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राजस्थान: वसुंधरा राजे सरकार के 'मंत्री-वेतन संशोधन विधेयक' पर क्यों मचा है हंगामा?

इस विधेयक में मंत्रियों के वेतन भत्ते बढ़ाने के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री के लिए भी अच्छा इंतजाम कर दिया गया है

Vijai Trivedi

राजस्थान में जैसे-जैसे चुनावों के दिन नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों में बेचैनी और एक दूसरे पर हमला करने की आदत बढ़ती जा रही है. हमले अब तीखे होने लगे हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने फिर से अपनी गौरव यात्रा को शुरु कर दिया है और वे चुनावों से पहले हर जिले में अपनी दस्तक देना चाहती हैं. इस गौरव यात्रा में उनका फोकस सिर्फ भाषण देना नहीं, बल्कि व्यक्तिगत मौजूदगी का अहसास कराना होता है.

मुख्यमंत्री राजे अपने रथ से उतरती हैं गांव की महिलाओं से उनके घर-परिवार, चूल्हा चौके की बात करती हैं, बच्चों को टॉफियां बांटती हैं और पूछती हैं कि सरकारी योजनाओं का फायदा उन तक पहुंचा या नहीं. क्या उनके पास उज्जवला योजना के तहत गैस का चूल्हा मिल गया है? उनका जनधन अकांउट ठीक से चल रहा है? हर शहर- कस्बे में राजे यह याद दिलाना नहीं भूलती कि पिछली बार जब वे उस इलाके में आईं थी, तब क्या हाल था और आज कैसे सूरत बदली है.


उनकी यात्रा से पहले ही पार्टी के नेताओं, स्थानीय विधायकों और सांसदों को जिम्मेदारी सौंप दी गई है कि उनके इलाके में गौरव यात्रा ठीक से हो. विधायकों और प्रभारियों को यात्रा पहुंचने से करीब एक हफ्ते पहले से वहां डेरा डालना होता है. वे लोग स्थानीय नेताओं, सरपंच, नगर परिषद और पालिकाओं के चैयरमेन, पार्षदों और दूसरे प्रभावी लोगों से सम्पर्क करते हैं. स्थानीय रिपोर्ट और माहौल की जानकारी मुख्यमंत्री को उनकी यात्रा पहुंचने से पहले दे दी जाती है.

सरकारी अफसरों का अमला इस बात पर नजर रखता है कि सरकारी कामकाज को लेकर या फिर किसी योजना के अमल को लेकर कोई शिकायत मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचे, मगर मुख्यमंत्री को समझ आने लगा है कि ये रास्ते भले ही उनके लिए जाने पहचाने हों, लेकिन इस बार सफर आसान नहीं हैं. अपने ही कुछ लोग इस रास्ते में कांटे बिछाने की तैयारी कर रहे हैं. बाड़मेर में बताया जाता है कि बीजेपी के दिग्गज नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह हालांकि बीजेपी के विधायक हैं, लेकिन सीएम साहिबा को ज्यादा भरोसा नहीं है, इसलिए कुछ और लोगों को जयपुर से वहां गौरव यात्रा का कामकाज देखने के लिए भेजा गया.

नरपत सिंह राजवी से रिश्तों में पड़ चुकी है खटास

पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी उनकी सरकार में मंत्री हैं, लेकिन रिश्तों में मिठास कम बची है. पूर्व उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा अब बुजुर्ग हो गए हैं, लेकिन उनका अपने इलाके में अब भी खासा प्रभाव है, वे पार्टी के मजबूत ब्राह्मण नेता माने जाते हैं, उन्हें भी मनाने की कोशिशें की गई हैं. बरसों-बरस राजे के खिलाफ खड़े रहे दिग्गज मीणा नेता किरोड़ी लाल को ना केवल फिर से पार्टी में ले लिया गया बल्कि उन्हें राज्यसभा सांसद भी बना दिया गया है. उनका असर पूर्वी राजस्थान में हैं.

एक और दिग्गज ब्राह्मण नेता घनश्याम तिवाड़ी को मुख्यमंत्री राजे अपने पाले में नहीं ले पाईं और आखिरकार उन्होंनें अपनी अलग से भारत वाहिनी पार्टी बना ली है. वे इस बार पूरे प्रदेश में अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने की तैयारी में हैं, ज़ाहिर है कि उनके ज्यादातर उम्मीदवार बीजेपी के बागी नेता होंगें यानी घर में ही वोट काटने का नुकसान बीजेपी और मुख्यमंत्री को उठाना पड़ सकता है. गौरव यात्रा की कामयाबी के सवाल पर घनश्याम तिवाड़ी कहते हैं कि वो गौरव यात्रा नहीं, कौरव यात्रा है. तिवाड़ी दावा करते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी को अब तक की सबसे कम सीटें मिलेंगीं.

