view all

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अगली कतार में ही बैठा देते तो क्या बिगड़ जाता

सरकार की तरफ से राहुल गांधी को ज्यादा तवज्जो नहीं देने को कांग्रेस अपने लिए सहानुभूति बटोरने का हथियार बना रही है.

Amitesh

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राजपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान अगली कतार में जगह नहीं मिली. परेड के दौरान राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलामनबी आजाद के साथ उनकी तस्वीर सामने आई उसमें राहुल गांधी पीछे की पंक्ति में बैठे दिखे.

राहुल गांधी को तो पांचवी कतार में जगह मिली जबकि उनके ठीक सामने सूचना-प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी से लेकर थावरचंद गहलोत दिख रहे थे. ये दोनों कैबिनेट मंत्री हैं लिहाजा उन्हें जगह आगे मिली थी. लेकिन, राहुल के पीछे बैठने के मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया.


राहुल गांधी के सामने अमेठी से उनके खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं स्मृति ईरानी की तस्वीर उन्हें ज्यादा ही खटक रही होगी. हालांकि यह सब भले ही प्रोटोकॉल के तहत किया गया था. लेकिन, इन तस्वीरों से कांग्रेस के लोगों को चिढ़ जरूर हुई है.

कांग्रेस की तरफ से इसे पार्टी अध्यक्ष को शर्मिंदा करने का आरोप लगा दिया गया. कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अपनी नाखुशी खुलकर तो नहीं जता सकी. लेकिन, उसको अपने अध्यक्ष को भाव न मिलना रास नहीं आया.

हालांकि सरकार के सूत्रों की तरफ से इसे प्रोटोकॉल का मामला बताकर इससे पल्ला झाड़ने की कोशिश की गई. इस बार गणतंत्र दिवस परेड के मौके पर आसियान देशों के मेहमानों की बड़ी तादाद के चलते इस तरह का फैसला लिया गया.

प्रोटोकाल का तर्क तो ठीक है. प्रोटोकॉल के हिसाब से प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों और दूसरे देशों के आए मेहमानों को प्राथमिकता दी जाती है. इसके अलावा देश के रक्षा मंत्री और तीनों सेना के अध्यक्षों को भी पहली पंक्ति में जगह मिलती है. तर्क तो यही दिया जा रहा है कि प्रोटोकॉल के हिसाब से राहुल गांधी को पीछे जगह दी गई है.

लेकिन, कुछ बातें प्रोटोकॉल से ज्यादा परसेप्शन पर ही चलती हैं. राहुल गांधी को प्रोटोकॉल के तहत पीछे बैठने के तर्क पर सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है, क्योंकि केंद्र में बीजेपी सरकार आने के बाद अबतक जो प्रोटोकॉल के तहत तय होता था उसके मुताबिक सोनिया गांधी को बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अगली पंक्ति में ही जगह मिलती थी.

जब सोनिया गांधी को बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अगली पंक्ति में जगह दी जाती रही है तो इस बार राहुल गांधी के साथ इस तरह का सलूक क्यों. क्या राहुल गांधी के अध्यक्ष बन जाने के बाद भी सरकार उन्हें ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है. लगता तो यही है. यही बात कांग्रेस को साल रही है.

राहुल गांधी जिन लोगों के साथ दिख रहे हैं उनमें तो बड़े कैबिनेट मंत्री के पी ए भी दिख रहे हैं. शायद यह बात कांग्रेस को ज्यादा अखर रही है.

अभी कुछ दिन पहले इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की उनकी साथ मुलाकात नहीं हो पाने को लेकर कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा रही है. उस वक्त भी राहुल गांधी की मुलाकात नहीं हो पाने को लेकर कांग्रेस ने सरकार  की नीयत पर सवाल खडे़ किए हैं.

सरकार की तरफ से जो तर्क दिए जाएं, बीजेपी जो भी सफाई दे. लेकिन, बीजेपी को इस मुद्दे पर जवाब देना काफी मुश्किल हो रहा है. क्योंकि पिछली पंक्ति में बैठने के बावजूद राहुल गांधी ने गणतंत्र दिवस परेड में आने का फैसला किया.

राहुल गांधी अगर इस पर अपना विरोध खुलकर जताते तो शायद इसका उल्टा असर पड़ता. लेकिन, अब इस तरह सधी हुई प्रतिक्रिया और विरोध में राहुल गांधी की वो छवि दिख रही है जिस पर आजकल वो खुद और उनके रणनीतिकार ज्यादा काम कर रहे हैं.

गुजरात चुनाव के वक्त भी राहुल गांधी की तरफ से लगातार अपने कार्यकर्ताओं को इस बात की हिदायत दी गई की प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कुछ न बोलें. प्रधानमंत्री की तरफ से लगतार हो रहे हमले के बावजूद राहुल गांधी ने शालीनता का परिचय देते हुए प्रधानमंत्री पद की गरिमा की दुहाई देकर निजी हमले से परहेज करने की नसीहत दी. राहुल गांधी के इस कदम का असर भी हुआ.

अब गणतंत्र दिवस समारोह में भी राहुल गांधी और उनकी टीम की तरफ से उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश हो रही है जिसे बीजेपी ने अपमानित किया है. सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की टीम की सक्रियता ने परसेप्शन की इस लड़ाई में उनके ग्राफ को काफी हद तक पहले से बेहतर किया है.

सरकार की तरफ से राहुल गांधी को ज्यादा तवज्जो नहीं देने को वो अपने लिए सहानुभूति बटोरने का हथियार बना रहे हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि बीजेपी राहुल गांधी को इस तरह का मौका क्यों दे रही है. अगर राहुल गांधी को सोनिया गांधी की ही तरह अगली कतार में बैठा दिया जाता तो क्या इससे क्या हो जाता. बीजेपी को इस वक्त राहुल गांधी की शालीन छवि बनाने की रणनीति को कुंद की जरूरत है जिसे वो मोदी की आक्रामक छवि के खिलाफ बड़े हथियार के तौर पर लाने की तैयारी में हैं.