छत्तीसगढ़ में दो चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहा है. पहले चरण का मतदान 12 नवंबर को होगा. पहले चरण में 18 सीटों पर मतदान हो रहा है. ये 18 सीटें बस्तर और राजनांदगांव की हैं. दोनों ही इलाके नक्सल प्रभावित माने जाते हैं. लेकिन कहा जाता है कि बस्तर से ही छत्तीसगढ़ की सत्ता का रास्ता तय होता है. बस्तर और राजनांदगांव बीजेपी के गढ़ रहे हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह राजनांदगांव का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यहां के समीकरण बीजेपी और रमन सिंह के खिलाफ चले गए थे. जिस वजह से छत्तीसगढ़ में बेहद करीबी मामले में रमन सिंह किसी तरह से सरकार बचा पाए.
बस्तर में बीजेपी को मिली थी सिर्फ 4 सीटें
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में इन 18 सीटों पर नतीजे बीजेपी के माफिक नहीं रहे. बस्तर में विधानसभा की 12 सीटें हैं. बीजेपी को इन 12 सीटों पर केवल 4 सीटों पर ही जीत मिली. जबकि कांग्रेस ने 8 सीटें जीतीं. वहीं साल 2008 में इन्हीं सीटों पर बीजेपी ने परचम लहराया था. साल 2008 में बीजेपी ने 11 सीटें जीती थीं. लेकिन सियासत की सांप-सीढ़ी के खेल में सीधे 11 से 4 सीटों पर गिरने से बीजेपी को बड़ा झटका लगा. हालांकि दूसरी सीटों पर मिली जीत ने बीजेपी को सत्ता तक पहुंचा दिया. छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों पर 49 सीटों के साथ रमन सिंह ने सरकार बनाई तो वहीं कांग्रेस 39 सीटों के साथ मुकाबले में आखिरी तक बनी रही थी.
राजनांदगांव में दांव पर साख
इस बार फिर रमन सिंह की साख राजनांदगांव में दांव पर लगी है. राजनांदगांव की 6 सीटें हैं जहां बीजेपी पिछले साल 4 सीटें गंवा चुकी है. साल 2013 में राजनांदगांव में बीजेपी केवल 2 ही सीटें जीत सकी थी. जबकि साल 2008 में राजनांदगांव से ही बीजेपी ने 4 सीटें जीती थीं. ऐसे में बस्तर और राजनांदगांव की 18 सीटों पर बीजेपी को इस बार साल 2003 और साल 2008 का इतिहास दोहराने की जरूरत है.
जोगी ने बिछाया जाल
बस्तर संभाग में कांग्रेस की पुरानी पकड़ रही है. बस्तर में एसटी की आरक्षित सीटों पर कांग्रेस लगातार जीतती आई है. लेकिन इस बार छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्च के रूप में उभरी अजित जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ पहले चरण में उलटफेर कर सकती है. जोगी ने पहले चरण की 18 सीटों में से 10 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि बीएसपी ने 6 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. जोगी का बीएसपी के साथ गठबंधन इस बार विधानसभा चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है. बस्तर में अजित जोगी पूरी ताकत लगा रहे हैं.
खुद डॉ रमन सिंह ये मानते हैं कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अजित जोगी और बीएसपी गठबंधन का असर पड़ सकता है.
जोगी अपनी नई पार्टी में कांग्रेस के बागियों को तरजीह दे रहे हैं. जोगी ने खासतौर पर कांग्रेस के उन बागी उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिनकी जीत पर जोगी को पक्का भरोसा है. ऐसे में अब पहले चरण में बस्तर और राजनांदगांव में चुनाव सिर्फ बीजेपी बनाम कांग्रेस नहीं रह गया है. जोगी के उम्मीदवारों को वापस कांग्रेस में लाने की कोशिशें भी की गईं.
अजित जोगी ने सीपीआई के साथ भी कई सीटों पर गठबंधन किया है. यानी साफ है कि जोगी की रणनीति यही है कि अगर वो नहीं जीते तो किसी और को आसानी से जीतने भी नहीं देंगे. लेकिन बड़ा नुकसान वो कांग्रेस का ही करेंगे.
कांग्रेस के साथ दिक्कत ये है कि उसके पास रमन सिंह और अजित जोगी जैसा लोकप्रिय चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अपने पुराने गढ़ के इतिहास के भरोसे सत्ता का सपना टटोल रही है. रमन सिंह को सियासी ग्लैमर के जरिए चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने करुणा शुक्ला को रमन सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा है. करुणा शुक्ला पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं.
जहां बीजेपी छत्तीसगढ़ की चुनावी रैलियों में अटल जी के पोस्टर का जमकर इस्तेमाल कर रही है और रायपुर का नाम बदल कर अटल नगर रखने का वादा कर रही है तो खुद करुणा शुक्ला भी अपनी रैलियों में वाजपेयी जी का नाम ले रही हैं. बीजेपी करुणा शुक्ला को बाहरी बता कर निशाना बना रही है तो रमन सिंह पनामा पेपर्स मामले में कांग्रेस के निशाने पर हैं. करुणा शुक्ला के समर्थन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राजनांदगांव में रोड शो करेंगे. 9 से 10 नवंबर तक राहुल का छत्तीसगढ़ में रहने का कार्यक्रम है.
ऐसे में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को करुणा शुक्ला के अलावा राहुल से करिश्मे की उम्मीद है. लेकिन मुकाबला अब न सिर्फ रोमांचक हो गया है बल्कि पहले चरण के बाद से ही छत्तीसगढ़ की सत्ता की सूरत साफ होने लगेगी.