view all

यादवी दंगल पार्ट 2: दांव मुलायम लगाएंगे और पटखनी शिवपाल खाएंगे

अखिलेश यादव के साथ लड़ाई में शिवपाल को ये नहीं समझना चाहिए मुलायम उनके साथ नजर आएंगे

Amitesh

शिवपाल सिंह यादव इन दिनों फिर से ताल ठोंक रहे हैं. समाजवादी पार्टी की लड़ाई में भतीजे अखिलेश यादव से पटखनी खाने के बाद भी लगता है  शिवपाल को अपनी शक्ति पर भरोसा कम नहीं हुआ है. वरना एक बार फिर से शिवपाल वही गलती करने के लिए इतने आतुर नहीं होते जिसकी बदौलत वो समाजवादी पार्टी में हाशिए पर पहुंच गए हैं.

शिवपाल सिंह यादव यूपी विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ने की अपील करते दिखे. फिर अब नई पार्टी बनाने की बात करने लगे हैं. यानी समाजवादी पार्टी में एक टूट और परिवार के भीतर एक और बिखराव की कहानी सामने आ रही है.


कहां से मिल रही है शिवपाल को शक्ति

सवाल यही खड़ा है कि क्या शिवपाल यादव के पास इतनी ताकत है जिसके दम पर वो अपनी अलग पार्टी और पहचान बनाकर अखिलेश यादव को चुनौती दे सकें. इसका जवाब तो न में ही मिलेगा.

अगर ऐसा होता तो शिवपाल विधानसभा चुनाव से पहले भी ऐसा करने का साहस करते. तो फिर शिवपाल चुनाव बाद आखिर किस दम पर ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं.

दरअसल, शिवपाल सिंह यादव को ऐसा लग रहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव में हार के बाद अखिलेश यादव थोड़ा कमजोर हुए हैं  जिसका फायदा उठाकर उन पर प्रहार किया जा सकता है. अलग पार्टी बनाकर अखिलेश को चुनौती दी जा सकती है.

लेकिन, सबकुछ निर्भर करेगा मुलायम सिंह यादव के दांव पर. शिवपाल की तरफ से भले ही मुलायम सिंह यादव को नई पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने की बात कही जा रही है, लेकिन, क्या मुलायम सिंह यादव खुद इसके लिए तैयार होंगे. यही एक बड़ा सवाल बना हुआ है.

शिवपाल के बयान पर गौर करें तो साफ जाहिर है कि शिवपाल ने नई पार्टी बनाने की बात एकतरफा की है. मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष बनाए जाने की बात भी शिवपाल की तरफ से ही की जा रही है जिस पर खुद मुलायम सिंह यादव खामोश हैं. लेकिन, राजनीति के चतुर खिलाड़ी मुलायम को लेकर किसी तरह का कयास लगाना अक्सर गलत ही साबित होता है.

ऐसे में शिवपाल सिंह यादव का अलग पार्टी बनाना कोई खास प्रभावकारी होने के बजाए महज एक रस्मअदायगी भर ही होगा.

वरिष्ठ पत्रकार अंबिकानंद सहाय के मुताबिक ‘बिना मुलायम सिंह यादव के अलग हुए समाजवादी पार्टी के भीतर बड़ा बिखराव संभव नहीं है. शिवपाल भले ही अलग होकर पार्टी बना लें लेकिन जबतक मुलायम सिंह यादव अलग पार्टी में शामिल नहीं होते तब तक समाजवादी पार्टी में दोफाड़ संभव नहीं दिखता.’

सपा में सबसे बड़ा है मुलायम का कद

दरअसल, राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में अभी भी मुलायम सिंह यादव का कद अखिलेश यादव से बड़ा है. आलम यह है कि अभी भी राष्ट्रपति चुनाव से लेकर बाकी हर मोर्चे में जब विपक्ष की घेरे बंदी की बात सामने आती है तो मुलायम सिंह यादव की ही पूछ होती है.

इसका उदाहरण सामने है जब कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने मुलायम सिंह यादव को फोन कर राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के साझा उम्मीदवार पर चर्चा की है, जबकि राहुल ने अखिलेश को फोन घुमाया है.

अंबिकानंद सहाय के मुताबिक, ‘आज के हालात में अखिलेश यादव की पार्टी पर पकड़ मजबूत दिख रही है, ऐसी सूरत में अलग होने पर शिवपाल सिंह यादव के साथ शायद ही कोई विधायक भी जाए.’

समाजवादी पार्टी के भीतर की लड़ाई पर गौर करें तो पहले भी मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव को कई बार डांट-फटकार भी लगा चुके है. काफी नाराजगी भी दिखा चुके हैं.

लेकिन, सियासत के जानकार इस बात को बार-बार कहते हैं कि मुलायम सिंह ने पूरी लड़ाई में शिवपाल सिंह यादव के साथ खड़े होने के बाद भी कभी ऐसा कदम नहीं उठाया जिससे अखिलेश को किसी तरह से कोई नुकसान हो.

यहां तक कि पूरी लड़ाई के बाद चुनाव से  ठीक पहले समाजवादी पार्टी पर अखिलेश का कब्जा हो गया. अखिलेश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए, मुख्यमंत्री पहले से ही थे और पार्टी का चुनाव चिह्न भी उन्हें ही मिल गया.

दूसरी तरफ, शिवपाल सिंह यादव के हाथ से यूपी अध्यक्ष का पद भी गया, मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा और आखिर में चुनाव चिन्ह भी हार कर पूरी बाजी गंवा बैठे.

अब सबकुछ गंवाने के बाद मुलायम शायद ही चाहेंगे कि एक बार फिर से पार्टी में कलह और बिखराव हो और अखिलेश के हाथ से पार्टी की कमान छीन ली जाए.

ऐसे में शिवपाल सिंह यादव के ताल ठोंकने का मतलब ये कतई नहीं लगाना चाहिए कि भाई शिवपाल सिंह यादव के साथ खड़े होकर मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश के खिलाफ ताल ठोकते नजर आएंगे.