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यूपी चुनाव: समाजवादी कुनबे का घमासान कहां तक जाएगा ?

फिलहाल जो हालात बन रहे हैं उसमें अखिलेश कमजोर पड़ते दिख रहे हैं.

Amitesh

मुलायम परिवार के झगड़े की कहानी अब क्लाइमेक्स पर पहुंच गई है. फिलहाल जो हालात बन रहे हैं उसमें अखिलेश कमजोर पड़ते दिख रहे हैं.

दरअसल इस लड़ाई का अंदेशा पहले से ही था. माना जा रहा था कि टिकट बंटवारे के वक्त शिवपाल और अखिलेश की तकरार खुलकर सामने आएगी और हुआ भी वैसे ही.


मुलायम और शिवपाल यादव की तरफ से जारी की गई 325 उम्मीदवारों की सूची से अपने समर्थकों के नाम गायब होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नाराज हो गए. नेताजी से मुलाकात भी की लेकिन बात बनी नहीं. तो फिर अलग से 235 उम्मीदवारों की अपनी सूची जारी कर दी.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि उनके समर्थक 3 मंत्रियों पवन पांडेय, अरविंद सिंह गोप और रामगोविंद के टिकट काट दिए गए. इसके अलावा 46 विधायकों के भी टिकट काट दिए गए हैं.

अखिलेश यादव की अपनी सूची में 171 मौजूदा विधायकों को टिकट दिया गया है जिसमें उनके समर्थक सभी 3 मंत्री भी शामिल हैं.

गुरुवार देर रात चले सियासी ड्रामे के बीच अखिलेश यादव की सूची के जवाब में शिवपाल ने 68 उम्मीदवारों की एक दूसरी सूची जारी कर दी.

ऐसे हालात में दोनों के बीच किसी भी तरह की समझौते की कोई गुंजाइश बनती नहीं दिख रही है.

अब सवाल यही पूछे जा रहे हैं कि इसके बाद क्या होगा. क्या अखिलेश अलग पार्टी बना लेंगे या फिर उन्हें ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा या एक बार फिर से अखिलेश के लोगों को टिकट देकर मामले को शांत कर लिया जाएगा.

अगर पहली संभावना पर गौर करें तो अखिलेश के लिए मौजूदा वक्त में अलग पार्टी बनाना आसान नहीं होगा. क्योंकि, भले ही इस वक्त अखिलेश सूबे के मुख्यमंत्री हैं लेकिन, संगठन पर मुलायम और शिवपाल की ही पकड़ है और पार्टी का अधिकतर कैडर इस वक्त उन्हीं के साथ खड़ा है.

अब जबकि चुनाव का बिगुल अगले हफ्ते ही बजने वाला है तो इस सूरत में आनन-फानन में अलग पार्टी बनाकर मैदान में उतरना अखिलेश के लिए इतना आसान नहीं होगा.

सबसे बड़ा बवाल तब होगा जब पार्टी के चुनाव चिह्न की बात सामने आएगी. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के नाते मुलायम और शिवपाल के पास ही उम्मीदवारों को पार्टी चुनाव चिह्न देने का अधिकार होगा. ऐसे में अखिलेश के समर्थकों को अलग चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरना होगा.

हालाकि, दोनों खेमों की सूची में जो नाम हैं उन्हें कोई खास परेशानी नहीं होगी, लेकिन, जिन उम्मीदवारों का नाम केवल अखिलेश की सूची में है, उसे निर्दलीय या किसी दूसरे चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरना पड़ सकता है.

इसके अलावा दूसरी संभावना है कि अगर अखिलेश यादव इसी तरह अपने रुख  पर कायम रहे तो उन्हें पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. इस सूरत में अखिलेश को मजबूरी में अलग पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरना पड़ सकता है.

ऐसी सूरत में समाजवादी पार्टी की दो फाड़ हो जाएगी और अखिलेश अपने पांच साल के कामकाज और विकास की छवि को लेकर जनता के बीच जा सकते हैं.

लेकिन, अभी भी एक संभावना हो सकती है कि परिवार के भीतर के झगड़े को शांत करने के लिए मुलायम आखिरी दांव चलें और अखिलेश यादव के कुछ समर्थक विधायकों और मंत्रियों को फिर टिकट देकर एक कॉमन सूची जारी कर दी जाए.

मौजूदा हालात को देखकर तो नहीं लगता कि किसी भी तरह मुलायम के कुनबे में लगी आग इस तरह शांत हो पाएगी.

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