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समाजवाद की पढ़ाई में कहां चूक गए ‘प्रोफेसर साब’?

मुलायम को लगता है कि राम गोपाल, अखिलेश को भड़का रहे हैं.

Amit Singh

समाजवादी पार्टी से निकाले गए रामगोपाल यादव 'प्रोफ़ेसर' के नाम से जाने जाते हैं. लोग जब सम्मान से उनकी बात करते हैं तो उन्हें 'प्रोफेसर साहब' कहते हैं, जब गुस्से में होते हैं तो उन्हें प्रोफ़ेसर कहते हैं. जैसा कि शिवपाल यादव ने कहा.

प्रोफेसर राम गोपाल ने एमएससी फिजिक्स से किया है. तो ज़ाहिर है उन्हें न्यूटन का तीसरा सिद्धांत याद होगा 'वॉट गोज़ अप मस्ट कम डाउन'. यानी जो ऊपर जाता है, उसे नीचे आना ही होता है.


वो मुलायम सिंह की आवाज माने जाते थे. उनके थिंक टैंक. वो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे.

अमर सिंह के निकाले जाने के बाद से पार्टी का चेहरा थे. मुख्यमंत्री के साथी थे. पर सोमवार को सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव को पार्टी से निकाल बाहर किया.

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, ' राम गोपाल के बाहर निकाले जाने का पहला कारण शिवपाल और राम गोपाल में लंबे समय से चला आ रहा टकराव है.'

प्रदीप सिंह के मुताबिक शिवपाल कई बार पार्टी फोरम पर कह चुके हैं कि राम गोपाल पार्टी के लोगों को अपमानित करते हैं.

उनके हिसाब से दूसरा कारण राम गोपाल और अमर सिंह के बीच की तनातनी है. अमर सिंह को लगता है कि उन्हें पार्टी से बाहर निकलवाने में राम गोपाल की अहम भूमिका रही है. इसलिए अमर सिंह और शिवपाल साथ हो कर राम गोपाल पर टूट पड़े.

जब जनता दल यू, समता पार्टी और समाजवादी पार्टी के महागठबंधन की बात चली तो राम गोपाल इसके खिलाफ अड़ गए, ये बना तीसरा कारण. मुलायम सिंह यादव उस समय परिवार के दबाव में मान गए थे, लेकिन यह बात उन्होंने लालू और नीतीश को बता दी थी.

अब राम गोपाल, अखिलेश के सलाहकार बन गए हैं. प्रदीप सिंह का कहना है कि 'शिवपाल और मुलायम दोनों को लगता है कि राम गोपाल, अखिलेश को भड़का रहे हैं. इसलिए उन्हें पार्टी से बाहर निकाल फेंका.'

उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को जाता है. वे मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई हैं. राम गोपाल यादव ने 1988 में राजनीति में कदम रखा. वे इटावा के बसरेहर ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जीते.

एक बार लोकसभा का चुनाव जीते प्रोफेसर साब चौथी बार राज्‍यसभा के सदस्‍य बने हैं. उन्‍हें पार्टी में दूसरे दलों के साथ अच्‍छे संबंध बनाने का महारथी कहा जाता है.

अमर सिंह के पार्टी से निष्‍कासन के बाद से दिल्‍ली में उन्‍हें ही पार्टी का चेहरा माना जाता है. प्रोफेसर साब राज्य सभा में पार्टी के नेता है. कांग्रेस और भाजपा के बाद सबसे ज्यादा 19 सांसदों का नेतृत्व करते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि शिवपाल और राम गोपाल का झगड़ा यूपी में 2012 के चुनावों के बाद बढ़ा.

दरअसल उस वक्त शिवपाल चाहते थे कि दिल्ली की राजनीति कर रहे राम गोपाल, उन्हें यूपी का मुख्यमंत्री पद दिलाने में मदद करें. लेकिन राम गोपाल अखिलेश के साथ हो लिए.

बाद में 2014 में राम गोपाल के बेटे अक्षय के फिरोजाबाद सीट से सांसद बनने के बाद यह तनाव खुलकर सामने आने लगा.

त्रिपाठी कहते हैं, ' फिरोजाबाद सीट से शिवपाल का बेटा आदित्य भी दावेदार था लेकिन टिकट मिली रामगोपाल के बेटे को.’

त्रिपाठी कहते हैं कि शिवपाल ने यही खुन्नस अब निकाली है. दरअसल राम गोपाल पार्टी का सौम्य चेहरा माने जाते हैं.

वे परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, इसलिए दूसरे दलों के साथ बातचीत में वे पार्टी का पक्ष मजबूती से रखते हैं. हालांकि पार्टी के लिए पहले ये काम अमर सिंह किया करते थे. उनके जाने के बाद वही रोल राम गोपाल अदा कर रहे थे.

मई 2016 में लखनऊ में हुई पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राम गोपाल ने अमर सिंह के राज्यसभा में चुने जाने को लेकर नाराजगी जताई थी.

बाद में मुलायम सिंह ने उनसे अलग से मुलाकात करके उन्हें मना लिया. पर तल्खी खत्म नहीं हुई.

अगस्त 2016 में इसे लेकर अमर सिंह ने नाराजगी दिखाई. हालांकि उसके बाद जया प्रदा को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर सुलह कर ली गई थी.

रामगोपाल ने शिवपाल पर भी उसी तेवर के साथ हमला बोला, जिस तेवर के साथ वो दिल्ली में विपक्षियों पर बोलते थे.

अक्टूबर 2015 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक को आरएसएस का स्वयंसेवक कहते हुए हमला बोला था.

इससे पहले अगस्त 2013 में केंद्र सरकार द्वारा आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में रिपोर्ट मांगने पर राम गोपाल ने कहा कि यूपी को आईएएस की जरूरत ही नहीं है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, 'राम गोपाल और शिवपाल के बीच पार्टी में नंबर दो बनने की होड़ चल रही थी.'

जोशी के अनुसार यह भ्रम खुद मुलायम सिंह यादव के बयान से पैदा हुआ.

मुलायम ने शिवपाल को पार्टी अध्यक्ष बनाते हुए कहा कि राम गोपाल की हैसियत पार्टी में नंबर दो की है.

जोशी कहते हैं कि मुलायम ने साफ नहीं किया कि उनके बाद नंबर दो या फिर शिवपाल के बाद नंबर दो.

जोशी मानते है कि 'शिवपाल ने समाजवादी पार्टी को बनाने में बहुत मेहनत की है और बहुत हद तक उनका कंट्रोल भी पार्टी पर राम गोपाल से बेहतर है. पर राम गोपाल दिल्ली में पार्टी का चेहरा हैं. इसलिए उन्हें लगता है कि मुलायम सिंह के बाद वे नेता है.'

पर राम गोपाल ने अकेले फिजिक्स ही नहीं पढ़ी है, वो पॉलिटिकल साइंस में भी एमए हैं. वो जानते हैं कि मुलायम सिंह किसी को छोड़ते नहीं, फिर चाहे उसने कितनी भी गालियां दी हों.

अमर सिंह हों या बेनी प्रसाद वर्मा या आजम खान, जो गया है, वो लौट कर आया है. बस मुलायम ने हर एक को उसकी सही जगह दिखाई है.

वैसे भी समाजवादी कहानी में ये इंटरवल है द एंड नहीं.