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20 साल बाद दोस्त बने रजनीकांत और जयललिता !

रजनीकांत ने कड़वाहट भुलाते हुए जयललिता को कहा 'कोहिनूर हीरा'

G Pramod Kumar

तमिल फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत ने जयललिता की कोहीनूर हीरे से तुलना की है.

रविवार को रजनीकांत ने दिवंगत जयललिता को श्रद्धांजलि दी. ऐसा लग रहा था मानो वो पिछले 20 साल से जयललिता के साथ चली आ रही अपनी कटुता को दूर कर रहे थे.


रजनीकांत की वजह से तब चुनाव में जयललिता की बुरी हार हुई थी.

कभी दोस्त कभी दुश्मन 

जयललिता का 1991-1996 तक का शासनकाल कुशासन के लिए चर्चित रहा है. जनता में सरकार को लेकर भय का माहौल था. हालांकि सरकार ने इस दौरान महिलाओं-बच्चों और हेल्थ सेक्टर में विकास के काम भी किए थे.

जयललिता एमजीआर के निधन के बाद पहली बार सरकार में आईं  थीं. ये सत्ता और अधिकारों की लड़ाई थी. उन्हीं दिनों शशिकला जयललिता के साथ पोएस गार्डन रहने आ गई थीं. शशिकला के परिवार से सब डरने लगे थे.

जबरन जमीन हथियाने, भ्रष्टाचार, विरोधियों के साथ मारपीट, आलोचकों और मीडिया से बदसलूकी की कहानियां अक्सर सुनने में आती थीं. उस दौर में हुए इस तरह के किस्से हमेशा याद किए जाएंगे.

इससे दुखी होकर और लोगों के गुस्से को देखकर रजनीकांत सरकार के खिलाफ उठ खड़े हुए. वो रजनीकांत थे, जिन्होंने सरकार के गलत कामों को चुनौती दी और जयललिता की अगले चुनावों में हार का बड़ा कारण बने.

ये ही वजह है कि, चेन्नई में साउथ इंडियन आर्टिस्ट असोसिएशन में जयललिता की शोक सभा में रजनीकांत ने अफसोस जताते हुए कहा कि वो उन दिनों में जयललिता की हार के मुख्य कारणों में से एक थे.

20 साल पहले, उन्होंने कहा था ‘अगर जयललिता दोबारा सत्ता में लौटीं, तो भगवान भी तमिलनाडु को नहीं बचा सकेंगे’.

लेकिन रविवार को, जयललिता उनके लिए ‘हीरा’ हो गई थीं.

'जयललिता की चमक किसी हीरे जैसी'

(SOLARIS IMAGES)

रजनी ने कहा ‘पुरुष प्रधान समाज के दबाव के बावजूद जयललिता की चमक किसी हीरे जैसी थी. अब, वो 'पुत्राची थलाईवा' एमजीआर के स्मारक के पास जमीन में कोहीनूर हीरे की तरह आराम कर रही हैं’.

1996 में हवा का रुख जयललिता के खिलाफ था. लेकिन फिर भी उनकी सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा, डर और नापसंदगी मुहिम नहीं बन पा रही थी.

जीके मूपनार की अध्यक्षता वाली कांग्रेस तब लगभग पूरी तरह तमिल मनीला कांग्रेस बन गई.

हुआ ये था कि नरसिम्हा राव ने मूपनार को जयललिता का साथ देने को कहा. जीके मूपनार को ये मंजूर नहीं था. हालांकि उनके पास तब संसाधन कम थे पर उन्होंने अलग पार्टी बना ही ली थी.

जो चीज टीएमसी की सहयोगी डीएमके के साथ जाती दिख रही है. वो था जयललिता का कुशासन.

दोनों पार्टियां जयललिता को चुनौती देने के लिए किसी खास ताकत की तलाश में थीं. तब डीएमके और टीएमसी को ही नहीं सबको रजनीकांत से काफी उम्मीदें थी.

रजनीकांत उन दिनों अक्सर सबको छोड़कर चेन्नई से अमेरिका चले जाते थे. वही उन्होंने एक बार फिर किया.

फैन रजनीकांत की मंशा समझने की कोशिश करते थे

टीएमसी और डीएमके उनके फैन रजनीकांत की मंशा को  लेकर कयास लगाते रहे. और उनकी फिल्मों के डायलॉग में से छुपे मतलब निकालते रहे. जयललिता को हराना हर किसी के लिए बेहद ज़रूरी था.

उन दिनों राजनीति कोई खास मुद्दा नहीं था लेकिन चुनाव से पहले रजनीकांत अगर लौट आते तो फिर ये मुद्दा बन जाता.

चुनाव से कुछ दिन पहले रजनीकांत लौट आए. एयरपोर्ट पर उनका जबरदस्त स्वागत हुआ. लेकिन उन्होंने चुनाव या राजनीति पर कुछ नहीं कहा. इस उम्मीद में कि रजनीकांत चुनाव को लेकर कुछ कहेंगे, चेन्नई से कुछ पत्रकार उनके साथ मुंबई से चेन्नई तक के सफर में मौजूद रहे.

