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पाकिस्तानी कानून के खिलाफ 'लाल' हुआ रोम क्योंकि अमानवीय है आसिया बीबी की सजा

आसिया बीबी पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के तहत जेल में बंद हैं और मौत की सजा का इंतजार कर रही हैं

Nazim Naqvi

बीते शनिवार को रोम का प्राचीन और ऐतिहासिक कॉलेजियम, पाकिस्तानी इसाई महिला आसिया बीबी के प्रति अपनी सहानुभूति जताने के लिए लाल रंग की रौशनी से नहलाया गया. आसिया बीबी पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के तहत जेल में बंद हैं और मौत की सजा का इंतजार कर रही हैं. साल 2010 में उन्हें ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सजा सुनाई गयी थी जिसे दुनियाभर के मानवाधिकारी अमानवीय कानून करार देते आए हैं.

आखिर क्या है आसिया बीबी का पूरा मामला और पिछले आठ बरसों में इस मामले ने कितने खतरनाक मोड़ लिए हैं, वो सब जानने से पहले ये जान लेते हैं कि रोम गुस्से और क्षोभ में लाल क्यों हुआ?


17 फरवरी की शाम प्राचीन रोम के प्राचीन कॉलेजियम के बाहर सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी. भीड़ में शामिल लोग आसिया बीबी के पति और उनकी बेटी की पुकार सुनने आए थे. 70वीं ईसवी में बने रोम के इस कॉलेजियम को इसलिए चुना गया क्योंकि यह शुरुआती ईसाइयों के शहीदों का प्रतीक है.

इस मौके पर इटली के बिशप-सम्मेलन के महासचिव आर्चबिशप नूनज़ियो गालांटिनो ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा,'पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का मकसद ऐसे लोगों को मिटा देना है जो अलग आस्थाएं रखते हैं.'

इसी सभा में आसिया बीबी के पति आशिक मसिह ने अपनी पत्नी को बेगुनाह बताते हुए कहा कि 'यह सिर्फ ईसाइयों के खिलाफ नफरत है, जिन्हें पाकिस्तान में अशुद्ध माना जाता है.'

सभा में मौजूद लोग आसिया बीबी की बेटी की फरियाद सुनकर तब पसीज उठे जब वह  फूट-फूट कर रोने लगी.

यूरोपीयन संसद के राष्ट्रपति एंटोनियो ताजानी (जो अगले सप्ताह के चुनाव के बाद इटली के संभावित प्रधान मंत्री बन सकते हैं) ने ईसाइयों के उत्पीड़न को ‘नरसंहार’ कहा और साथ ही जोड़ा कि 'आज यहां से से यह संदेश जाना चाहिए कि यह पूरे यूरोप का कर्तव्य है कि वे इसाई मूल्यों (धार्मिक स्वतंत्रता) की रक्षा करें.'

दुनियाभर के मानवाधिकारियों के लिए पाकिस्तान का यह पेचीदा कानून शुरुआत से ही बहस का विषय बना हुआ है क्योंकि यह ईशनिंदा को परिभाषित नहीं करता है. इसके खिलाफ कोई सुबूत इस डर से पेश नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि ऐसा करना अपने आप में एक नए अपराध को जन्म देना है. साथ ही यह इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि झूठे आरोपों के लिए पाकिस्तानी कानून संहिता में दंड का कोई प्रावधान नहीं है.

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक़ के सत्तासीन होने से पहले तक पाकिस्तान में केवल 14 ऐसे मामले अदालतों में विचाराधीन थे. लेकिन 1986 के बाद तो जैसे बाढ़ सी आ गयी.  साल 1986 से 2014 तक 13सौ लोग ईशनिंदा कानून की भेंट चढ़ा दिए गए. उसी फेहरिस्त में एक नाम आसिया बीबी का भी है जिसे खुद की बेगुनाही साबित करने का मौका तक न मिला.

आखिर क्या है आसिया बीबी का मामला?

पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के तहत ईसाईयों पर किये जाने वाले क्रूर हमले कोई नई बात नहीं हैं. लेकिन जिस मामले ने सबसे ज्यादा सहानुभूति बटोरी वह पांच बच्चों की मां आसिया बीबी का मामला था. ईशनिंदा के आरोप में आसिया बीबी को नवंबर 2010 में मौत की सजा सुनाई गई.

लाहौर के निकट शेखपुरा जिले के ननकाना कस्बे में रहने वाली आसिया बीबी पर ईशनिंदा का इल्जाम लगा.वाकया साल 2009 का था. घटना के मुताबिक आसिया बीबी खेत में मजदूरी कर रही थीं. उस वक्त गांव के एक बुज़ुर्ग की पत्नी ने उनसे पीने के लिए पानी भरने को कहा. बताया जाता है कि वहीं मजदूरी कर रही दूसरी मुस्लिम महिलाओं ने एक गैर-मुस्लिम, आसिया बीबी द्वारा लाए पानी को ‘अशुद्ध’ कह कर पीने से इनकार कर दिया.

आसिया बीबी का अपराध यह था कि उन्होंने इस भेदभाव पर सवाल कर दिया कि ‘क्या हम इंसान नहीं हैं?’

आसिया बीबी के सवाल ने बहस की शक्ल अख्तियार कर ली. गांव की नाराज महिलाओं ने स्थानीय मौलवी कारी सलीम से इस विवाद की शिकायत की और आसिया बीबी पर पैग़म्बर मोहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप मढ़ दिया. मौलवी ने फौरन स्थानीय पुलिस को सूचित कर आसिया को पैगम्बर साहब का अपमान करने के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया.

