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राज्य सभा में बीजेपी के नए चेहरे: किसी को इनाम, किसी का जातीय गणित

आमतौर पर राज्यसभा में बुजुर्ग चेहरे ज्यादा दिखते हैं इस बार बीजेपी का युवा जोश दिखेगा

Amitesh

राज्यसभा की जिन 56 सीटों के लिए 23 मार्च को चुनाव हो रहे हैं उसके लिए सभी पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है. लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा बीजेपी की सूची देख कर हो रही है.

ऐसा होना लाजिमी भी है. क्योंकि बदलती हुई बीजेपी का बदला-बदला चेहरा इस सूची में दिख रहा है. पुरानी परंपरा और पारंपरिक सोच से आगे निकलकर पार्टी के नए दौर की सोच इस सूची से झलक रही है. इसमें कोई बुराई भी नहीं है. पार्टी की कमान अब दूसरी पीढ़ी के हाथों में आ चुकी है. अब अटल-आडवाणी की बीजेपी नहीं, अब मोदी-शाह की बीजेपी है, जिसके सोंचने का तरीका अलग है. काम करने और कराने का अंदाज बिल्कुल जुदा है.


बीजेपी ने जिन 28 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है, उनमें से पार्टी के युवा नेता अनिल बलूनी और जीवीएल नरसिम्हाराव का नाम सामने आना काफी प्रमुख है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की टीम में अनिल बलूनी बीजेपी के मीडिया विभाग को हेड कर रहे है. इसके अलावा बलूनी बतौर पार्टी प्रवक्ता भी अपनी जिम्मेवारी निभा रहे हैं.

कौन हैं बलूनी

अनिल बलूनी (फोटो: फेसबुक से साभार)

45 साल के अनिल बलूनी को उत्तराखंड से राज्यसभा भेजने का फैसला कर बीजेपी ने भविष्य की राजनीति का संकेत दिया है. बलूनी उत्तराखंड के पौडी गढवाल इलाके से आते हैं. राज्य की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले गढ़वाली ब्राम्हण बलूनी को उत्तराखंड में कुछ सालों बाद बीजेपी के सबसे बड़े नेता के तौर पर देखा जा रहा है. पार्टी भी राज्य में बलूनी में अपना भविष्य देख रही है.

राजनीति में आने से पहले अनिल बलूनी पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं. संघ और बीजेपी के नेताओं के संपर्क में आने के बाद अनिल बलूनी कुछ वक्त के लिए बिहार चले गए जहां, सुंदर सिंह भंडारी को बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के वक्त उनके ओएसडी के तौर पर काम किया. फिर गुजरात में भी जब सुंदर सिंह भंडारी राज्यपाल बनाए गए तो वहां भी अनिल बलूनी उनके ओएसडी के तौर पर साथ रहे. इस दौर में बलूनी को मोदी के नजदीक आने का मौका मिला था.

इसके अलावा पार्टी के प्रवक्ता जी वी एल नरसिम्हा राव को भी बीजेपी ने यूपी से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है. नरसिम्हा राव बेहतर सैफोलाजिस्ट भी हैं. नरसिम्हा राव को राज्यसभा भेजने का फैसला कर बीजेपी ने उनके कद को बडा किया है.

नरसिम्हा राव होंगे नया चेहरा

खासतौर से आन्ध्र प्रदेश की राजनीति में बीजेपी अपने-आप को स्थापित करना चाह रही है, जहां से अभी पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है. टीडीपी के साथ चल रही रिश्तों की कड़वाहट के बीच बीजेपी को आन्ध्र की राजनीति को साधने वाले नेता के तौर पर एक चेहरे की जरूरत है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू अबतक बीजेपी के दक्षिण भारत के बड़े चेहरे के तौर पर सामने थे, लेकिन, अब उनके उपराष्ट्रपति बन जाने और सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद बीजेपी ने जीवीएल नरसिम्हराव को सामने लाने की कोशिश की है.

