यूपी पुलिस के एंटी टेरर स्क्वॉड ने 8 मार्च को बेहद पेशेवराना तरीके से संदिग्ध आतंकवादी को ढेर कर दिया.
लखनऊ में हुई इस मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के बारे में कहा जा रहा है कि वो इस्लामिक स्टेट के खुरासान मॉड्यूल का सदस्य था.
आम तौर पर ये माना जाता है कि भारत में कई आतंकी हमलों के पीछे आईएसआईएस के खुरासान मॉड्यूल का ही हाथ था.
ये मॉड्यूल भारत के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी सक्रिय बताया जाता है.
अगर एटीएस, सैफुल्लाह को मारने में कामयाब न होती तो वो और उसके साथी आतंकवादी घटनाओं की साजिश रचते रहते और उन्हें अंजाम देने की कोशिश करते.
मुठभेड़ पर अफसोस
मगर एक बड़े अखबार में ये खबर पढ़कर बड़ा अफसोस हुआ, जिसमें कहा गया था कि गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने लखनऊ में हुई मुठभेड़ पर सवाल उठाए हैं.
गृह मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से खबर दी गई थी कि इस अधिकारी ने यूपी पुलिस के इस दावे पर सवाल उठाया था कि सैफुल्लाह के आईएसआईएस से संबंध थे.
हालांकि ये बाद बहुत जरूरी है कि संदिग्ध आतंकी सैफुल्लाह के इस्लामिक स्टेट से ताल्लुक को साबित किया जाए.
लेकिन अगर ये संबंध नहीं भी साबित होता तो कोई बड़ी बात नहीं. एक बात तो साफ है कि वो एक आतंकवादी था.
आईएस की सोच से प्रभावित युवा
अब वो किसी भी संगठन से जुड़ा था, इससे क्या फर्क पड़ता है. ये सोचना तो बचकानी बात होगी कि आईएसआईएस, भारत में सक्रिय नहीं है.
अब ये जानकारी आम है कि बहुत से युवा इस्लामिक स्टेट की आतंकवादी सोच से प्रभावित हैं.
वो सीरिया से चलाए जा रहे कट्टरपंथी अभियान से जुड़ने की कोशिश में हैं. भारत के कुछ युवाओं को बरगलाकर आतंकवादी बनाने के लिए ये तो जरूरी नहीं कि बगदादी भारत आए.
पिछले कुछ दिनों में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में आईएसआईएस के मॉड्यूल पकड़े हैं.
युवाओं को बरगलाने में सोशल मीडिया का बड़ा रोल
युवाओं को इस्लामिक स्टेट से जोड़ने मे सोशल मीडिया का बड़ा रोल रहा है. इस्लामिक स्टेट के समर्थन वाले कई ट्विटर हैंडल, युवाओं को अपनी तरफ खींचने में कामयाब रहे हैं.
इनसे प्रभावित होकर सैफुल्लाह जैसे कई युवा पुलिस से मुठभेड़ की सूरत में सरेंडर करने के बजाय 'शहीद' होने को तरजीह देते हैं.
उन्हें लगता है कि पुलिस के हाथ पड़ने पर उनके संगठन के तमाम राज फाश हो जाएंगे. यानी ये युवा कट्टरपंथ से इतने प्रभावित हैं कि उन्हें जान देने से भी गुरेज नहीं. सैफुल्लाह के बारे में भी बताया जाता है कि पुलिस ने उसे कई बार सरेंडर करने को कहा, मगर वो राजी नहीं हुआ.
पुलिस ने सैफुल्लाह के भाई से भी इस काम में मदद मांगी. मगर सैफुल्लाह ने भाई की अपील भी ठुकरा दी. साफ है कि सैफुल्लाह को मुठभेड़ में मार गिराने की राह पर पुलिस तभी आगे बढ़ी जब उसके पास कोई और चारा नहीं बचा था.
पुलिस के रवैये पर नाराजगी
मीडिया में गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से पुलिस के रवैये पर नाराजगी की खबर आई थी.
गृह मंत्रालय के अधिकारियों का मानना था कि यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस को हड़बड़ी में बयान देने से बचना चाहिए था.
गृह मंत्रालय ने दोनों ही मामलों की एनआईए से जांच की सिफारिश की थी. मगर बयान देने पर ऐतराज जताकर गृह मंत्रालय ने पुलिस बलों का मनोबल ही गिराया है.
