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यूपी चुनाव 2017: सैफई समाजवाद के सशक्त शिवपाल

शिवपाल यादव मुलायम सिंह के मददगार और सपा के राजनीतिक मैनेजर हैं.

Krishna Kant

साल 2009 के आम चुनावों के पहले किसी एक आम सुबह की तरह मुलायम सिंह सैफई के अपने घर से प्रचार के लिए निकले.

ब्लैक कैट कमांडो जिप्सियों पर लटक रहे थे. गाड़ियां चालू थी. स्टाफ, समर्थक और कारिंदे तैयार खड़े थे. मुलायम सिंह को गाड़ी में बैठते-बैठते एक किसान ने उनकी बांह पकड़ के रोका और बताया कि पास के गांव में कोई बुजुर्ग नहीं रहे.


मुलायम सिंह काफिले के साथ बिना बोले निकले और बीच रास्ते में ड्राइवर को बोले फलां गांव चलो.

आगे वाली गाड़ियां आगे निकल गईं, पीछे वाले हड़बड़ाए पर जैसे-तैसे नेता जी के पीछे हो लिए. चूंकी गांव के अंदर लंबी चौड़ी गाड़ियां घुस नहीं सकती थीं, इसलिए नेता झट से उतरे और नालियों-गलियों को उलांघते, पहुंच गए गमी वाले घर में.

दो मिनट रुके और पूछा, 'क्या इंतजाम है?'. झोपड़ी के बाहर बैठा आदमी बोला, 'कहां है कुछ'. मुलायम मुड़े बोले, 'शिवपाल को बुलाओ'.

पांच मिनट में हांफते हुए शिवपाल यादव आये. मुलायम वहां मौजूद बीस आदमियों के बीच में डपट कर बोले, 'क्या करते हो, इतना तक ध्यान नहीं देते. करो इनका काम.'

शिवपाल जो खुद चुनाव प्रचार पर जा रहे थे, वहीं रुक गए. बिना एक शब्द बोले शिवपाल लगे मोबाइल पर राशन और तंबू-कनात की व्यवस्था करने.

ये शिवपाल की खासियत है. चाहे किसी गरीब किसान का इंतजाम करना हो या सरकार बनाने के लिए विधायकों और बाहुबलियों का, मुलायम उन्हीं को याद करते हैं.

लखनउ के वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव कहते हैं, 'शिवपाल के तीन पहलू हैं. एक अपने भाई के साथी और मददगार. दूसरा, शिवपाल सपा के राजनीतिक मैनेजर रहे हैं.'

राव कहते हैं, ' मायावती की जगह मुलायम सिंह (2003 में ) मुख्यमंत्री बने थे. अगर शिवपाल विधायकों को तोड़-ताड़ कर न लाते, तो सरकार नहीं बनती.'

'तीसरा, नेता विरोधी दल के रूप में शिवपाल, मायावती के पांच साल (2007-12) के शासन में अकेले सामना करते रहे. मुलायम और अन्य नेता दिल्ली में रहते थे.'

राजनीति की राह आसान नहीं

शिवपाल यादव ने दैनिक भास्कर से बातचीत में एक बार कहा था, '70 के दशक में चंबल के बीहड़ जिले इटावा में राजनीति की राह आसान नहीं थी. 1967 में जसवंतनगर से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुलायम के विरोधियों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी.'

'कई बार विरोधियों ने मुलायम सिंह पर जानलेवा हमला भी कराया. यही वो समय था, जब हम शिवपाल और चचेरे भाई रामगोपाल यादव मुलायम सिंह के साथ राजनीति में आ गए. शिवपाल ने मुलायम सिंह की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली.'

लखनउ के बड़े पत्रकार वीर विक्रम बहादुर सिंह कहते हैं, 'संगठन तो शिवपाल का ही खड़ा किया हुआ है. वो ऐसे आदमी हैं, जो हर तरह के कार्यकर्ताओं को साथ रखते हैं.'

'अखिलेश साफसुथरी छवि के हैं, उन्हें दबंग, आपराधिक इमेज वाले लोग नहीं भाते. पर शिवपाल इन तमाम तरह के लोगों को सहारा देते हैं. इसलिए शिवपाल धरातल के ज्यादा निकट हैं.'

मुलायम सिंह को पता है उत्तर प्रदेश की राजनीति में दबंग कितने जरूरी हैं.

सिंह कहते हैं, 'सपा जिस तरह की पार्टी है, शिवपाल उसमें सबसे कामयाब हैं. इसीलिए मुलायम ने कहा कि शिवपाल जिता भी सकते हैं, हरा भी सकते हैं.'

शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह के जीवन पर लिखी किताब ‘लोहिया के लेनिन’ में लिखा है, 'नेता जी जब भी इटावा आते, मैं अपने साथियों के साथ खड़ा रहता. हम लोगों को काफी सतर्क रहना पड़ता, कई रातें जागकर बितानी पड़ती.'

'सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे होने के कारण रामगोपाल रणनीति बनाने में मुलायम की मदद करते थे और मैं नेताजी की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालता था.'

वीर विक्रम बहादुर सिंह आगे कहते हैं, 'अपराध और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के आरोप सही हैं. वो जेल में बंद मुख्तार अंसारी को पार्टी में लाए. सपा में ऐसे लोग ज्यादा हैं भी.'

पार्टी की शुरुआती राजनीति भी उन्हीं लोगों के बीच शुरू हुई थी. शिवपाल का जनाधार भी ऐसे ही लोगों के बीच में है.'

शिवपाल दबंगो और विवादित लोगों के साथ दिखने से घबराते नहीं. उनके बात करने के अंदाज से काम करने का तरीका साफ दिखता है.

साल 2012 में सरकार बनने के बाद उन्होंने योजना समिति की बैठक में अधिकारियों को नसीहत देते हुए कहा, 'मैंने तो पीडब्ल्यूडी वालों से खुलेआम कह दिया था, कि अगर मेहनत करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हो, मगर डकैती नहीं डालोगे, सही है न? '

सपा सरकार की अराजक छवि बनाने के पीछे सबसे बड़ा हाथ शिवपाल का माना जाता है. विरोधियों की तरफ से उन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का भी आरोप लगता है.

इन सबके बावजूद सपा की ताकत मुलायम सिंह के हाथ में ही है. उन्हें लगता है कि अखिलेश यादव के इर्दगिर्द जमा युवा मंडली 'चापलूसों की मंडली' है.

वो चुनाव नहीं जिता सकते. चुनाव जिताने के लिए जिस तरह जमीनी काम करने की जरूरत है, वह शिवपाल यादव ही कर सकते हैं.

इसलिए मुलायम आज पारिवारिक घमासान के बीच भी सार्वजनिक रूप से शिवपाल की तारीफ करने से नहीं चूकते.