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आरके नगर उपचुनाव: जेल में बंद शशिकला गायब हो रही हैं तमिलनाडु की राजनीति से..

आरके नगर के चुनावी मुकाबले को दरअसल शशिकला और ओ पन्नीरसेल्वम के बीच की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है

T S Sudhir

चैन्नई के आरके नगर में जो कुछ हुआ वह विडंबना भर नहीं बल्कि इससे कुछ ज्यादा है. एआईडीएमके पिछले महीने तक जिस चेहरे को अपना मुख्यमंत्री चुनना चाह रही थी वही चेहरा यहां हो रहे उप-चुनाव में पार्टी की प्रचार-सामग्री से गायब है.

वीके शशिकला पार्टी की अंतरिम महासचिव हैं और इस पद पर होने से माना जा सकता है कि पार्टी उन्हीं की अगुवाई में चल रही है. लेकिन आरके नगर में होने वाले उप-चुनाव में टीटीवी दिनाकरन की इस 'आंटी' का जिक्र जरा भी नहीं है.


चुनाव-प्रचार में शशिकला का जिक्र ना आए, यह दिनाकरन का बड़ा सोचा-समझा फैसला है. दिनाकरन को पता है कि शशिकला को लेकर लोगों के मन में अच्छी भावनाएं नहीं हैं और शशिकला पार्टी के लिए एक सियासी मजबूरी बन चली हैं.

पोस्टरों से क्यों गायब हैं शशिकला? 

इसी कारण दिनाकरन आरके नगर की सीट पर महिला उम्मीदवारों को लुभाने के लिए 'अम्मा' का इस्तेमाल कर रहे हैं. पोस्टर पर एमजी रामचंद्रन, जयललिता और यहां तक कि अन्नादुरैई और पार्टी के नए चुनाव-चिह्न टोपी की तस्वीर तो है लेकिन शशिकला की नहीं. चैन्नई में धोती के ऊपर टोपी पहनने का फिलहाल नया फैशन चला है.

लेकिन शशिकला नजरों से दूर हैं लोगों के मन से नहीं. चैन्नई के इस इलाके में तमिलनाडु के अलग-अलग जिलों से आए प्रवासियों की तादाद ज्यादा है और उनके बीच एआईएडीएमके की चर्चा चलती है तो बात घूम-फिरकर शशिकला पर चली आती है.

बेशक दिनाकरन शशिकला के रिश्तेदार हैं लेकिन इस चुनाव में उनकी मौजूदगी एक संयोग भर है. सियासत की व्यावहारिक जमीन पर आरके नगर के चुनावी मुकाबले को दरअसल शशिकला और ओ पन्नीरसेल्वम के बीच की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है.

शशिकला की छवि लोगों के मन में एक ऐसे व्यक्ति की है जो 'अम्मा' की गद्दी हासिल करना चाहती थी और ओ पन्नीरसेल्वम चूंकि दो दफे 'अम्मा' के बंदे के रूप में खड़े दिखाई दिए सो लोगों के मन में धारणा बनी हुई है कि अम्मा ने उन्हीं को अपना सियासी वारिस चुना था.

चेन्नई में एआईडीएमके समर्थक (फाइल फोटो)

कोई भी नहीं मानता कि शशिकला का किरदार सियासी कहानी से बाहर हो चुका है. दरअसल, शशिकला को लेकर इस कयास का शोर गर्म है कि चुनाव बाद उनकी वापसी होगी और यह भी कि बेंगलुरू की सेंट्रल जेल में बंद शशिकला पार्टी सुप्रीमो के रूप में अपने हुक्म की चाबुक फटकार रही हैं.

कितनी कारगर होगी दिनाकरन की रणनीति?

लेकिन दिनाकरन शशिकला का नाम लिए बगैर चुनाव लड़ रहे हैं और ऐसा करके जो बात वे लोगों की नजर में लाने से बचाना चाहते थे वह एकबारगी सबके मन में गूंजने लगी है.

ओ पन्नीरसेल्वम का कैंप इस स्थिति का फायदा उठाते हुए कह रहा है कि दिनाकरन ने मान लिया है कि शशिकला के नाम और चेहरे का इस्तेमाल करने पर उनके वोट कम हो जायेंगे.

दिनाकरन की कोशिश खुद को जयललिता का सियासी वारिस बताकर पेश करने की है. लेकिन चुनाव में जीत दिलाने के लिहाज से यह रणनीति कारगर साबित हो इसकी कोई गारंटी नहीं है.

क्योंकि जयललिता ने दिनाकरन सहित पूरे मन्नारगुडी कुनबे को 2011 में पोएस गार्डेन से निकाल बाहर किया था और अपनी मौत के दिन तक इन लोगों को वापस नहीं बुलाया.

क्या इस चुनाव का फैसला वोटों के अंकगणित से होगा या कोई केमेस्ट्री अपना असर दिखाएगी? ओ पन्नीरसेल्वम की ओर से खड़े उम्मीदवार ई मधुसूदन स्थानीय हैं सो वोटर से जुड़ाव के मायने में इन्हें बढ़त हासिल है.

उनका एक सियासी रुतबा भी है क्योंकि वे एआईएडीएमके के अध्यक्ष मंडली के चेयरमैन रह चुके हैं और आरके नगर सीट से 1991 से 1996 के बीच विधायक भी रहे हैं. वे इलाके के कार्यकर्ताओं को उनके नाम से जानते हैं और यह बात इस अहम चुनावी मुकाबले में लोगों तक उनकी पहुंच आसान बनाएगी.

