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समाजवादी दंगल में स्वाहा हुआ सैफई महोत्सव

पिछले कई सालों से मुलायम की सामाजिक और राजनीतिक हैसियत को सैफई महोत्सव के जरिए परखा जाता रहा है.

Ravishankar Singh

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक और सामाजिक प्रभुत्व के प्रदर्शन का प्रतीक कहा जाने वाला सैफई महोत्सव इस बार रद्द हो गया है.

पिछले कई सालों से मुलायम सिंह यादव की सामाजिक और राजनीतिक हैसियत को सैफई महोत्सव के जरिए परखा और आंका जाता रहा है. इस घटना को कई लोग शक की निगाहों से भी देख रहे हैं. कहीं सैफई महोत्सव का रद्द होना मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक युग का अंत तो नहीं?


यूपी में अगर मुलायम सिंह यादव की पावर परखनी हो तो सैफई पैरामीटर का काम करता था. सैफई वही जगह है, जहां पर देश के बड़े-बड़े उद्योगपति, राजनीतिज्ञ और सिने जगत के नायक और महानायक अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए लालायित रहा करते थे.

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख,सलमान और करीना कपूर, कैटरीना कैफ जैसी अभिनेत्रियों ने सैफई में कार्यक्रम पेश किया है. दूसरे दलों के राजनेता भी सैफई में पहुंच कर मुलायम सिंह यादव के सामने मौजूदगी दर्ज करवाते रहते थे.

पर इस बार ऐसा नहीं हो पाया. मुलायम सिंह यादव ने भी कभी सोचा नहीं होगा कि जिस जगह पर पहलवानी करते हुए विरोधियों के सारे दांव को चित कर लखनऊ तक पहुंचे. फिर लखनऊ से दिल्ली तक और एक वक्त ऐसा भी आया देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.

लेकिन दौर बदला और सियासत बदली तो अपने बेटे के ही एक दांव से गश खाए मुलायम सिंह यादव को चुनाव चिह्न के लिए चुनाव आयोग की दहलीज तक पहुंचना पड़ा. भाई और बेटे में सामंजस्य बनाते-बनाते मुलायम सिंह यादव खुद उलझ गए हैं.

भारतीय इतिहास में यह पहली घटना नहीं है जब किसी अपने ने ही अपने को सत्ता से बेदखल कर दिया हो. इससे पहले भी आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव को उनके दामाद चंद्रबाबू नायडु ने पार्टी से बेदखल कर दिया था.

उत्तर भारत की राजनीति में पहली घटना 

वह दक्षिण भारत का मामला था. उत्तर भारत में पिता को पुत्र द्वारा बेदखल करने की यह पहली घटना है. यादव परिवार में मचे घमासान ने सैफई महोत्सव पर पानी फेर दिया. आयोजकों के अनुसार प्रदेश में चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने की संभावना को देखते हुए सैफई महोत्सव को रद्द किया गया है.

सीएम अखिलेश यादव के समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद खुशियां मनाते उनके समर्थक. (पीटीआई)

यह दूसरा मौका है जब सैफई महोत्सव को रद्द किया गया. इससे पहले भी सैफई महोत्सव साल 2012 में रद्द किया गया था जब प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू की गई थी.

आयोजक चाहे कुछ भी कहें पर इस बार सैफई महोत्सव रद्द होने की असली वजह है यादव कुनबे में आपसी खींचतान की लड़ाई.

सैफई महोत्सव का आयोजन हर साल 26 दिसंबर से 12 जनवरी के बीच होता है. 26 दिसंबर से 12 जनवरी तक चलने वाले इस कार्यक्रम में नाच-गाने, साहित्यिक कविता पाठ की प्रस्तुति और लोक कलाकारों द्वारा कार्यक्रम पेश किए जाते हैं.

सैफई महोत्सव के समापन समारोह पर बॉलीवुड की कई नामचीन हस्तियों को बुलाया जाता है. लेकिन इस बार सैफईवासियों को ये रंगीन नजारें देखने को नहीं मिले.

परिवार के लिए लखनऊ से भी ज्यादा महत्व है सैफई का 

उत्तर प्रदेश की अधिकृत राजधानी भले ही लखनऊ है पर यादव परिवार के लिए लखनऊ से ज्यादा अहमियत सैफई रखती है. सैफई कहने को तो इटावा जिले का एक छोटा सा गांव है पर आधुनिक सुख-सुविधाओं के मामले में सैफई लखनऊ जैसे शहरों को टक्कर दे रहा है. इस गांव में हवाई अड्डे से लेकर मेडिकल कॉलेज और स्टेडियम तक मौजूद हैं.

बाप-बेटे की प्रभुत्व की लड़ाई दिल्ली तक पहुंच गई है. पार्टी दो खेमे में बंट गई है. एक खेमा बेटे अखिलेश का है तो दूसरा खेमा पिता मुलायम का है.

वर्षों से जो मुलायम के वफादर हुआ करते थे, वे अचानक मुलायम सिंह यादव का साथ छोड़ बेटे के साथ हो गए हैं. अमर सिंह, जयाप्रदा तो मुलायम के वर्षों से विश्वस्त रहे हैं. पर नरेश अग्रवाल, किरणमय नंदा जैसे मुलायम भक्त भी अखिलेश भक्त हो गए हैं.

पिछले एक-दो सालों से पिता-पुत्र में नूरा-कुश्ती का खेल चल रहा है. शह और मात के इस खेल में कभी पिता पार्टी पर हावी होते दिखते हैं तो अगले ही पल पुत्र पिता को पटखनी दे देता है. मुलायम के राजनीतिक करियर में अाजमाए गए हर दांव का पुत्र अखिलेश के पास जवाब है.

जिस तरह पार्टी में दो फाड़ हो गया है उसी तरह परिवार के अंदर भी दो फाड़ हो गए हैं. एक धड़ा मुलायम-शिवपाल के साथ है तो दूसरा अखिलेश यादव के साथ खड़ा है.

मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव और उनके बेटे अक्षय यादव, पोता तेजप्रताप यादव और भतीजा धर्मेंद्र यादव पूरी मजबूती के साथ अखिलेश के साथ खड़े हैं.