भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आरएसएस की भूमिका पर उठने वाले सवालों के बीच संघ के प्रचारक रह चुके पत्रकार और लेखक नरेंद्र सहगल ने दावा किया है कि कांग्रेस की तरह ही आरएसएस का भी स्वतंत्रता संग्राम में योगदान रहा है. लेकिन दुर्भाग्य से इससे जुड़ा इतिहास एक ही परिवार को ध्यान में रखते हुए एकतरफा लिखा गया है. इन दिनों सहगल की लिखी गई किताब ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ और उनके बयान सुर्खियों में हैं.
संघ लंबे समय से इन आरोपों से जूझ रहा है कि स्वतंत्रता आंदोलन में उसकी कोई भूमिका नहीं थी. पंजाब में संघ के विभाग प्रचारक रह चुके सहगल ने कहा, 'स्वतंत्रता संग्राम में संघ का योगदान कांग्रेस से ज्यादा है, ऐसा मैंने नहीं कहा. मैंने कहा कि कांग्रेस की तरह हमारा योगदान भी है. मैंने अपनी किताब में सबूतों के साथ बताया है कि संघ का योगदान रहा है.'
सहगल ने कहा, 'संघ अपने नाम से कुछ नहीं करता था. अपने नाम और संस्था के नाम से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में आजादी से जुड़े कांग्रेस के सभी आंदोलनों में संघ के स्वयंसेवकों ने भाग लिया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार खुद दो बार साल-साल भर के लिए जेल में रहे.
पूरे सत्याग्रह के अंदर संघ के 16 हजार स्वयंसेवक जेल गए थे. 1942 के मूवमेंट में हमारा सबसे ज्यादा हिस्सा था, लेकिन संघ के नाम से नहीं था. संघ तो आज भी अपने नाम से कुछ नहीं करता. वो तो आज भी विश्व हिंदू परिषद, मजदूर संघ, भारतीय जनता पार्टी और वनवासी कल्याण आश्रम के नाम से काम करता है.'
वर्ष 1968 से 1982 तक संघ के प्रचारक रहे सहगल ने तीन माह पहले किताब लिखी है. वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में हरियाणा प्रांत के संगठन मंत्री भी रह चुके हैं. सहगल कहते हैं, 'डॉ. हेडगेवार शुरुआत में कांग्रेस से जुड़े और गांधी की अगुवाई के चल रहे 1921 के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और जेल चले गए. 12 जुलाई 1922 को वे जेल से रिहा हुए. 1925 में दशहरे के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी.
सहगल दावा करते हैं कि संघ के स्वयंसेवक कांग्रेस के आंदोलन में शामिल होते रहे हैं. सैकड़ों संस्थाएं थीं जो स्वतंत्रता संग्राम में काम कर रही थीं. उसमें अभिनव भारत, हिंदू महासभा, आर्य समाज प्रमुख हैं. कांग्रेस के सत्ताधारियों ने उन सबको दरकिनार करके केवल एक नेता और एक दल को श्रेय दे दिया. ये ठीक नहीं है. हम कहते हैं कि कांग्रेस का योगदान था, लेकिन बाकी सबका भी था. उसमें संघ का भी था.' उन्होंने कहा, 'महात्मा गांधी जी का बहुत बड़ा योगदान था. उन्हीं के नेतृत्व में सारा काम किया है.
पत्रकार सहगल कहते हैं, 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास एकतरफा लिखा गया है. हालांकि, एक-दो इतिहासकारों ने बहुत बातें ठीक लिखी हैं. इतिहास को ठीक करने के लिए सरकार से हम कोई उम्मीद नहीं रखते. संघ सरकार पर निर्भर नहीं है. लेकिन हम अपनी तरफ से सबूतों के साथ सारे तथ्य रखेंगे.
सहगल ने कहा, 'मैंने ये किताब एक लेखक तौर पर लिखी है. संघ का मैं अधिकृत प्रवक्ता नहीं हूं.' मंगलवार को हरियाणा भवन में इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र की ओर से भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’किताब के बहाने 'स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका' पर संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया था. सहगल ने अपनी किताब में ये भी दावा किया है कि क्रांतिकारी राजगुरु भी संघ के 'स्वयंसेवक' थे.
सात जून को नागपुर में होने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे. इस अवसर पर वो वहां स्वयंसेवकों को भाषण देंगे. प्रणब दा की पृष्ठभूमि एक पक्के कांग्रेस नेता की रही है, इसलिए उनका संघ के कार्यक्रम में जाना कांग्रेस सहित कई दलों को अखर रहा है. सभी ने उनके कार्यक्रम को लेकर टीका-टिप्पणी की है. इस बीच संघ के प्रचारक रह चुके पत्रकार और लेखक नरेंद्र सहगल ने दावा किया है कि 'महात्मा गांधी 1934 में संघ के एक कार्यक्रम में वर्धा आए थे.'.
सहगल ने कहा 'संघ के कार्यक्रमों में मदन मोहन मालवीय आए थे, सुभाष चंद्र बोस ने 1938 या 1939 में नागपुर में पथ संचलन देखा था. संघ के बुलावे पर अब प्रणव दा आ रहे हैं. संघ की नीति रही है समन्वय, संपर्क और संवाद. ये भारतीय संस्कृति है. संघ में लोग आते रहते हैं, उनसे संवाद होता रहता है.'
(न्यूज 18 के लिए ओम प्रकाश की रिपोर्ट)