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राजस्थान चुनाव 2018: नतीजे से पहले मुख्यमंत्री बनने के लिए जोड़-तोड़ का दौर

मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस में अपने-अपने नेता की पैरवी करने का यह खेल पिछले कुछ महीने से लगातार खेला जा रहा था

Mahendra Saini

राजस्थान समेत 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में वोटों की गिनती शुरू होने में अभी वक्त है. 11 दिसंबर को सुबह से वोटों की गिनती शुरू होगी. लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस में वही पुरानी जंग शुरू हो गई है. यह लड़ाई 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' की है. चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले इस पर काफी जूतम-पैजार हो चुकी है. हालांकि प्रचार के दौरान सभी गुटों ने इस सवाल को टालने या दाएं-बाएं करने की कोशिश की लेकिन नतीजे आने से पहले सेनापतियों ने अपने प्यादों को फिर आगे कर दिया है.

मुख्यमंत्री पद के लिए अपने नेता की पैरवी करने का यह खेल पिछले कुछ महीने से लगातार खेला जा रहा था. पहले विश्वेंद्र सिंह ने सचिन पायलट के पक्ष में सभी नेताओं से हाथ खड़े करवाकर सौगंध दिलवाई. इस पर जमकर बवाल हुआ. बाद में, टिकट बंटवारे से कुछ दिन पहले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री लाल चंद कटारिया ने अशोक गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की मांग कर डाली. हालांकि राहुल गांधी ने हर चुनावी सभा में पार्टी में एका (एकता) हो जाने की दुहाई लगातार दी. लेकिन सीएम पद का मुद्दा खुद उनके लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता दिख रहा है.


लगता है पायलट जल्दबाजी में हैं!

7 दिसंबर को चुनावी प्रक्रिया खत्म हुई है. ज्यादातर नेतागण अपनी थकान मिटाने में लगे हैं. लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट और राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत की किस्मत में अभी आराम नहीं लिखा है. दोनों को एक-दूसरे से खतरा है और शह-मात का खेल इस कदर खेला जा रहा है कि लाठी न टूटे और सांप भी ठिकाने लग जाए. सेनापति सीधे तो नहीं लेकिन प्यादों के जरिए जरूर मैदान में आ डटे हैं. बयानों की बौछार शुरू हो चुकी है.

राजस्थान में कांग्रेस की जीत के बाद सचिन पायलट और अशोक गहलोत में से 'कौन बनेगा मुख्यमंत्री' इसके लिए दोनों गुट एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं

मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी जताने के लिए सचिन पायलट कुछ ज्यादा ही बेचैन नजर आते हैं. मतदान खत्म होने के बाद सचिन गुट के नेता और प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता प्रताप सिंह खाचरियावास ने अशोक गहलोत जैसे कद्दावर नेता को ही आइना दिखाने की कोशिश कर दी. खाचरियावास ने इशारों-इशारों में पायलट के मुख्यमंत्री बनने का ऐलान भी कर दिया. उनसे गहलोत के उस बयान के बारे में पूछा गया था जिसमें सीएम पद के कई चेहरे होने की बात कही गई थी. खाचरियावास ने कहा कि चेहरे होने से क्या होता है. जिस आदमी ने संघर्ष किया, उसे ही इनाम मिलना चाहिए. और पूछो कि संघर्ष किसने किया तो इशारा पायलट के सिवा कहीं और नहीं.

इसमें कोई शक नहीं कि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं. लेकिन अशोक गहलोत जैसे दूसरे सीनियर नेताओं को 'अकर्मण्य' ठहरा देना अपरिपक्वता ही कही जाएगी. किसी भी संगठन में लक्ष्य हासिल करना किसी एक शख्स के बूते की बात नहीं होती. मैनेजमेंट की परिभाषा में भी लक्ष्य प्राप्ति को सामूहिक प्रयासों की संज्ञा दी जाती है. ऐसे में पायलट गुट को ऐसी ओछी बयानबाजी से बचना चाहिए.

इसके उलट, अशोक गहलोत ने परिपक्वता का परिचय दिया है. उन्होंने पार्टी की प्रबल जीत की संभावनाओं के बावजूद मीडिया से यही कहा कि मुख्यमंत्री का फैसला विधायक दल और अध्यक्ष राहुल गांधी करेंगे. गहलोत ने नेताओं से ज्यादा पार्टी कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया है. गहलोत के मुताबिक पहले कड़े मुकाबले का अंदेशा जताया जा रहा था लेकिन कार्यकर्ताओं की मेहनत की वजह से पार्टी बड़े मार्जिन से जीत हासिल करेगी.

