पहले के एक आलेख में फर्स्टपोस्ट ने ये बताया था कि कैसे राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार का सबूत पेश कर सियासी भूकंप लाने की चुनौती दी थी. राहुल गांधी का ये सियासी दांव फूंके हुए कारतूस की तरह साबित हुआ. हालांकि सियासी रणनीति के तौर पर ये और बेहतर तरीके से कहा जा सकता था .
तर्क ये था कि कांग्रेस के युवराज की विश्वसनीयता इतनी कम हो चुकी है कि उनके आरोप महज जुमले ही साबित होते हैं. बावजूद इसके उनके पास गंवाने के लिए कोई खास राजनीतिक पूंजी नहीं है .
दरअसल हमेशा की तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष अपेक्षाओं पर खरे उतरे और अपने बयान की वजह से सियासी गलियारों में उनकी काफी फजीहत भी हुई. लेकिन अगर कोई ये सोचता है कि राहुल गांधी आगे ऐसी सियासी रणनीति के जरिए दोबारा कोई राजनीतिक दुस्साहस नहीं करने की सबक सीखेंगे तो उन्हें निराशा होगी.
विरोधियों को फायदा पहुंचाते हैं राहुल
राहुल गांधी भले खुद की सियासी स्वीकार्यता बढ़ाने में पिछले कई सालों से जुटे हों लेकिन वो ऐसे विशिष्ट नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हैं जिनकी सियासी रणनीति हमेशा से विरोधियों के लिए फायदेमंद साबित होती रही है. यही वजह है कि कुछ नहीं से भला वो बीजेपी के सबसे निडर सहयोगी और पार्टी को सियासी फायदा पहुंचाने वालों में से एक कहे जा सकते हैं.
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मेहसाना में फ्लॉप शो के फौरन बाद गुरुवार को फिर से उन्होंने व्यर्थ काम में अपनी ऊर्जा तब झोंक दी जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप दोबारा से मढ़ा. उन्हें इन आरोपों से साफ सुथरा होकर बाहर निकलने की चुनौती दे डाली.
ऐसा राहुल गांधी ने तब कहा जबकि मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इनकम टैक्स सेटेलमेंट कमिशन (आईटीएससी) ने सहारा के दस्तावेजों को रद्दी का कागज करार देते हुए इसे बेकार बताया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही बहाल रखा.
संसद के ज्यादातर बाधित रहे शीतकालीन सत्र के दौरान धरती को हिला देने वाली सूनामी लाने की धमकी देकर कांग्रेस उपाध्यक्ष ने आखिरकार 21 दिसंबर को एक नया सवाल छोड़कर सियासी बवाल खड़ा करने की कोशिश की थी. उन्होंने दोबारा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारी होने का राग अलापा जिसे देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट कई मौकों पर पहले ही खारिज कर चुकी है .
गुजरात में एक रैली के दौरान कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने जिस ‘सहारा-बिड़ला पेपर्स’ का जिक्र किया था वो दरअसल फर्जी इनकम टैक्स के दस्तावेज हैं जिसके आधार पर ही एक एनजीओ की तरफ से वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी. जस्टिस अरुण मिश्रा और जे एस खेहर की दो जजों की बेंच ने दो मौकों पर कथित कंप्यूटर एंट्री को महज चालाकी से तैयार किया गया और मनगढंत दस्तावेज बताया जिसकी कोई साख नहीं है.
प्रशांत भूषण को लगी कोर्ट में फटकार
हालांकि प्रशांत भूषण की मांग पर 25 नवंबर को हुई पहली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कथित डायरी जो वर्ष 2013 की है, उसकी जांच स्पेशल इन्वेसिटिगेटिव टीम के जरिए करवाने का आदेश दिया. इकॉनमिक टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक तब बेंच ने कहा कि 'दुनिया में आज कोई भी कितनी ही संख्या में एंट्री कर सकता है. आज एक व्यक्ति किसी जगह या कंप्यूटर में 100 लोगों के लिए 100 एंट्री कर सकता है. इसलिए जांच होनी चाहिए?'
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हालांकि दस्तावेज को बेकार करार देते हुए बेंच ने प्रशांत भूषण को भरोसेमंद सबूत के साथ 14 दिसंबर को पेश होने को कहा. लेकिन इस दिन सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को ये कहते हुए कड़ी फटकार लगाई कि संवैधानिक पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मनगढ़ंत आरोप लगाने को हल्के में नहीं लिया जा सकता है .
जस्टिस अरूण मिश्रा और जेएस खेहर की दो जजों की बेंच ने जनहित याचिका दायर करने वाले प्रशांत भूषण से तब कहा कि 'ये हमारे लिए बेहद असामान्य होता जा रहा है. हमने आपसे कहा है कि हमें छोटा सा भी सबूत दीजिए . हम इसे देखेंगे...आखिर संवैधानिक पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति कैसे काम कर पाएगा ..अगर आप ऐसे ही आरोप उन पर लगाते रहेंगे ? हमें कोई भी चीज ऐसी नहीं मिली है जो आपके आरोपों को दमदार बनाती है.'
बहरहाल इस मामले की सुनवाई 11 जनवरी तक स्थगित कर दी गई है. लेकिन इसी बीच गुरुवार को इंडियन एक्सप्रेस अखबार में एक खबर छपी है . इसके मुताबिक टैक्स पैनल ने सहारा को नवंबर 2014 के दौरान डाले गए छापे में मिली डायरी जिसमें कथित तौर पर राजनीतिज्ञों को घूस देने का जिक्र है उस मामले में अभियोग और दंड से इम्युनिटी दे दी है .
आईटीएससी, फर्म के इस दावे से एकमत है कि खुले पन्ने और उनमें की गई एंट्री जो कथित तौर पर ‘सहारा पेपर्स’ के आधार हैं, उनमें कोई दम नहीं है . इस खबर के प्रकाशित होने के तुरंत बाद ही राहुल गांधी, जो विदेश में छुट्टियां मना रहे हैं, ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री का अंत:करण अगर साफ है तो उन्हें किसी जांच का भय नहीं होना चाहिए . राहुल गांधी ने ये भी इशारा किया कि सहारा को मिली इम्युनिटी दरअसल पीएम को मिली इम्युनिटी है .
Immunity for Sahara or immunity for Modiji? If your conscience is clear Modiji why fear investigation? https://t.co/VFXnCECUij
— Office of RG (@OfficeOfRG) 5 जनवरी 2017
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सवाल ये उठता है कि जिस दस्तावेज को देश की सबसे बड़ी अदालत ने खारिज कर दिया. जिस दस्तावेज को टैक्स पैनल ने बेकार करार दे दिया. बावजूद इसके क्या प्रधानमंत्री को जांच के लिए सिर्फ इसलिए तैयार हो जाना चाहिए क्योंकि आरोप लगाने वाले कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी हैं . ऐसे में हैरानी होती है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की राजनीतिक प्रशिक्षु बने रहने की प्रवृति और अवधि कब खत्म होगी ?