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राज्यसभा के उपसभापति चुनाव में कांग्रेस-बीजेपी की हालत खराब, क्षेत्रीय दल तय करेंगे रणनीति

पिछले 41 सालों से कांग्रेस के पास डिप्टी स्पीकर का पद है और पिछले 66 सालों में से 58 सालों तक उसी के पास रहा है.

FP Staff

संसद के मॉनसून सत्र में होने जा रहे डिप्टी स्पीकर के चुनावों पर सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीति बनाने में लगे हैं. क्योंकि राज्यसभा के उपसभापति और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को खत्म हो रहा है.

एनडीए से लगातार पार्टियों के अलग होने की वजह से राज्यसभा में सत्ता पक्ष कमजोर हुआ है लेकिन महागठबंधन और एनडीए की नजरें बीजेडी के 9, टीआरएस के 6 और वाईएसआर कांग्रेस के 2 सदस्यों पर टिकी है. हालांकि पिछले 41 सालों से कांग्रेस के पास डिप्टी स्पीकर का पद है और पिछले 66 सालों में से 58 सालों तक उसी के पास रहा है.


लेकिन वर्तमान में राज्यसभा में जो हालात हैं उससे कांग्रेस भी अपनी जीत का पक्का दावा नहीं कर सकती. अगर कांग्रेस बीजेपी को हराना चाहती है तो उसे कांग्रेस समेत 16 विपक्षी दलों के साथ एकजुट होना होगा. वहीं बीजेपी के सामने एनडीए में तालमेल बैठाने की चुनौती होगी. बीजेपी के पास कुल 106 सांसदों का समर्थन है जिसमें AIADMK के 14 सांसद हैं वहीं विपक्षी पार्टियों के पास 117 सांसद हैं. हालांकि सदन में जीतने के लिए 122 का आंकड़ा चाहिए.

कांग्रेस की सदन में संख्या केवल 50 है लेकिन विपक्षी दलों को मिला लें तो बीजेपी कमजोर पड़ रही है. तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 13, टीडीपी 6, डीएमके के 4, बसपा के 4, एनसीपी के 4 माकपा 4, भाकपा 1 व अन्य गैर भाजपा पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो रही है.

हालांकि माना जा रहा है कि 13 सदस्यों वाली AIADMK बीजेपी का साथ देगी. लेकिन बीजू जनता दल और शिवसेना समेत कुछ दलों की वजह से विपक्षी मजबूत हो सकते हैं.

अकाली नेता नरेश गुजराल का नाम आगे बढ़ा सकती है बीजेपी

बीजेपी इस चुनाव में अकाली नेता नरेश गुजराल का नाम आगे बढ़ा सकती है, एनडीए के दलित चेहरे के तौर पर मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद सत्यनारायण जटिया का नाम भी सामने आ रहा है. वहीं कांग्रेस बीजेडी से महागठबंधन का उम्मीदवार मैदान में उतार सकती है. क्षेत्रीय पार्टियों की निर्णायक भूमिका को देखते हुए एनडीए और विपक्षी पार्टियां छोटे दलों को लुभाने में जुट गई हैं. डिप्टी स्पीकर के चुनावों के लिए शिवसेना और अन्नाद्रमुक के साथ के बिना बीजेपी की जीत संभव नहीं है.

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही नवीन पटनायक की बीजेडी को अपने खेमे में लेने का प्रयास कर रहे हैं. एनडीए अगर बीजेडी को मना लेता है तो उसके 9 सांसदों के साथ एनडीए के पास 119 सांसद होंगें और विपक्ष के पास 121 होंगे, लेकिन ओडिशा विधानसभा चुनाव में बीजेपी और बीजेडी दोनों आमने-सामने होंगें और ये चुनाव 2019 में लोकसभा चुनावों के साथ ही होना है.

अगर बीजेडी एनडीए के प्रस्ताव को मान लेती है तो राज्य में ये संदेश जाने का खतरा है कि दोनों पार्टियां अंदर से अभी भी मिली हुई हैं. चुनाव से पहले डिप्टी स्पीकर के पद के लिए बीजेडी ये खतरा उठाएगी ऐसा मुश्किल ही नजर आता है. वहीं अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस और बीजेपी के अलावा किसी और पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन कर सकते हैं.

(साभार: न्यूज18)