हालांकि, घर पहुंचने पर चंद पत्रकार, जो उनकी गाड़ी के साथ घर के अंदर दाखिल होने में कामयाब रहे.रजनीकांत ने उनसे पहली बार चुनाव को लेकर अपना रूख साफ किया.

जिसके बाद ही उन्होंने वो बड़ी बात कही थी कि ‘भगवान और तमाम संत भी तमिलनाडु को नहीं बचा सकेंगे, अगर जयललिता दोबारा सत्ता में लौटीं’. रजनीकांत की अंग्रेजी में कही इस बात को अकेले एएनआई टीवी ने रिकॉर्ड किया. जिसे बाद में करुणानिधि के भतीजे के चैनल, सन टीवी ने लाखों बार दिखाया.

उसी शाम, रजनीकांत एक सार्वजनिक समारोह में शामिल हुए. उनसे बात करने के लिए काफी रिपोर्टर वहां उनका इंतजार कर रहे थे. रजनीकांत ने उनसे ज्यादा बातचीत नहीं की. लेकिन उन्हें अमेरिका में अपने बाल कटवाने के दौरान सो जाने का किस्सा सुनाया.

रजनीकांत टीएमसी के साथ

जयललिता के समर्थकों ने रजनीकांत के कहे इस किस्से का इस्तेमाल अपने पक्ष में किया. दिवंगत एक्टर मनोरमा ने उन्हें बुरा बताया.

चुनाव से चंद दिन पहले रजनीकांत टीएमसी के साथ आ खड़े हुए. या कहें टीएमसी-डीएम गठबंधन के साथ.राजनीकांत को टीएमसी पसंद थी. टीएमसी में कुछ बड़े राष्ट्रीय और स्थानीय नेता भी थे जो रजनीकांत के करीबी थे.

रजनीकांत का समर्थन केवल बातों तक ही सीमित नहीं था. उनके फैन क्लब का नेटवर्क फौरन अपने काम में जुट गया.

उनके कैडर और प्रशंसक चारों ओर घूमकर टीएमसी-डीएमके के उम्मीदवारों के प्रचार में जुट गए.

टीएमसी का चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ इसमें उनका काम आसान बना रहा था. ऐसा इसलिए क्योंकि सुपरहिट फिल्म अन्नामलाई में उनके हीरो रजनीकांत की सवारी साइकिल थी.

हर जगह टीएमसी उम्मीदवारों के साथ रजनीकांत की साइकिल वाली पोस्टर दिखने लगी. रजनीकांत के जरिए लोगों को संदेश दिया जा रहा था. इसके चलते चुनाव में जयललिता की करारी हार हुई.

रजनीकांत को जयललिता की फिक्र नहीं 

PTI Photo

नतीजे आने के बाद, रजनीकांत को जयललिता की हार का किसी तरह का कोई गम नहीं था. जब भी वो जयललिता के कुशासन की खबरें सुनते, उन्हें अपना लिया गया निर्णय सही लगता.

हालांकि, बाद में रजनीकांत बीजेपी के करीब होते चले गए. दिल्ली के कुछ पत्रकारों ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी और शत्रुघ्न सिन्हा से उनकी नजदीकियों का जिक्र दिया.

रविवार को जयललिता की शोक सभा के दौरान रजनीकांत ने पुरानी बातों को याद कर खेद जताया. उन्होंने कहा 'जो कुछ हुआ वो निजी था'.

रजनीकांत ने जब जयललिता को अपनी बेटी की शादी में बुलाया तो उन्होंने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया था. इसने जयललिता के लिए रजनीकांत का नजरिया बदल दिया.

अच्छे आचरण और राजनीति के बीच रजनीकांत ने अच्छे आचरण को चुना. इसके बाद फिर कभी रजनीकांत ने जयललिता के खिलाफ बुरा नहीं कहा.

शायद, जो चीज रजनीकांत को यह विवाद खत्म करने के रोक रही थी. वो इसका अच्छे माहौल में खत्म हो जाना था.

1996 का दौर काफी खराब

जयललिता के लिए 1996 का दौर काफी खराब था. बाद के बरसों में जयललिता के अच्छे आचरण ने उनके प्रति रजनीकांत का नजरिया बदल दिया.

खास तौर पर 2011-2016 में सत्ता में आए करुणानिधि पर भी अपने परिवार के भ्रष्टाचार से जुड़े होने के आरोप लगने पर रजनीकांत को अपनी गलती का एहसास हुआ.

अपनी गलती के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांग लेने से रजनीकांत को काफी सुकून मिला है. हालांकि, डीएमके के लिए चिंता की बात नहीं है. क्योंकि रजनीकांत अब चालीस साल की बजाए उम्र के अपने साठवें पड़ाव पर हैं.

लेकिन रजनीकांत की सुपरहीरो वाली फिल्म 2.0 आने वाली है. इसलिए हो सकता है कि वो फिर अपनी पुरानी भूमिका में लौट आएं.

अब शशिकला को सावधान हो जाने की जरुरत है. ऐसा इसलिए क्योंकि रजनीकांत का उनसे कोई संबंध नहीं है.