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राजस्थान: सवर्ण आरक्षण पर बीजेपी की नीति और गहलोत की जादूगरी

बहरहाल, एक बार फिर ये साफ हो गया है कि गहलोत की जादूगरी को समझना आसान नहीं है.

Mahendra Saini

आर्थिक आधार पर कमजोर वर्गों को केंद्र सरकार के दिए 10% आरक्षण पर आजकल राजस्थान में जमकर बवाल मचा हुआ है. मंगलवार को विधानसभा में इस मुद्दे पर दिनभर हंगामा होता रहा. बीजेपी का आरोप है कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार सवर्ण गरीबों को आरक्षण देने में जानबूझकर लेटलतीफी कर रही है. वहीं, कांग्रेस का कहना है कि जब संसद में पार्टी ने इस बिल को समर्थन दिया है तो लेटलतीफी का सवाल कहां.

दरअसल, विवाद इसलिए भी उठ खड़ा हुआ क्योंकि संसद से बिल पारित होते ही बीजेपी शासित राज्यों मसलन, गुजरात, उत्तर प्रदेश और झारखंड ने आरक्षण को लागू करने का फौरन ऐलान भी कर दिया. लेकिन राजस्थान में सरकार चुप नजर आ रही थी. राजस्थान में 11 दिसंबर को कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर सत्ता हासिल की है. बीजेपी ने आरक्षण मुद्दे पर गहलोत सरकार की चुप्पी को ही मुद्दा बनाने की कोशिश की. सवर्ण आरक्षण के साथ गुर्जर आरक्षण का जिन्न भी एक बार फिर बोतल से निकल आया है.


आरक्षण पर हो रही सिर्फ राजनीति

केंद्र में आर्थिक आधार पर आरक्षण का बिल अब पारित हुआ है. लेकिन राजस्थान उन गिने चुने राज्यों में शामिल रहा है, जहां आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की पहल पहले की जा चुकी है. 2003 में ऐसा हुआ और हालिया समय में वसुंधरा सरकार ने गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए विधानसभा से बिल पारित करवाया था. ये आरक्षण 14% दिया जाना प्रस्तावित था. गुर्जर और 4 दूसरी जातियों को 5% आरक्षण देने के साथ ही इसे भी लागू करने की मंशा थी. हालांकि बाद में कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया.

नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया

मंगलवार को अब प्रस्तावित 10% आरक्षण पर बहस करते हुए बीजेपी ने सरकार से अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की. शून्यकाल में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया तो इस पर स्थगन प्रस्ताव ही ले आए. हालांकि कांग्रेस की तरफ से ऊर्जा मंत्री बी.डी. कल्ला ने बीजेपी पर सिर्फ ओछी राजनीति करने का आरोप लगाया. कल्ला का कहना था कि कांग्रेस ने संसद में इसे समर्थन दिया है तो मंशा पर सवाल कैसा?

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कांग्रेस का कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने को बीजेपी अपनी उपलब्धि बताकर चुनावी फायदा उठाना चाहती है. ऊर्जा मंत्री बी.डी. कल्ला ने कहा कि कांग्रेस अगर विरोध करती तब तो बीजेपी की बात समझी जा सकती थी. लेकिन हमारे समर्थन के बावजूद बीजेपी सवर्णों के बीच कांग्रेस की छवि खराब करने के मकसद से ही मुद्दे को उछाल रही है.

72 जान पर भारी आरक्षण!

विधानसभा में सवर्ण आरक्षण की चर्चा में गुर्जर आरक्षण के मुद्दे पर भी जमकर जुबानी जंग हुई. उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इस मुद्दे को उठाया. इस पर उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा कि गुर्जरों की दोषी बीजेपी है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने अपनी सत्ता के दौरान आरक्षण आंदोलन में 72 लोगों की जान ले ली. इसके बावजूद 5 फीसदी आरक्षण के मुद्दे को इतना उलझा दिया कि उसे अब कांग्रेस सरकार को सुलझाना पड़ेगा.

आरोप-प्रत्यारोप के बीच मामला इतना उग्र हो गया कि बीजेपी विधायक सदन के वेल में आकर नारेबाजी करने लगे. बीजेपी इस मामले पर फौरन जवाब की मांग कर रही थी. हालांकि ऊर्जा मंत्री इस पर पहले ही जवाब दे चुके थे. लेकिन दोबारा से किरण माहेश्वरी ने इस मामले को उठाने की कोशिश की तो विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी ने इसकी मंजूरी नहीं दी. इसी पर बीजेपी सदस्य भड़क गए.

आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी ने विधानसभा में जिस तरह का रवैया दिखाया है, उससे यही लगता है कि वे किसी भी तरह लोकसभा चुनाव में इसका फायदा उठाना चाहते हैं. दरअसल, बीजेपी के लिए कांग्रेस लगातार खीझ पैदा करने वाले हालात बना रही है. शायद इसी के प्रत्युत्तर में बीजेपी की कोशिश है कि कांग्रेस की छवि आरक्षण विरोधी की गढ़ दी जाए.

बीजेपी की खीझ के हैं कई कारण

विधानसभा चुनाव में सिर्फ 0.5% वोटों के अंतर से सत्ता गंवाने वाली बीजेपी की खीझ लगातार बढ़ रही है. जयपुर नगर निगम के मेयर चुनाव में कांग्रेस ने अपने समर्थन से बीजेपी के बागी विष्णु लाटा को जीत दिला दी है. राजस्थान की सबसे बड़ी नगर निगम का यूं हाथ से निकल जाना बीजेपी के लिए गहरा सदमा है. वो भी तब जबकि मेयर बनाने के लिए बीजेपी ने अपने पार्षदों की बाड़ेबंदी तक की थी.

नगर निगम ही नहीं, जयपुर जिला परिषद मामले में भी कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी पटखनी दे दी है. चुनाव से पहले बीजेपी के जिला प्रमुख मूल चंद मीना कांग्रेस में शामिल हो गए थे. मीना जयपुर ग्रामीण की बस्सी या जमवा रामगढ़ में से एक सीट से टिकट मांग रहे थे. बीजेपी में दाल गलती न देखकर मीना कांग्रेस में शामिल हो गए. मीना को हटाने के लिए बीजेपी बुधवार को अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई. लेकिन, बीजेपी इसे पारित करवा पाने में नाकाम रही.

अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी नहले पर दहला मार दिया है. गहलोत ने ऐलान कर दिया है कि जल्द ही राजस्थान में 10% सवर्ण आरक्षण को लागू कर दिया जाएगा. इस ऐलान में गहलोत ने ये जरूर जोड़ा कि 2003 में सबसे पहले उनकी सरकार ने ही सवर्णों को आर्थिक आधार पर 14% आरक्षण देने का प्रस्ताव बनाया था. तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. बहरहाल, एक बार फिर ये साफ हो गया है कि गहलोत की जादूगरी को समझना आसान नहीं है. बीजेपी जिस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने की नीति बना रही थी, मुख्यमंत्री ने एक झटके में उसे खत्म कर दिया.