हालांकि आसिया बीबी ने अपने ऊपर लगे आरोपों से लगातार इनकार किया. इसके बावजूद इस पूरे मामले की निष्पक्षता की पुष्टि करने वाला कोई नहीं था. मुकदमे के न्यायाधीश नवेद इक़बाल ने झूठे आरोपों की संभावना को ‘पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया’ और कहा कि इसमें उन्हें ‘मामले की गंभीरता को कम करने वाली परिस्थितियां नजर नहीं आतीं’.

आसिया बीबी ने इस फैसले के खिलाफ लाहौर उच्च न्यायालय में अपील दायर की. लेकिन उन्हें हिरासत में लेकर एकांत में डाल दिया गया. आलम ये रहा कि हिरासत या सुनवाई के दौरान वकील भी उनसे मुलाकात नहीं कर सकते थे.

आसिया बीबी एक गरीब और अशिक्षित महिला थीं. घटना के बारे में तमाम पूछताछ से यही बात सामने आई कि वह बेकसूर थी. वह अनजाने में पकिस्तान की उस संस्कृति के जाल में फंस गई थी जो कभी भी गैर-मुस्लिमों को ईशनिंदा का निशाना बना सकती थी.

आसिया बीबी मामले में आया मोड़

लेकिन इस मामले ने एक नया मोड़ भी आया. पंजाब के गवर्नर सलमान तसीर की अगुआई में पीपीपी नेताओं ने आसिया बीबी के लिए दयामाफी की मांग की. उनकी दलील थी कि ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है.

आसिया बीबी से मिलने तसीर जेल भी गए और उनकी इस मुलाकात का बढ़-चढ़ कर प्रचार भी किया गया ताकि ईशनिंदा कानून की नाइंसाफी को उजागर किया जा सके. लेकिन तसीर द्वारा धार्मिक प्रतिष्ठान को चुनौती देने का अंजाम यह हुआ कि उनके ही खिलाफ फतवा जारी करते हुए उन्हें नास्तिक घोषित कर दिया गया.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी द्वारा एक ऐसे प्रांत [पंजाब] में तसीर को गवर्नर के रूप नियुक्त किया गया था जहां के कार्यकारी प्रभुत्व पर पीएमएल (एन) का दबदबा था. नतीजतन उनका मानवीय अभियान जल्द ही सियासत में उलझ गया.

तासीर की हत्या से आया नया मोड़ 

सियासत कब इंसानियत का साथ देती है? पीएमएल (एन) ने तसीर के खिलाफ इस्लामवादियों के अभियान को प्रोत्साहन दिया. पार्टी के कुछ नेता तसीर के विरोध में इस इंतेहाई तक पहुंच गए कि उनकी ईशनिंदा कानून में परिवर्तन लाने की मांग को ही ईशनिंदा बताने लगे.

टेलीविजन पर मुल्लाओं और तथाकथित आधुनिक समाचार एंकरों की लगातार आलोचनाओं के सिलसिले यूं चले कि नतीजतन 4 फरवरी 2011 को तसीर के अंगरक्षकों में से एक ने इस्लामाबाद में उनकी हत्या कर दी.

सिर्फ इतना ही नहीं, कई मुल्लाओं ने उनके अंतिम संस्कार की प्रार्थनाओं में इस बुनियाद पर शामिल होने से इनकार कर दिया क्योंकि ईशनिंदा कानून के विरोधी होने की वजह से वे धर्मत्यागी बन गए थे.

एक शक्तिशाली शख्सियत को सिर्फ इस लिए मार दिया गया क्योंकि उसने एक कानून में बदलाव की मांग करने का साहस किया तो जोखिम भी उठाया था. दरअसल यह हत्या एक इशारा थी उन पाकिस्तानियों के लिए जो ईशनिंदा पर सवाल उठाने की सोच रखते थे. तसीर की हत्या के दो महीने बाद, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज़ भट्टी की भी हत्या कर दी गई.

दूसरी तरफ पाकिस्तान के धार्मिक दलों ने तसीर के हत्यारे मुमताज़ क़ादरी को नायक बना दिया. जब उसे मुकदमे की सुनवाई के सिलसिले में अदालत लाया गया तो इस्लामवादी वकीलों ने उसके चुंबन लिए और उसकी सराहना में उसके रास्ते में फूल बरसाए. जब तसीर के हत्यारे को जुर्म कुबूल कर लेने के बाद दोषी ठहराया गया तो उच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश उसकी पैरवी करने के लिए आगे आए ताकि वह उसके प्रति आस्था दिखा सकें जो ‘पैग़म्बर प्रेमी’ था और ‘एक अपमान करने वाले’ को मारने की हिम्मत रखता था.

जिस जज ने क़ादरी को सजा सुनाई उसने प्रतिहिंसा के डर से देश छोड़ दिया. नतीजतन, निष्पक्षता या ईशनिंदा पर की जा रही बहसों को प्रभावी ढंग से बंद कर दिया गया. लेकिन बदली परिस्थितियों में रोम की आंखें लाल हैं. पकिस्तान को आर्थिक प्रतिबन्ध में तो तीन महीने की मोहलत भले ही मिल चुकी हो लेकिन शायद यही बेहतर समय है जब उसपर अपने ईशनिंदा कानून को मानवीय बनाने के लिए दबाव डाला जाए क्योंकि उसका कानून किसी भी मुस्लिम बहुल देश से ज्यादा सख्त और अमानवीय है.