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बहुत हुई 'खाने' की राजनीति अब तेजप्रताप ने शुरू की दलितों के घर 'नहाने' की राजनीति

तेजप्रताप ने दलित के घर नहाने की जिस नई राजनीतिक परंपरा की शुरुआत की है, ऐसी सियासी सोच तो लालू भी नहीं ला पाते

Vivek Anand

दलितों को लुभाने के लिए उनके घर जाकर खाना खाने की रवायत पुरानी पड़ चुकी है. दलित भी उकता चुके हैं कि जब देखो एक न एक नेता टपक पड़ता है. होता तो कुछ नहीं है बस फालतू का फुटेज नेताओं को जरूर मिल जाता है. दलित के घर जाकर उनका बना खाएं तो चर्चा, उनके घर जाकर अपने खानसामे से खाना बनवाएं तो चर्चा और तो और दलित के घर जाकर बाहर से मंगवाकर खाना खा लें तो भी चर्चा. कुल मिलाकर पूरा मामला चर्चा में बने रहने का है.

इधर जब से बीजेपी नेताओं ने दलितों के घर जाकर होटलों से मंगवाकर छप्पनभोग का मजा लेने का चलन शुरू किया है तब से मामला थोड़ा गड़बड़ हो गया है. दलित के घर खाने की राजनीति में वो स्वाद नहीं रहा जैसा पहले मिला करता था. सो इसी बात को ध्यान में रखते हुए बिहार में आरजेडी की विरासत संभालने में पहले नंबर पर आने वाले लेकिन हैसियत में दूसरे नंबर पर छिटक जाने वाले तेजप्रताप ने एक नया प्रयोग शुरू किया है. तेजप्रताप ने कहा कि तुम दलितों के घर खाना खाओ, हम तो दलितों के घर में नहाएंगे.


खाने की राजनीति का तो बीजेपी के नेताओं ने बेड़ागर्क कर दिया, इसलिए तेजप्रताप ने नहाने की राजनीति की शुरुआत की है. ये अपने तरह का पहला राजनीतिक प्रयोग है साहब. बिल्कुल नया नवेला. राजनीति के अच्छे-अच्छे धुरंधर परेशान हैं कि ऐसा कमाल का आयडिया उनके दिमाग में क्यों नहीं कौंधा?

बीजेपी का दलित के घर में खाना खाने का जवाब है, बिहार में आरजेडी का दलित के घर में नहाना. खाने की राजनीति का क्या है. राजनीति का हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा दलित के घर खाना खा ले रहा है. तेजप्रताप की तरह नहाने की राजनीति का बिल्कुल नया करतब कमाल की है. अब ये जान लीजिए कि दलित सियासत की चूलें हिला देने वाली तेजप्रताप की ये नई पहल है क्या.

दरअसल तेजप्रताप बिहार के अपने विधानसभा क्षेत्र महुआ के एक छोटे से गांव में जनसंपर्क अभियान पर निकले थे. इसी दौरान वो एक दलित के घर पहुंचे. दलित के घर खाना खाने से ज्यादा फुटेज मिलता नहीं इसलिए वो सीधे उस दलित के घर के पास लगे चापाकल के पास पहुंचे. सफेद झक्क कुर्ता पायजामा उतारा. बनियान को एक किनारे फेंका. कमर में एक गमछा लपेटा और लगे दे बाल्टी दे बाल्टी करके नहाने.

तेजप्रताप यादव ने चापाकल पर हाथ आजमाया. खुद अपने हाथों से... जी हां स्वयं अपने हाथों को कष्ट देकर चापाकल पर जोर चलाकर बाल्टी में पानी भरा और दलित के आंगन में स्नान ध्यान कर उसे कृतार्थ किया. चापाकल पर जोर मारते-मारते जब हाथ थकने लगे तो आसपास जमा समर्थकों की भीड़ से तुरंत कारिंदे हाजिर हो गए. उनके लिए बाल्टी भरके भरके पानी निकाला और तेजप्रताप यादव ने खुले आंगन में अपने स्वयंसेवकों और समर्थकों की भीड़ के सामने नहाने का आनंद लिया.

दलित के घर में आनंदित कर देने वाले इस आयोजन का भरपूर फोटो सेशन हुआ. फिर ट्विटर पर तेजप्रताप यादव ने इसके फोटो शेयर करते हुए लिखा- सत्तू पार्टी कार्यक्रम और अपने विधानसभा क्षेत्र महुआ में दिनभर के पैदल भ्रमण के बाद थोड़ी थकावट को दूर करने के लिए करहटिया पंचायत के एक दलित के घर जा कर उनके चापाकल पर स्नान किया. बहुत मीठी अनुभूति थी गांव के चापाकल के ठंडे पानी से नहाने की.