त्रिपुरा की जीत के बाद बीजेपी के एजेंडे में केरल काफी अहम हो गया है. केरल में फिलहाल पार्टी के पास संख्या बल नहीं है. लेकिन, बड़ी लड़ाई केरल में ही लड़ी जा रही है. यही वजह है कि बीजेपी ने केरल बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष वी मुरलीधरन को महाराष्ट्र से राज्यसभा भेजने का फैसला किया है.

बीजेपी ने अपने दो महासचिवों को भी इस बार राज्यसभा का टिकट दिया है. पार्टी महासचिव डाक्टर अनिल जैन को यूपी से जबकि सरोज पांडे को छत्तीसगढ से राज्यसभा भेजा जा रहा है. हालाकि सरोज पांडे छत्तीसगढ से पहले भी लोकसभा सांसद रही हैं. लेकिन, पिछले चुनाव में वो हार गई थी. अनिल जैन और सरोज पांडे दोनों

संगठन से जुड़े हैं. सरोज पांडे के पास इस वक्त महाराष्ट्र की जिम्मेदारी है जबकि अनिल जैन हरियाणा और छत्तीसगढ की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. ये दोनों नेता भी उतने बुजुर्ग नहीं हैं.

जाति का गणित

यूपी से जिन लोगों को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाया गया है, उसे देखकर तो यही लग रहा है कि जातीय समीकरण साधने की पूरी कोशिश की गई है. राजभर समुदाय के सकलदीप राजभर के अलावा विजयपाल सिंह तोमर, हरनाथ सिंह यादव और अशोक वाजपेयी को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाना जातीय समीकरण साधकर 2019 के पहले सारे समीकरण दुरुस्त करने की कोशिश के तौर पर ही देखा जा रहा है.

बीजेपी ने यूपी में राजभर समुदाय को साथ लाने के लिए ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ समझौता भी किया है.लेकिन, सकलदीप राजभर का राज्यसभा पहुंचना पार्टी की पिछडी जातियों में प्रभाव को और मजबूत कर सकता है.

महाराष्ट्र में भी पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना से कांग्रेस के रास्ते होते हुए अलग पार्टी बना चुके नारायण राणे को भी बीजेपी राज्यसभा भेज रही है. नारायण राणे का कोंकण क्षेत्र में दबदबा रहा है. लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव में उनका किला ढ़ह गया था. अब अलग पार्टी बनाकर नारायण राणे एनडीए के साथ हो गए हैं. बीजेपी बदले में उन्हें राज्यसभा भेज रही है.

शिवसेना के साथ रिश्तों में आ रही तल्खी के बाद बीजेपी अपने दुर्ग को मजबूत करना चाह रही है. राणे को राज्यसभा लाकर पार्टी की कोशिश भी यही है.

राजस्थान को लेकर भी बीजेपी ने कुछ ऐसा ही दांव खेला है. राजस्थान में इस वक्त बीजेपी की हालत पतली है. साल के आखिर में विधानसभा का चुनाव होना है, लेकिन, उसके पहले हुए लोकसभा और विधानसभा की तीन सीटों के उपचुनाव में पार्टी के सफाए ने जनता की नाराजगी का संकेत दे दिया है. बीजेपी अब डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रही है.

बीजेपी महासचिव भूपेंद्र यादव को फिर से राजस्थान से राज्यसभा का टिकट मिला है, जबकि बीजेपी ने किरोडी लाल मीणा को राज्यसभा भेजने का फैसला कर एक बड़ा दांव खेला है. मीणा एसटी समुदाय से आते हैं, लेकिन, दस साल पहले बीजेपी ने नाराज होकर उन्होंने अलग पार्टी बना ली थी. अब उनकी पार्टी राजपा का बीजेपी में विलय हो गया है.

हालाकि बीजेपी ने अपने सभी आठ मंत्रियों को फिर से टिकट दिया है. लेकिन, इस इन सभी उम्मीदवारों को देखकर लग रहा है कि पुरानी परंपरा की दुहाई देते केवल पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को राज्यसभा भेजने की परंपरा पर अब मोदी-शाह की जोड़ी नहीं चल रही.

लीक से अलग हट कर चलने की उनकी आदत के अनुरुप अब राज्यसभा में भी उर्जावान युवाओं की फौज दिखेगी जो पार्टी के समीकरण के हिसाब से फिट होंगे.