आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बीजेपी के कामों में किसी भी प्रकार के दखल की बात को सिरे से खारिज कर दिया है. मोहन भागवत ने बीजेपी का नाम लिए बगैर कहा, ‘जो एक दल चलता है, उस दल में स्वयंसेवक क्यों हैं ? बहुत सारे पदाधिकारी क्यों हैं ? उस दल के आज पंथ प्रधान हैं, राष्ट्रपति हैं. ये सभी स्वयंसेवक हैं. लेकिन, जो लोग कयास लगाते रहते हैं कि नागपुर से फोन आता होगा, ये बिल्कुल गलत बात है.’
मोहन भागवत ने कहा, ‘एक तो वहां काम करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता मेरी आयु के हैं या मुझसे सीनियर हैं. संघ कार्य का जितना मेरा अनुभव है कदाचित उससे अधिक उनको अनुभव अपनी राजनीति का है. उनको राजनीति चलाने के लिए किसी सलाह की आवश्यकता नहीं है. हम उस बारे में कुछ नहीं जानते. हम सलाह दे भी नहीं सकते.’
संघ प्रमुख मोहन भागवत दिल्ली में संघ के तीन दिन के कार्यक्रम ‘भविष्य का भारत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ में दूसरे दिन बोल रहे थे. अपने उद्बोधन के दौरान मोहन भागवत की राजनीति के बारे में साफगोई से कही गई बातों का मतलब बहुत व्यापक है.
संघ का राजनीति से कोई संबंध नहीं:
अक्सर विरोधियों की तरफ से यही कहा जाता है कि बीजेपी को कमांड नागपुर के संघ मुख्यालय से मिलता है. संघ के इशारे पर काम करने और संघ के एजेंडे के हिसाब से काम करने का आरोप बीजेपी पर अक्सर लगता है. लेकिन, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में बताने की कोशिश की है कि संघ का राजनीति से कोई संबंध नहीं है और न ही संघ किसी रूप में बीजेपी पर किसी तरह का दबाव बनाता है.
अभी केंद्र में मोदी सरकार के बने साढ़े चार साल का वक्त हो गया. अगले साल फिर चुनाव की बारी है. ऐसे में संघ की तरफ से बीजेपी की राजनीति में हस्तक्षेप की बात को सिरे से खारिज करने के पीछे सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. क्योंकि संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका पिछले लोकसभा चुनाव में भी बड़ी रही है.
भले ही मोहन भागवत इनकार कर रहे हों, लेकिन, यह हकीकत है कि संघ ने लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को जीताने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. अब 2019 के लोकसभा चुनाव में भी संघ की बड़ी भूमिका देखी जा रही है.
विचारधारा के स्तर पर संघ की विचारधारा के प्रति बीजेपी की प्रतिबद्धता की बात हो या स्वयंसेवकों का अधिक तादाद में बीजेपी में शामिल होना हो, संघ और बीजेपी के बीच संबंधों से इनकार नहीं किया जा सकता. मोहन भागवत ने भी राजनीति से संघ की दूरी बनाने की बात बोलते हुए भी इतना जरूर स्वीकार किया कि संघ वक्त-वक्त पर मांगने पर ही सही बीजेपी को सलाह देता है.
उन्होंने कहा, ‘हां परिचित हैं तो हाल-चाल पूछते हैं. उनको सलाह चाहिए तो हम देते हैं. परन्तु उनकी राजनीति पर सरकार की नीतियों पर हमारा कोई प्रभाव नहीं है. वो हमारे स्वयंसेवक हैं, उन्हें विचार-दृष्टि सब मिली है. अपने-अपने कार्यक्षेत्र में उन विचारों को करने के लिए वो समर्थ हैं.’
देश का पावर सेंटर संविधान से तय हुआ है:
लेकिन, मोहन भागवत ने किसी भी तरह के दूसरे पावर सेंटर की बात और इस तरह की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने आगे कहा, ‘देश की व्यवस्था में पावर नाम की जो चीज है, उसका सेंटर संविधान से तय हुआ है, वही रहेगा. कोई बाहर का दूसरा केंद्र खड़ा हो यह गलत बात हम मानते हैं. इसलिए ऐसा हम कभी नहीं करते.’
मोहन भागवत की तरफ से अलग पावर सेंटर खडा नहीं करने के दो मायने हैं. पहला मतलब यह निकलता है कि संघ बीजेपी को डिक्टेट करने और रोजमर्रा के कामों में दखल देना नहीं चाहता. संघ पूरी तरह से इस बात से इनकार कर रहा है. लेकिन, इस बात का दूसरा पहलू ये है कि संघ की तरफ से मोदी सरकार के काम-काज में दखलंदाजी नहीं करने और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार और बीजेपी को अपने तरीके से काम करने की खुली छूट भी है.
वक्त-वक्त पर संघ और बीजेपी में समन्वय बैठक के दौरान विचारों का आदान-प्रदान होता है. कई मौकों पर संघ की तरफ से कुछ सलाह दी जाती रही है, लेकिन, मौजूदा वक्त में अलग पावर सेंटर नहीं होने की बात से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकत बीजेपी और संघ परिवार के भीतर और बढ़ गई है.
संघ के भीतर अपने स्वयंसेवक के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और कैबिनेट के कई मंत्रियों के होने की बात पर चर्चा होती है. संघ गर्व महसूस भी करता है. लेकिन, राजनीति में सीधे दखल की बात से इनकार कर संघ ने दूसरे दलों और समाज के सभी तबके के बीच अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश की है.