view all

राजस्थान: कांग्रेस और बीजेपी सिर्फ एक-दूसरे से नहीं लड़ रहे...'गृहकलह' भी चरम पर है

दोनों पार्टियों के सामने एक दूसरे से लड़ाई के अलावा अंदरूनी कलह से निपटना भी कम बड़ी चुनौती नहीं है.

Mahendra Saini

आगामी 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान आ रहे हैं. मोदी यहां सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से सीधा संवाद करेंगे. लेकिन प्रधानमंत्री के दौरे से पहले कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है. यूं तो बहस का मुद्दा आपातकाल के पक्ष-विपक्ष का था. लेकिन इसमें दोनों पार्टियों ने एक दूसरे की चुनावी रणनीति को भी फेल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

वसुंधरा सरकार के शराब पर काऊ सेस लगाने पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तंज कसा. उन्होंने कहा कि जो शराब के शौकीन होते हैं उन्हे सिर्फ शराब ही शराब दिखती है. गहलोत यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा कि आनेवाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में न बीजेपी जीतेगी और न ही वसुंधरा राजे या नरेंद्र मोदी. फिर राजे बार-बार मोदी को राजस्थान बुलाकर उनकी भी क्यों बेइज्जती कर रही हैं.


प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी प्रधानमंत्री के दौरे पर तंज कसा है. पायलट के मुताबिक देश के प्रधानमंत्री को लाभार्थियों के बजाय वंचितों से संवाद करना चाहिए. कांग्रेस नेताओं के इन आरोपों पर जवाब देने आई मंत्री किरण माहेश्वरी ने कांग्रेस को अपनी चुनावी रणनीति ठीक से बनाने की सलाह दे डाली. माहेश्वरी के मुताबिक कांग्रेस का 'मेरा बूथ, मेरा गौरव' अभियान पूरी तरह से फेल हो चुका है. ऐसे में वो अपनी रणनीति पर ध्यान दें न कि बीजेपी के कार्यक्रमों पर छींटाकशी करे.

बयानबाजी से इतर दुनिया अलग है

बीजेपी में वापसी के बाद किरोड़ी लाल मीणा ने पीएम मोदी से मुलाकात की तस्वीर अपनी फेसबुक वॉल पर साझा की थी. साथ ही उन्होंने वो मुद्दे भी फेसबुक पोस्ट में लिखे थे जिनकी चर्चा उन्होंने पीएम के साथ की थी.

राजनीतिक बयानबाजी अपनी जगह है, लेकिन राजस्थान में जमीनी हकीकत कुछ और ही हालत बयां कर रही है. बात आगे बढ़ाने से पहले हाल ही में बीजेपी में वापस लौटे डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के एक बयान का उल्लेख करना जरूरी है. पिछले दिनों दिल्ली में मीणा ने भरी सभा में कहा था कि राजस्थान में बीजेपी के लिए जीत मुश्किल है. उस समय मंच पर राजस्थान के कई सांसद, विधायक और बड़े पार्टी पदाधिकारी बैठे हुए थे. मीणा ने केंद्रीय नेतृत्व से राजस्थान पर खास ध्यान देने को कहा था.

किरोड़ी लाल मीणा का ये बयान और मोदी-शाह की जोड़ी का राजस्थान पर ज्यादा फोकस करना बताता है कि राजस्थान के रण में कांग्रेस के लिए हालात ज्यादा मुफीद हैं. हालांकि बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं को इस बार यहां टारगेट-180 का नारा दिया है. यानी पिछली बार जीती 163 सीटों से आगे बढ़कर इस बार 180 सीट जीतने का लक्ष्य. पिछले साल जुलाई में अमित शाह तीन दिन तक जयपुर में रहे थे. इस पहाड़ से लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने बूथ मैनेजमेंट और विस्तारक योजना को मजबूत करने का मंत्र भी दिया था. लेकिन 12 महीने बाद अब लग रहा है कि बीजेपी का बूथ मैनेजमेंट कहीं किसी ब्रेकर पर अटक गया है.