डीएमके के उम्मीदवार मुरुथुगणेश भी स्थानीय हैं और कागजी आकलन के आधार पर कहा जा सकता है कि उनके पक्ष में भी कमोबेश वही बातें हैं जो ई मधुसूदन के पक्ष में हैं.

2016 में जयललिता के खिलाफ चुनावी मुकाबले में उतरे डीएमके के उम्मीदवार को लगभग 57000 वोट मिले थे.

ओ. पन्नीरसेलवम (फाइल फोटो)

डीएमके यह उम्मीद लगाए है कि उसके उम्मीदवार को इस बार भी लगभग इतने ही वोट मिलेंगे और जयललिता को पिछली दफे मिले लगभग 97000 वोट तीन उम्मीदवारों दिनाकरन, मधुसूदन और दीपा जयकुमार (जयललिता की भतीजी, आरके नगर से प्रत्याशी) के बीच बंट जाएंगे. फिर इस अंकगणित के हिसाब से डीएमके के उम्मीदवार की जीत के आसार हैं.

दिनाकरन के पक्ष में वोटर की केमिस्ट्री कमजोर दिखती है सो उनके दिमाग में कुछ और ही गणित चल रहा होगा. उनके लिए आदर्श स्थिति यही होगी कि चुनाव उनके ऊपर केंद्रित हो जाये और उनके खिलाफ पड़ने वाले वोट डीएमके, मधुसूदन, दीपा तथा बीजेपी के उम्मीदवार में बंट जायें.

दिक्कत यह है कि दिनाकरन भाषण-कला में इतने पारंगत नहीं हैं कि चुनावी होड़ में अपने को सबसे कद्दावर नेता के रुप में पेश कर सकें.

जमीन पर पन्नीरसेल्वम की हवा

अगर जमीनी हालात पर गौर करें तो हवा पन्नीरसेल्वम की तरफ बहती दिखायी दे रही है. इससे डीएमके के लिए कठिनाई पैदा हो सकती है. हालांकि, तमिलनाडु में परंपरागत रुप से देखें तो उप-चुनावों में सत्ताधारी पार्टी के उम्मीदवार की ही जीत होती आयी है.

लेकिन डीएमके लिए आरके नगर की सीट जीतना फिलहाल नाक का सवाल है क्योंकि यह चुनाव जयललिता के बगैर लड़ा जा रहा है और एआईडीएमके के वोट बंटने जा रहे हैं.

पार्टी के दो धड़े दो पत्तियों के चुनावी निशान के बगैर मुकाबले में हैं. अगर डीएमके का उम्मीदवार चुनाव नहीं जीतता तो इससे एमके स्टालिन की नेतृत्व क्षमता पर बड़ा सवाल उठ खड़ा होगा माना जाएगा कि वे डीएमके को दोबारा सत्ता नहीं दिला सकते.

स्टालिन की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि कम से कम आरके नगर में शशिकला के खिलाफ नाराजगी और उनको सबक सिखाने की वोटर की चाहत ओ पन्नीरसेल्वम खेमे की तरफदारी में बदल रही है. चुनावी ऐतबार से देखें तो यह डीएमके लिए बुरी खबर है.

डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन

डीएमके का गणित भी यही कहता है कि दिनाकरन की तुलना में ओ पन्नीरसेल्वम उसके लिए कहीं ज्यादा बड़ा खतरा हैं. डीएमके को फिक्र यह लगी है कि अगर ओ पन्नीरसेल्वम खेमे का उम्मीदवार विजयी रहा तो शशिकला खेमे के कुछ और विधायक बेचैनी के आलम में अपना पाला बदलकर पन्नीरसेल्वम के खेमे में आएंगे.

बेशक इससे सरकार गिर जायेगी और चुनाव कराना जरूरी हो जायेगा लेकिन बदले हुए हालात में पन्नीरसेल्वम अपनी नाक ऊंची करके चुनावी मुकाबले में उतरेंगे और बहुत संभव है उन्हें बीजेपी का समर्थन भी हासिल हो.

दिनाकरन पर भारी पड़ेगी हार 

अगर स्टालिन की तरफ से सोचें तो आदर्श स्थिति यही कहलाएगी कि डीएमके का उम्मीदवार चुनाव जीते और दिनाकरन चुनावी मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहें क्योंकि आरके नगर की सीट ना जीत पाने के कारण ओ पन्नीरसेल्वम की छवि की चमक तनिक मंद पड़ेगी.

ऐसे में मुकाबले के ऐतबार से सूबे का सियासी मैदान डीएमके बनाम एआईएडीएमके का बन पड़ेगा और डीएमके उम्मीद लगा सकती है कि एंटी- इन्कम्बेसी लहर पर सवार होकर वह सत्ता में वापसी करेगी.

बाकी उम्मीदवारों की तुलना में यह चुनाव दिनाकरन के लिए बहुत भारी पड़ने वाला है क्योंकि यह चुनाव उन्हें हमेशा के लिए बना या बिगाड़ सकता है. उन्होंने अपनी सारी उम्मीदों को आरके नगर सीट से दांव पर लगा दिया है और जबतक फैसला नहीं आ जाता वे नहीं कह सकते कि उनका सपना साकार होने जा रहा है!