बीजेपी के परम्परागत वोटों में ब्राह्मण और राजपूतों के साथ बनिया समुदाय को माना जाता है. ब्राह्मणों में राजे को लेकर नाराजगी है, लेकिन राजपूतों में भी एक गुट उनसे खासा नाराज है, खासतौर से जोधपुर के सांसद गजेन्द्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाए जाने को लेकर. मौजूदा अध्यक्ष मदन लाल सैनी हालांकि माली समाज से हैं लेकिन उस समुदाय का असल प्रतिनिधित्व राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता अशोक गहलोत करते हैं. गहलोत भी जोधपुर से हैं.

गुर्जरों में मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट

कांग्रेस  प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट गुर्जरों में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं और पिछले तीन उप चुनावों में बीजेपी को हराने से उनका हौसला बढ़ा हैं, इसमें भी दो सीटें लोकसभा की रहीं अलवर और अजमेर यानी करीब 17 विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. राजस्थान में इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसे दीनदयाल वाहिनी के अखिलेश तिवाड़ी ने बनाया है. इस वीडियो में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के 'मंत्री-वेतन संशोधन विधेयक' का खुलासा किया गया है कि मुख्यमंत्री को तो पिछले साल ही अपनी चुनावी हार का अहसास हो गया था इसलिए यह विधेयक पास किया गया.

इस विधेयक में मंत्रियों के वेतन भत्ते बढ़ाने के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री के लिए भी अच्छा इंतजाम कर दिया गया है. विधेयक के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री को पेंशन भत्तों के अलावा ता-जिंदगी सरकारी घर, आरएएस अफसर से लेकर चपरासी तक नौ सरकारी कर्मचारी और सरकारी गाड़ी मिलेगी. इसके साथ ही राजस्थान ही नहीं देश भर में उनकी यात्रा के दौरान भी सरकार उन्हें गाड़ी मुहैया कराएगी. जरूरत पड़े तो इनमें इजाफा भी किया जा सकता है.

दीनदयाल वाहिनी के कार्यकर्ता अब हर जिले में न केवल इस विधेयक की प्रतियां जलाएंगें बल्कि साथ ही यह बताने की कोशिश करेंगें कि मुख्यमंत्री को अपनी हार का अहसास पहले ही हो गया है, इसलिए उन्होंनें पूर्व मुख्यमंत्री के तौर अपने लिए सब सरकारी इंतजाम कर लिए हैं. वैसे इस विधेयक को दो सौ सदस्यों वाली विधानसभा में आम सहमति से पास किया है यानी बीजेपी के अलावा कांग्रेस और दूसरे विधायक भी शामिल हैं, केवल घनश्याम तिवाड़ी ने विधायक के तौर पर विधानसभा में इसका विरोध किया.

वैसे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने यह विधेयक 27 अप्रैल 2017 को विधानसभा में रखा था और पास करवा लिया था, लेकिन उसके बाद इस साल सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश में ऐसे ही पूर्व मख्यमंत्रियों को मिले सरकारी बंगले खाली कराने के आदेश दिए थे और उन्हें खाली भी करने पड़े, इसमें पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव और नारायण दत्त तिवारी, राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह के नाम शामिल हैं. इसके बाद मध्यप्रदेश में भी हाईकोर्ट ने ऐसा ही एक आदेश जारी करके वहां भी पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली कराने का हुक्म दिया है.

राजस्थान में क्या होगा और कौन पूर्व मुख्यमंत्री बनेगा या बंगला हासिल करेगा, यह जानने में अभी वक्त है, वैसे खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने तो शुरुआत में ही सरकारी सीएम निवास में रहने से इंकार कर दिया था और वे उसी बंगले में रहती रहीं ,जिसमें पहले रहती थीं. बीजेपी की दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री रही सुषमा स्वराज की वो बात याद आ रही है, जो उन्होंनें दिल्ली में चुनाव हारने के बाद कही थी- घर को आग लग गई घर के चिराग से.