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राजस्थान चुनाव: त्रिकोणीय संघर्ष के बीच क्या तारानगर में कमल खिला पाएंगे राकेश जांगिड़?

तारानगर में कांग्रेस के समर्थकों के बंटवारे का सीधा असर या यूं कहें की सकारात्मक असर भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है.

Himanshu Kothari

राजस्थान, भारत के एक ऐसे प्रदेश के तौर पर जाना जाता है जहां रेतीले टीलों की भरमार है. इनकी वजह से राजस्थान भारत का सबसे गर्म प्रदेश भी है. गर्मियों के मौसम में यहां की गर्म हवाएं जहां लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं तो वहीं सर्दी के मौसम में यहां की ठंड भी हाड़-कंपाने वाली होती है. लेकिन इस बार सर्दी के मौसम में राजस्थान का हाल कुछ अलग है क्योंकि प्रदेश में फिलहाल सियासी पारा गर्माया हुआ है. वहीं चूरू राजस्थान के सबसे गर्म जिले के तौर पर अपनी पहचान बनाए हुए है. हालांकि चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा सियासी तापमान चूरू जिले की तारानगर विधानसभा सीट पर बढ़ा हुआ देखने को मिल रहा है.

200 विधानसभा सीट वाले राजस्थान में तारानगर विधानसभा सीट का चुनावी पारा इन दिनों लोगों के सिर पर चढ़ा हुआ है. इस सीट पर आलम यह है कि इस बार के चुनाव में यह सीट दिग्गज नेता, बागी नेता और एक नए उम्मीदवार के बीच में अटक कर रह गई है. जिसके कारण त्रिकोणीय संघर्ष इस सीट पर बन गया है. दिग्गज नेता में नाम कांग्रेस के नरेंद्र बुडानिया का है. बागी नेता में कांग्रेस से विधायक रह चुके डॉक्टर सीएस बैद का नाम है तो वहीं नए उम्मीदवार के तौर पर पहली बार विधायक का चुनाव लड़ रहे बीजेपी उम्मीदवार राकेश जांगिड़ है.


चंद्रशेखर बैद

अगर इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो 1990 से कांग्रेस ने इस सीट पर चुनाव जीतना शुरू किया और लगातार चार चुनावी जीत तारानगर में दर्ज कर दी. 1990, 1993, 1998 में कांग्रेस के चंदनमल बैद इस सीट से विधायक चुने गए. चंदनमल मंत्री पद पर भी रह चुके हैं. वहीं 2003 के चुनाव में चंदनमल बैद ने अपने बेटे डॉ. चंद्रशेखर बैद को चुनावी मैदान में तारानगर से टिकट दिला दी.

नतीजतन चंद्रशेखर बैद यानी सीएस बैद ने इस सीट पर शानदार जीत हासिल की. लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनाव से यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में है. वर्तमान राजस्थान सरकार में पंचायती राज मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने साल 2008 विधानसभा चुनाव में तारानगर से ही जीत दर्ज कर करीब 18 साल बाद क्षेत्र में कमल खिलाया था. राजस्थान की राजनीति में राजेंद्र राठौड़ मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बाद नंबर दो की हैसियत रखते हैं. वहीं 2013 के चुनाव में बीजेपी के जयनारायण पूनिया ने इस सीट से जीत दर्ज कर बीजेपी के विजय अभियान को बनाए रखा था. पूनिया 1978-80 में राजस्थान में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं.

राकेश जांगिड़

बिगड़े समीकरण

हालांकि इस बार इस सीट पर समीकरण काफी बिगड़ गए हैं. 2003 में जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस के सीएस बैद को 2008 और 2013 में हार मिली. जिसके चलते कांग्रेस ने इस बार सीएस बैद की टिकट काट दी और नरेंद्र बुडानिया को तारानगर से कांग्रेस उम्मीदवार घोषित कर दिया.

एमबीबीएस और एमडी कर चुके बैद राजनीति में आने से पहले जयपुर के एसएमएस अस्पताल में प्रोफेसर भी रहे हैं. तारानगर में बैद के समर्थक तो हैं लेकिन वह इस क्षेत्र में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे, जो कि कांग्रेस से उनकी टिकट काटे जाने की एक प्रमुख वजह मानी जा रही है. सीएस बैद को लेकर यहां कि जनता का कहना है 'चुनावों के दौरान बैद जी क्षेत्र का दौरा करते हैं और उसके बाद ईद का चांद हो जाते हैं.'

