पहले केंद्र में मोदी सरकार और फिर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद उम्मीद बढ़ती जा रही है कि अब अयोध्या में मंदिर भी बन जाएगा. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से हम उस दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए लगते हैं, लेकिन यह इतना आसान नहीं है.
अदालत ने आपसी सहमति की शर्त रखी है. हमें समझना होगा कि हम अभी तक आपसी सहमति पर क्यों नहीं पहुंच पाए हैं. मंदिर के मसले ने बीजेपी को देश की नंबर वन पार्टी बनाया है.
राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी तीन भावनात्मक मुद्दों को लेकर चल रही है. समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर. तीनों सांविधानिक मसले हैं. मंदिर के साथ मस्जिद भी बनाने का निर्णय हो जाए तो समझौता हो सकता है. यह तभी संभव होगा, जब विश्व हिंदू परिषद और संघ परिवार को मंजूर हो.
बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव के पहले और अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले स्पष्ट किया है कि हम संविधानिक तरीके से ही मंदिर के निर्माण का रास्ता तैयार करेंगे. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. कहना मुश्किल है कि अदालत से फैसला आने में कितना समय लगेगा.
खुद मध्यस्थता के लिए तैयार
अब अदालत कह रही है कि आप आपसी सहमति से इसका समाधान निकालने की कोशिश कीजिए.
चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा है कि, 'अगर संबद्ध पक्ष बातचीत द्वारा मसले का समाधान चाहते हैं, तो मैं खुद मध्यस्थता के लिए तैयार हूं, या फिर किसी जज की भी नियुक्ति की जा सकती है.'
इस जमीन के स्वामित्व से जुड़े मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को जो फैसला सुनाया था, उसमें विवादित स्थल के दो हिस्से निर्मोही अखाड़ा और रामलला के ‘मित्र’ को दिए गए और एक हिस्सा मुसलमानों को, जिनका प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश का सुन्नी सेंट्रल बोर्ड कर रहा था.
इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका पर फैसला होने में कितना समय लगेगा, कहना मुश्किल है. वीएचपी की लगातार मांग रही है कि मंदिर का निर्माण जल्द से जल्द हो. उसका कहना है कि यह आस्था का मामला है, अदालत का मामला नहीं. पर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और मुस्लिम वक्फ बोर्ड अदालत के आदेश का पालन करेंगे.
अयोध्या के कारसेवक पुरम स्थित कार्यशाला में प्रस्तावित मंदिर के पत्थरों की कटाई का काम चलता रहा है. हालांकि वहां काम करने वाले कारीगरों की संख्या काफी कम हो गई है, पर धीमी गति से ही सही काम चलता रहा है. बताया जाता है कि मंदिर में लगाए जाने वाले 80 फीसदी स्तंभ तैयार हैं. फैसला होते ही कुछ महीनों के भीतर मंदिर बनाया जा सकता है.
मंदिर-मस्जिद दोनों बनाने की बात
अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए पिछले साल 13 नवंबर को फैजाबाद के मंडलायुक्त के सामने एक नया प्रस्ताव रखा गया. इसमें विवादित स्थल पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनाने की बात कही गई है.
इस आशय की एक अर्जी दी गई, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों से लगभग 10,502 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं. ‘अयोध्या विवाद समझौता नागरिक समिति’ नाम से इस पहल का नेतृत्व इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पुलक बसु कर रहे हैं.
जस्टिस बसु ने कहा, मुझे उम्मीद है कि हाईकोर्ट इसका संज्ञान लेगा. हमने सुप्रीम कोर्ट में अधिकृत व्यक्ति (फैजाबाद मंडलायुक्त) के जरिए यह समझौता प्रक्रिया शुरू की है. हमें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट शांति एवं सौहार्द की जन-भावनाओं का आदर करेगी.
इस प्रस्ताव में राम मंदिर और मस्जिद दोनों होंगे. यह समझौता तभी हो पाएगा जब इसमें मुस्लिम पक्षकार इस क्षेत्र की दो तिहाई जमीन मंदिर को देने के लिए तैयार हो जाएंगे और मंदिर से 300 मीटर हटकर मस्जिद के निर्माण से संतुष्ट हो जाएंगे.
इसके पहले बाबरी मस्जिद मामले के मुख्य वादी हाशिम अंसारी ने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञान दास के साथ मामले को अदालत से बाहर सुलझाने पर चर्चा की थी जिसमें करीब 71 एकड़ क्षेत्र में फैले विवादित स्थल पर 100 फुट ऊंची विभाजक दीवार के साथ मंदिर और मस्जिद दोनों रखे जाने के बारे में बात की गई थी.
पुलक बसु की इस पहल में हाशिम अंसारी नहीं हैं, क्योंकि पिछले साल जुलाई में उनका निधन हो गया. बहरहाल मुस्लिम पक्षकार सहमत हो भी जाएं तब भी यह समझौता होना आसान नहीं. वीएचपी इस इलाके में मस्जिद नहीं चाहती. उसने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. संघ परिवार भी इससे सहमत नहीं था.
मस्जिद के गुंबद के नीचे रामलला की जन्मस्थली
वीएचपी के अनुसार यह पूरी जमीन मंदिर की होनी चाहिए. उसकी दलील है कि सन 2010 के हाईकोर्ट के फैसले में यह माना गया है कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार मस्जिद के गुंबद के नीचे की जगह रामलला की जन्मस्थली है. इसलिए वह हिंदुओं को मिलनी चाहिए.
वीएचपी का यह भी कहना है कि अयोध्या की शास्त्रीय सीमा में अब कोई मस्जिद नहीं बनने दी जाएगी. मतलब 14 कोसी परिक्रमा पथ के भीतर बसी अयोध्या के आठ किलोमीटर के दायरे में कोई मस्जिद नहीं होनी चाहिए. मंदिर आंदोलन से जुड़े दूसरे संगठनों की आवाजें भी इसमें शामिल हैं. पर यदि संघ परिवार और सरकार समझदारी दिखाए तो बीच का रास्ता निकाला जा सकता है.
संघ परिवार के भीतर एक राय यह भी है कि समझौता नहीं हो पाया तो केंद्र सरकार को अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर के जमीन का अधिग्रहण कर के संसद से प्रस्ताव पास कराना चाहिए. यह एक राजनीतिक फैसला होगा, जिसके लिए दूसरे दलों की सहमति की जरूरत होगी.