राजस्थान विधानसभा

कुर्सी के लिए 'कुर्सीवालों' के दर पर दौड़

सचिन पायलट समझते हैं कि सफलता चाहे सबके साथ से मिली हो लेकिन इससे आगे मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए उन्हें सारी मेहनत अकेले ही करनी होगी. यही वजह है कि शुक्रवार शाम को चुनाव खत्म होने के बाद वो जयपुर में आराम के लिए नहीं रुके. पायलट तुरंत दिल्ली चले गए. पिछले 2 दिन में यहां उन्होंने तमाम छोटे-बड़े नेताओं से मुलाकात की है. प्रचार के लिए राजस्थान आए नेताओं को धन्यवाद दिया है. इस तरह की कोशिशों को राजनीतिक गलियारों में अपनी दावेदारी मजबूत करने की नीति ही समझा जाता है.

अशोक गहलोत ने भी पिछले 2 दिन में अधिकतर समय कांग्रेस मुख्यालय में अपने दफ्तर में ही गुजारा है. इस दौरान उन्होंने भी साथी नेताओं से राजस्थान और बाकी राज्यों के चुनाव बाद के हालातों पर विस्तार से चर्चा की है. सोनिया गांधी के 72वें जन्मदिन पर सबसे पहले बधाई देने वाले नेताओं में हमेशा की तरह इस बार भी वो शामिल रहे हैं. सोनिया के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से भी गहलोत की लंबी मीटिंग हुई है.

बीजेपी में भी बैठकों का दौर

कांग्रेस के गुटों में मुख्यमंत्री पद का संघर्ष छिड़ा है तो एग्जिट पोल के बाद बीजेपी खेमे में थोड़ी मायूसी छाई हुई है. हालांकि सार्वजनिक तौर पर बीजेपी के सभी नेता पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने की बात कह रहे हैं. लेकिन हकीकत का अंदाजा शायद उन्हें भी बखूबी है. वसुंधरा राजे सिंधिया आगे की रणनीति पर चर्चा के लिए लगातार बैठकें कर रही हैं.

शुक्रवार शाम मतदान खत्म होने के बाद शनिवार को सुबह-सुबह वसुंधरा राजे ने अपने विधानसभा क्षेत्र में कुछ चुनिंदा कार्यकर्ताओं के साथ मीटिंग की. इस मीटिंग में जिले की सभी सीटों पर विस्तार से चर्चा हुई. दोपहर बाद वो जयपुर पंहुची और यहां बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ ही कई दूसरे नेताओं से भी चर्चा की.

नतीजे घोषित होने के बाद की स्थिति की संभावना को देखते हुए वसुंधरा राजे लगातार बीजेपी नेताओं से मंथन और मुलाकात कर रही हैं

बीजेपी बहुमत न मिलने और इसके नजदीक रह जाने के हालात से निपटने के लिए भी रणनीति तैयार करने में जुटी हुई है. बताया जा रहा है कि पार्टी में मंथन इसी बात को लेकर हो रहा है कि नतीजों में अगर 90-95 सीटें आती हैं तो बहुमत का जुगाड़ किस तरह से किया जा सकता है. हालांकि राजे ने कहा कि एग्जिट पोल अकसर गलत ही साबित होते हैं. उन्होने जोर देकर कहा कि राजस्थान इस बार सरकार रिपीट न करने का पिछले 20 साल का रिकॉर्ड तोड़ने जा रहा है.

वैसे, सूत्र इस बात की ओर इशारा करते हैं कि अगर बीजेपी बहुमत से कुछ दूर रह जाती है तो यहां सरकार बनाने की पूरी कोशिश की जाएगी. इसके लिए अपने बागियों के साथ ही कांग्रेस के बागियों तक भी पहुंच बनानी शुरू कर दी गई है. एग्जिट पोल नतीजों के उलट राजनीतिक विश्लेषक 1993 जैसे हालात से इनकार नहीं कर रहे हैं, जब बीजेपी को 95 सीट मिली थी और भैरों सिंह शेखावत ने निर्दलीयों के सहयोग से सरकार बनाई थी.