view all

जल्दबाजी में फैसले नहीं करते पासवान, लेकिन सत्ता के आस-पास बने रहने की आदत है उन्हें

हालिया समय में बिहार एनडीए में चल रही राजनीतिक उठापटक को किसी भी पावर के चश्मे से देखने से ऐसा नहीं लगता है कि वह इस मुकाम पर पहुंच गई है जो राम विलास पासवान को संकेत दे या सावधान करे कि आप बाय-बाय करें और यूपीए के साथ चले जाएं

Kanhaiya Bhelari

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से संचार मंत्री के पद से हटाए जाने के बाद राम विलास पासवान काफी परेशान रहते थे. बड़ा विभाग छिन जाने से उन्हें बेइज्जती महसूस होती थी. कहा जाता है कि पासवान ने तत्काल इस्तीफा देने का मन बना लिया था. इस्तीफा देने की अपनी इस इच्छा को उन्होंने दिल्ली में रहने वाले अपने एक पत्रकार मित्र से शेयर किया था. मित्र ने सलाह दी, 'जल्दबाजी का काम शैतान का होता है. लोहा गरम होने दीजिए. तब हथौड़ा मारना ठीक होगा.'

2002 में गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में दंगा हो गया. राम विलास पासवान ने मंत्री पद के साथ साथ एनडीए से भी ये कहते हुए रिश्ता तोड़ लिया कि ‘हम दंगा कराने वालों के पक्ष में रहने वाली सरकार के घर का सदस्य बनकर नहीं रह सकते हैं.'


फिर थोड़े ही दिनों के बाद पासवान ने कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए जॉइन कर ली और जब 2004 में सरकार बनी तो मंत्री बन गए. रेलवे विभाग को लालू प्रसाद ने हथिया लिया तो पासवान रूठ कर कोप भवन में चले गए. विश्वनाथ प्रताप सिंह के हप्तों मान मनौवल के बाद केमिकल तथा फर्टिलाइजर विभाग का पद ग्रहण किया.

हालिया समय में बिहार एनडीए में चल रही राजनीतिक उठापटक को किसी भी पावर के चश्मे से देखने से ऐसा नहीं लगता है कि वह इस मुकाम पर पहुंच गई है जो राम विलास पासवान को संकेत दे या सावधान करे कि आप बाय-बाय करें और यूपीए के साथ चले जाएं क्योंकि वह गठबंधन 2019 के महाभारत में विजयश्री हासिल करेगा.

यह बात सही है कि पासवान एक परिपक्व चुनावी ‘मौसम वैज्ञानिक’ हैं. लेकिन कई मौकों पर उन्होंने यह भी कहा है, ‘मैं मौसम वैज्ञानिक के अलावा राजनीति का चिकित्सक भी हूं. शरीर में सिर के घाव को पहले ठीक करता हूं, उसके बाद पांव के घाव को कैसे ठीक किया जाए, इस विषय पर बात करता हूं.' मैने पासवान के अति निकटतम दोस्त से बात की.

उन्होंने बताया, ‘बतौर चिकित्सक राम विलास पासवान समझ रहे हैं कि जिस गठबंधन में लालू यादव, मायावती वैगरह सदस्य हैं वह सिर का घाव है. जिसका इलाज पहले करना है.’

यह बात सही है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या फिर दुश्मन नहीं होता है. पर कुछ ऐसी कड़वी यादें होती हैं जिसे इग्नोर करना बहुत ही मुश्किल होता है. 2004 में लालू यादव ने पासवान से वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद रेलवे मंत्री पर वो दावा नहीं ठोकेंगे. लेकिन लालू यादव ने बेरहमी के के साथ वादा तोड़ा. जवाब में पासवान ने 2005 फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव अकेले लड़कर 29 विधायक बनाए.

लालू यादव की लाख कोशिश के बाद सरकार बनाने में मदद नहीं की. लालू यादव के दबाव में केन्द्र सरकार ने बिहार में रास्ट्रपति शासन लगा दिया. सरकार गठन में मदद नहीं करने की भड़ास निकालते हुए राजद चीफ ने टीवी कैमरे के सामने पासवान के खिलाफ अपशब्दों की झड़ी लगा दी.

लालू यादव और राम विलास पासवान 2009 लोकसभा तथा 2010 विधानसभा चुनाव एक साथ लड़े पर एनडीए के हाथो बुरी तरह पराजित होकर जल्द ही अलग हो गए. अलगाव पर प्रतिक्रिया देते हुऐ लालू यादव ने पहली बार पासवान का नामकरण मौसम वैज्ञानिक के रूप में करते हुए बयान दिया, ‘राम विलास पासवान इसरो के मौसम वैज्ञानिक हैं. उनको पता चल गया है कि 2014 की अगली सरकार एनडीए की बनने वाली है.'

REUTERS

बहरहाल, हाल के तीन राज्यों में चुनावी हार ने स्वभाविक रूप से बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. पासवान को लग रहा है कि एनडीए के भीतर जो भाव और तवज्जो नीतीश कुमार को दी जा रही है, वह उनके साथ नहीं हैं. वो चाहते हैं कि सीट बंटवारे के मामले में फैसला जल्द हो जाए. लेकिन आज जो पत्र चिराग पासवान ने पीएम को लिखा है उससे स्पष्ट है कि मामला सीट से आगे निकलता जा रहा है.

हमेशा सत्ता का सुख भोगने वाले राम विलास पासवान को लग रहा होगा कि एनडीए की नाव डूबने वाली है इसलिए 72 वर्षीय दलित नेता बेटे के कंधे पर बंदूक रखकर अपनी ही सरकार पर फायरिंग कर रहे हैं. आने वाले दिनों में एनडीए की राजनीति किस करवट बैठेगी, इसका आकलन करना कठिन है. लेकिन अभी की राजनीति मौसम वैज्ञानिक राम विलास पासवान के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रही है.