अशोक गहलोत और नरेंद्र बुडानिया

वहीं कांग्रेस के बुडानिया पूर्व सीएम अशोक गहलोत के काफी करीबी हैं. साथ ही बुडानिया राजस्थान की राजनीति में काफी बड़ा नाम हैं. बुडानिया कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रह चुके हैं, वहीं 3 लोकसभा चुनावों में भी जीत दर्ज कर अपनी छाप छोड़ चुके हैं. इस बार कांग्रेस के जरिए तारानगर में विधानसभा चुनाव के लिए बुडानिया को उम्मीदवार बनाकर कमान सौंपी गई है.

वहीं अपना टिकट कटते ही सीएस बैद ने बागी तेवर अख्तियार करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और इस बार पूर्व विधायक सीएस बैद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में है. दूसरी तरफ बीजेपी ने मौजूदा विधायक जयनारायण पूनिया का टिकट काटकर इस बार राकेश जांगिड़ को तारानगर से उम्मीदवार बनाया है. जयनारायण पूनिया की उम्र 85 साल के करीब पहुंच चुकी है, जिसके बाद युवा नेता राकेश जांगिड़ को टिकट सौंपी गई और यहीं से अब तारानगर के समीकरण बुडानिया, बैद और जांगिड़ में उलझ गए हैं.

नरेंद्र बुडानिया

एक तरफ जहां बुडानिया को राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा तीनों चुनाव का अनुभव है तो सीएस बैद तीन बार विधानसभा का चुनाव तारानगर से ही लड़ चुके हैं. बैद परिवार का तारानगर की राजनीति में काफी वर्चस्व रह चुका है. वहीं राजेंद्र राठौड़ के चहेते माने जाने वाले राकेश जांगिड़ इससे पहले नगर पालिका के चुनाव लड़ चुके हैं और वर्तमान में पूरे क्षेत्र पर उनकी पकड़ है, लेकिन विधानसभा का चुनाव जांगिड़ पहली बार लड़ रहे हैं. तारानगर में पार्षद का चुनाव जीत चुके राकेश जांगिड़ नगरपालिका में  वित्तीय जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन चुकी इस सीट पर अगर अंदर की हकीकत पर गौर किया जाए तो मोटे तौर पर वोटर्स भी इन तीन के बीच बंट गए हैं. लेकिन इस बंटवारे के बाद भी बीजेपी का पलड़ा तारानगर में भारी दिखाई दे रहा है.

राजेंद्र राठौड़ और राकेश जांगिड़

अनुभव और युवा जोश के बीच टक्कर

कांग्रेस से बगावत करने वाले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सीएस बैद का चुनाव लड़ने का फैसला कांग्रेस के लिए मुसबीत बना हुआ है. चुनावी रण में बैद के मैदान में होने से कांग्रेस के समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा बैद का समर्थन कर रहा है. जिससे इस क्षेत्र में कांग्रेस ही दो फाड़ में बंट चुकी है. कांग्रेस के समर्थकों के बंटवारे का सीधा असर या यूं कहें की सकारात्मक असर भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है. साथ ही तारानगर की आबादी में युवाओं की भूमिका काफी ज्यादा है. युवाओं के बीच बीजेपी उम्मीदवार जांगिड़ की अच्छी पकड़ है. तारानगर क्षेत्र से ही संबंध रखने वाले जांगिड़ युवा वोटर्स को लामबंद करने में काफी माहिर हैं. साथ ही यहां के लोगों की मांग भी एक युवा विधायक की है. बुडानिया और बैद की उम्र जहां 60 साल से पार हो चुकी है तो वहीं जांगिड़ की उम्र 38 साल है. दूसरी तरफ एलईडी स्ट्रिट लाइट, टूटी सड़कों के पुनर्निर्माण, बिजली-पानी जैसी कई बुनियादी समस्याओं का हल करने में योगदान देकर तारानगर शहर की तस्वीर बदलने और शहर के विकास कार्य के कारण भी यहां लोग जांगिड़ से काफी प्रभावित हैं. हालांकि अब देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि अनुभव को टक्कर देते हुए विधानसभा चुनाव के रण में राकेश जांगिड़ के समीकरण कितने सटीक बैठते हैं.

ऐसे में अब आखिरी दांव जनता के ही हाथ में है. तारानगर की जनता पर ये बात निर्भर करती है कि वह बुडानिया और बैद के चुनावी अनुभवों और इतिहास को तवज्जो देती है या फिर वर्तमान में क्षेत्र में सक्रिय राकेश जांगिड़ के नाम पर वोट देकर तारानगर में बीजेपी की जीत की हैट्रिक लगाने के साथ ही फिर से कमल खिलाती है.