खास तौर से यूपी पुलिस का तो आतंकवादी संगठनों के खिलाफ अभियान चलता रहा है. आंतरिक सुरक्षा के मामले में सबसे जिम्मेदार मंत्रालय होने के नाते गृह मंत्रालय को हमेशा नीति बनाने और सलाह मशविरे देने पर जोर देना चाहिए.
साथ ही किसी आतंकवाद निरोधी कार्रवाई के दौरान तमाम एजेंसियों के बीच तालमेल पर भी गृह मंत्रालय का जोर होना चाहिए.
वरना ऐसे नाराजगी जाहिर करने वाले बयानों से गलत संदेश जाता है. आतंकवाद से निपटने के सुरक्षा बलों के मनोबल पर असर पड़ता है.
भारत में ऐसी घटनाएं चौंकाने वाली
आईएसआईएस से प्रभावित स्थानीय संगठन पूरी दुनिया में आतंकवादी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. ऐसे में भारत में ऐसी घटनाएं चौंकाने वाली नहीं हैं.
बल्कि हमें तो और भी सजग होने की जरूरत है. सवाल ये है कि क्या हम किसी बड़े हमले के ट्रेलर देख रहे हैं?
पेरिस, ब्रसेल्स, इस्तांबुल और काबुल समेत कई जगहों पर कई आतंकी हमले हुए हैं. कमोबेश सब में आईएसआईएस का नाम आया है.
पर फिलहाल किसी का सीधा ताल्लुक साबित नहीं हुआ है. हमें बहस शुरू करने से पहले इन घटनाओं से सख्ती से निपटने की जरूरत है.
पुलिस ने लिया धैर्य से काम
साथ ही आतंकवाद से लड़ने वाले सुरक्षा बलों के मनोबल का भी हमें खयाल रखना होगा.
लखनऊ का ऑपरेशन आईजी स्तर के अधिकारी की अगुवाई में करीब तेरह घंटे तक चला था.
इसी से हमें मामले की गंभीरता का एहसास होना चाहिए था. पुलिस ने बेहद धैर्य से काम लिया.
उसकी कोशिश आतंकवादी को जिंदा पकड़ने की थी. इसके लिए हर मुमकिन कोशिश की गई.
लखनऊ का ठाकुरगंज इलाका बेहद संवेदनशील है. साथ ही वो घनी बस्ती है. पुलिस के ऊपर ये जिम्मेदारी भी थी कि गोलीबारी में किसी बेगुनाह को नुकसान न पहुंचे.
चुनाव के वक्त नेता, ऐसे हालात का अपने हित में इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं.
इन हालात में यूपी पुलिस ने बहुत सब्र से काम लेते हुए अपना अभियान चलाया. आतंकवादियों के खिलाफ अभियान यूपी में आखिरी दौर की वोटिंग से एक दिन पहले शुरू हुआ था.
पुलिसवालों पर था भारी दवाब
ऐसे में पुलिसवालों के ऊपर कितना दबाव होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
अधिकारियों को पता था कि कोई भी इस मुठभेड़ को फर्जी करार दे सकता है. चुनौतियां बड़ी थीं पर आखिर में पुलिस अपने मिशन में कामयाब हुई.
अब तक जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक सैफुल्लाह जिस गुट का सदस्य था, उसका अगुवा अतीक मुजफ्फर था.
ये आतंकवादी गुट लखनऊ को उत्तर भारत के मुख्यालय के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था.
सुरक्षा और जांच एजेंसियों को इस गुट के और सदस्यों के बारे में अहम जानकारियां मिली हैं.
ये आतंकी देश को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखते थे. अब यूपी पुलिस की कार्रवाई से कम से कम अगले कुछ दिनों तक आतंकी मॉड्यूल शांत रहेंगे.
पुलिस की कार्रवाई से कई आतंकवादी घटनाओं को टालने में मदद मिली है. अब हमें इस मामले को राजनैतिक रंग देने से बचना चाहिए. और एनआईए को जांच पूरी कर लेने का इंतजार करना चाहिए.
ये वक्त है कि हम एकजुट होकर आईएसआईएस या किसी भी आतंकी संगठन से निपटें. बाकी बहस तो बाद में होती रहेगी.