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सपा का संग्राम : मुलायम के लिए चुनौती बन सकती है अखिलेश की बर्बादी

अखिलेश यादव ने बहुत संवेदनशील वक्त पर अपने पिता से बगावत कर दी है.

Ajay Singh

आप अपने बच्चों की बराबरी नहीं कर सकते, खासकर तब जब वे पैरों तले हों. वर्तमान परिदृश्य में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को इस सिद्ध कहावत को नजरअंदाज करने के लिए निश्चित तौर पर पछताना चाहिए.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बहुत संवेदनशील वक्त पर अपने पिता से बगावत कर दी है. मुलायम सिंह की उम्र और सेहत अब उनके साथ नहीं है. उनका शिथिल शरीर और धीमी पड़ चुकी चाल उनके गिरते स्वास्थ्य की कहानी कहते हैं.


एक फुर्तीले और जोशीले पहलवान का राजनेता बनना बीते दिनों की कहानी है. आजाद भारत में सबसे मजबूत क्षेत्रीय नेताओं में से एक मुलायम सिंह यादव रविवार को हुई उच्च स्तरीय पार्टी मीटिंग में टूटते हुए दिखे. उनके फैसले सिर्फ राजनीतिक नहीं थे, उससे कहीं आगे थे. पहली बार उनपर किसी बाहरी ने नहीं बल्कि परिवार ने हमला किया था.

मुलायम सिंह की मौजूदा पत्नी साधना गुप्ता से उनका रिश्ता एक खुला रहस्य रहा है. लेकिन यह कभी राजनीतिक मुद्दा नहीं बना. उनकी पहली पत्नी और अखिलेश की मां के देहांत के बाद 2007 में उन्होंने साधना गुप्ता को अपनी पत्नी घोषित कर दिया. तब भी यह मसला राजनीतिक बहस का मुद्दा नहीं बना. उनके विरोधियों ने भी उनकी निजता का सम्मान किया. लेकिन यादव परिवार के इस झगड़े में उनकी दूसरी शादी भी मुद्दा बनी.

अखिलेश समर्थक उदयवीर सिंह ने अपने पत्र में साधना की भूमिका षडयंत्रकारी के रूप में बताई. मुलायम को पता है कि वह पत्र एक एमएलसी द्वारा तैयार किया था, जो अखिलेश की शह पर था.

अगले कुछ दिनों तक मुलायम की कोशिश होगी कि अखिलेश को नियंत्रित करें, जिनके दूसरे राजनीतिक अखाड़े की योजना संभवत: तैयार हो चुकी है.

बहुत संभव है कि अखिलेश चुनौती पेश करेंगे और अपने पद से हटने से इनकार करेंगे. यह उनका राजनीतिक पतन साबित हो सकता है.

बहुत कम लोगों को पता है कि मुलायम सिंह का जीवन एक अनूठी कहानी है. वे मिथकीय पात्र फीनिक्स की तरह राख से उठे हैं. उन्हें चुनौतियों से निपटना आता है.

मुलायम सिंह ने लोहिया से हटकर पहले चौधरी चरण सिंह के प्रति अपनी वफादारी साबित की. जबकि लोहिया और चरण सिंह में कुछ भी समानता नहीं थी.

उनके सामने अगली चुनौती वीपी सिंह के रूप में आई. जिसका उन्होंने डटकर मुकाबला किया. कारसेवकों पर कार्रवाई का आदेश देना, ऐसा कदम था जो अंतत: जनता दल सरकार के अवसान का कारण बना.

एक राजनीतिक कदम के रूप में उन्होंने 1992 में चंद्रशेखर का साथ दिया. 1993 में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई और बीएसपी से गठबंधन किया.

उनके राजनीतिक भाग्य ने 2 जून 1995 को करवट ली. इसी दिन मायावती ने समर्थन वापसी की घोषणा की. जिसके बाद मायावती पर समाजवादियों की ओर से नियोजित हमला हुआ.

बीजेपी मायावती के बचाव में आई और 'जय भीम और जय श्रीराम' के नारे के साथ वो अगली मुख्यमंत्री बन गईं.

हालांकि, बीएसपी और बीजेपी के सामने चुनौती पेश करके मुलायम ने वापसी की.

लोहियावादी राजनीति के पुराने स्कूल के कुशल खिलाड़ी रहे मुलायम के लिए अपने भाग्य का उलटफेर करने का इतिहास अभूतपूर्व है. अगर अखिलेश यह सोचते हैं कि अपने पिता को चुनौती देने के लिए उन्हें बीजेपी का सपोर्ट मिलेगा तो यह उनका भोलापन साबित होगा.

इस संकट की घड़ी में राज्यपाल राम नाइक की भूमिका अहम साबित होगी.

एक मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश के हिस्से में असफलताएं हैं. सैकड़ों दंगे और भ्रष्टाचार उनके खाते में दर्ज है. सरकार में उनकी न्यूनतम दिलचस्पी रही है. पार्टी से भी उनका मेलजोल बेहद कम रहा है.

इसके उलट, अब भी मुलायम सिंह की कार्यकर्ताओं और पार्टी पर पकड़ है. उन्हें सहानुभूति मिलेगी. अपने पिता को गलत साबित करके अखिलेश उस नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएंगे जो अगले चुनाव में होने वाला है.