियों में रही है. कहते हैं कि सरधना की सीट पर संगीत सोम का सिक्का चलता है. समाजवादी पार्टी ने अतुल प्रधान को संगीत सोम के खिलाफ उतारा है. पिछले चुनाव में अतुल प्रधान को 48 हजार वोट मिले थे.
सरधना की सीट का इतिहास
साल 2002 में सरधना की सीट पर बीजेपी ने कब्जा किया था. लेकिन साल 2007 में बीजेपी को हरा कर बीएसपी ने कब्जा कर लिया. लेकिन साल 2012 में बीजेपी ने दोबारा सीट पर जीत दर्ज की. हालांकि यहां चुनावी समीकरण बिगाड़ने में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल सबसे आगे है. पिछले चुनाव में आरएलडी तीसरे तो समाजवादी पार्टी चौथे नंबर पर रही.
संगीत सोम की जाट-ठाकुर वोट पर नजर
सरधना विधानसभा में करीब 3 लाख वोटर हैं जिसमें जाट वोटर सिर्फ 16 हजार हैं. वहीं सैनी,प्रजापति,पाल और कश्यप को कुल वोट 48 हजार होते हैं. बीजेपी की नजर इसी समीकरण पर है. पिछले चुनाव में संगीत सोम को 62 हजार वोट मिले थे. संगीत सोम खुद भी ठाकुर हैं और इसलिए उनको 37 हजार ठाकुर वोटों का भी आसरा है.
लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर गुर्जर उम्मीदवार उतार दिया जिससे संगीत सोम को कड़ी टक्कर मिल सकती है. सरधना में 36 हजार गुर्जर वोटर हैं. जबकि 75 हजार मुस्लिम वोटर हैं. ऐसे में सपा-कांग्रेस गठबंधन की कोशिश इन वोटों पर है. हालांकि इतिहास गवाह है कि समाजवादी पार्टी कभी सरधना से चुनाव नहीं जीती है.
सरधना सीट पर जाट गुर्जर और मुस्लिम वोटर की बड़ी तादाद है. सभी पार्टियों ने अपने अपने गणित के हिसाब से उम्मीदवारों को उतारा है.
बसपा ने खेला मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव
लेकिन अतुल प्रधान के लिये बसपा भी बड़ी काट के साथ ताल ठोंक रही है. बसपा ने हाजी याकूब कुरैशी के बेटे इमरान कुरैशी को मैदान में उतारा है. बीएसपी की नजर मुस्लिम वोटों के अलावा के 22 प्रतिशत दलित वोटों पर है.
साफ तौर पर देखा जा सकता है कि इस बार संगीत सोम के लिये सरधना की राह आसान नहीं है क्योंकि जाट वोटर का एक हिस्सा राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार यशपाल मलिक के लिये तैयार बैठा है.
भले ही सरधना की सीट पर पिछले तीन दशक से राजपूत और जाटों का ही कब्जा रहा है. लेकिन वक्त के साथ हालात बदलते गए हैं. पिछले चुनाव में बीएसपी के हाजी याकूब कुरैशी ने संगीत सोम को कड़ी टक्कर दी थी तो सपा के अतुल प्रधान भी गुर्जर वोटों के दम पर रेस में बने रहे थे.