गांव के चापाकल पर नहाने की मीठी अनुभूति के बखान के साथ तेजप्रताप ने जिस तरह से चापाकल के दलित के घर में होने का वर्णन किया है, उससे दलित सियासत में एक नए अध्याय की शुरुआत हो गई है. ये अध्याय अब दलितों के घर खाने की सियासत के बाद दलितों के घर नहाने की सियासत की शुरुआत करेगा.

आरजेडी समर्थकों के बीच तेजप्रताप के इस करतब ने जादुई असर किया है. लोग कहने लगे हैं कि दलितों के घर में खाने वाले तो हमने बहुत नेता देखे थे. नहाने वाला नेता पहली बार देखा है. देख लो ऐसा होता है जन नेता. ये है लालू की राजनीति की विरासत. इसे कहते हैं जनता का सेवक. ये होती है एक जमीनी नेता की जमीनी सच्चाई. बिसलेरी के पानी से नहीं साहब. तेजप्रताप ने दलित के चापाकल से पानी निकालकर नहाने का महान काम किया है. ऐसे महापुरुष अब की राजनीति में मिलते हैं क्या?

वैसे लालू सुपुत्र तेजप्रताप कमाल के हैं. बिल्कुल अपने बापू के स्टाइल में राजनीति करते हैं. तेजस्वी की तरह उन्हें बिहार की राजनीति में उतना एक्सपोजर नहीं मिला है, लेकिन बंदे ने जब भी कुछ किया है, कमाल का किया है. अब देखिए चाय पार्टी का जवाब वो सत्तू पार्टी से दे रहे हैं. अपने विधानसभा क्षेत्र महुआ में जनसंपर्क अभियान में निकले तो पोस्टर टंगवा दिए. जिस पर लिखा था- सत्तू पार्टी विद तेजप्रताप.

पहले तेजप्रताप ने अपने कार्यक्रम का नाम टी विद तेजप्रताप रखा था. लेकिन ऐन मौके पर उनके दिमाग की बत्ती जली तो आननफानन में पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा बदल दी. सोमवार को बोले कि ‘आज से मैं सत्तू पार्टी के कार्यक्रम की शुरुआत कर रहा हूं. इस दौरान लोगों से मुलाकात करूंगा. पहले इसका नाम 'टी विद तेजप्रताप' था. जिसे हमने बदलकर 'सत्तू विद तेजप्रताप' कर दिया. ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि सत्तू बिहार की धरोहर है.

इतना ही नहीं बातचीत के दौरान उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री पर तंज करते हुए बोले, ‘कभी हमारे नीतीश चाचा को देखे हैं सत्तू खाते हुए?’

सत्तू बिहार में बड़े चाव से खाया जाता है. बिहार का लिट्टी चोखा जग प्रसिद्ध है. लिट्टी में भी सत्तू ही भरा जाता है. सो बिहारी लोगों के दिल के करीब खान-पान को तेजप्रताप ने अपने कार्यक्रम का हिस्सा बना लिया. तेजप्रताप अपने पिता के स्टाइल में बोले, ‘जो लोग हवाई जहाज में सफर करते हैं उनको जब सत्तू खाने के लिए कहेंगे तो वे इसकी तरफ देखेंगे भी नहीं.

गांव-जवार की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव इस तरह के जुमले खूब उछाला करते थे. अब बेटे तेजप्रताप उसी नक्शे कदम पर चल रहे हैं. महुआ विधानसभा क्षेत्र में लोगों से मिलने जुलने निकले तो एक होटल में पहुंच गए. वहां वो पनीर की सब्जी बनाना सीखने लगे. होटल से बाहर निकले तो सामने रिक्शा दिख गया. पहले रिक्शे की सवारी की फिर खुद रिक्शा चलाने लगे. आगे-पीछे समर्थकों का छोटा सा हुजूम भी चलता रहा. फिर आगे बढ़ने पर साइकिल की सवारी भी करने लगे.

लालू यादव की जनसंपर्क अभियान की राजनीतिक शैली भी कुछ इसी तरह की थी. लेकिन उनके सुपुत्र तेजप्रताप ने दलित के घर नहाने की जिस नई राजनीतिक परंपरा की शुरुआत की है, ऐसी सियासी सोच तो लालू भी नहीं ला पाते. उनके समर्थक अब नारा लगा रहे हैं- तेजप्रताप तुम संघर्ष करो...हम बाल्टी लेकर आते हैं...