लाखों नए सदस्य जोड़ने और हर बूथ पर नियुक्तियों को अमली जामा पहनाने के बावजूद बीजेपी इस साल की शुरुआत में हुए तीनों उपचुनाव हार गई. इस बीच जब हार के कारणों की समीक्षा की गई तो पता चला कि नए सदस्य, विस्तारक, बूथ अध्यक्ष और इनका मैनेजमेंट सब कागजों में ही था. एक सूत्र ने बताया कि जमीन पर तो पार्टी को कई वो लोग ढूंढे से भी नहीं मिले, जिन्हें पद बांटे गए थे.

चुनावी साल में पार्टी की कलह का इससे बड़ा नमूना क्या होगा कि 2 महीने और जयपुर-दिल्ली में हाईलेवल बैठकों के बावजूद प्रदेशाध्यक्ष का मुद्दा नहीं सुलझ सका है. ये पहली बार है जब बीजेपी अध्यक्ष का पद इतने लंबे समय तक खाली है. अब तो प्रदेशाध्यक्ष के सवाल पर नेता ही झल्लाने लगे हैं. पिछले दिनों कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने पत्रकारों से खीझते हुए कहा कि प्रदेशाध्यक्ष नहीं होने से कौन सा पहाड़ टूट गया.

कांग्रेस ने भुनाई बीजेपी की रणनीति

दूसरी ओर, कांग्रेस ने बीजेपी के बूथ मैनेजमेंट को नया नाम देकर काम बहुत तेज गति से आगे बढ़ा दिया है. कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट ‘मेरा बूथ, मेरा गौरव’ नाम से अभियान शुरू कर चुके हैं. बड़े नेताओं को जिलेवार जिम्मेदारी सौंपने के अलावा वे खुद हर विधानसभा का दौरा कर रहे हैं. इस कार्यक्रम ने कार्यकर्ताओं के बीच नया जोश भर दिया है. पायलट के दौरों पर उमड़ने वाली भीड़ से इसे आसानी से समझा जा सकता है. जबकि, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को रैलियों का आलम ये है कि उन्हे काले झंडे दिखाए जा रहे हैं. पुलिस अब उनकी रैली में काली शर्ट पहन कर आने वालों तक को बैन कर रही है.

हालांकि आंतरिक कलह से कांग्रेस भी अछूती नहीं है. इस समय कांग्रेस में 2 शक्ति केंद्र बने हुए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राष्ट्रीय संगठन महासचिव बन गए हैं. लेकिन वे राजस्थान पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. पायलट और गहलोत के बीच रस्साकशी तेज है. कांग्रेस संगठन में हाल ही में हुए कुछ बदलाव इस खींचतान को साफ दर्शाते हैं. पहले युवा कांग्रेस में पायलट गुट के कई पदाधिकारियों को हटा दिया गया. अब स्क्रीनिंग कमेटी में कुमारी शैलजा का आना कई संकेत देता है.

शैलजा का बहाना, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

स्क्रीनिंग कमेटी का जिम्मा कुमारी शैलजा को दिया जाना एक तीर से दो नहीं बल्कि कई शिकार करने जैसा है. शैलजा की नियुक्ति के पीछे राष्ट्रीय संगठन महासचिव अशोक गहलोत के दिमाग को माना जा रहा है. विधानसभा चुनाव के लिए टिकट वितरण का काम मुख्य तौर पर स्क्रीनिंग कमेटी के जिम्मे ही रहेगा. माना जा रहा है कि ये प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के विशेषाधिकारों में गतिरोध पैदा करने की कोशिश है.

शैलजा सोनिया गांधी के काफी करीब मानी जाती हैं. अशोक गहलोत भी राहुल से ज्यादा सोनिया और अहमद पटेल के नजदीक माने जाते हैं, जबकि सचिन पायलट को राहुल की युवा ब्रिगेड का सदस्य माना जाता है. ऐसे में शैलजा की नियुक्ति दिखाती है कि फिलहाल तो राजस्थान की राजनीति में गहलोत के जादू से पार पाना पायलट के लिए आसान नहीं है.

पार्टी की अंदरूनी राजनीति से अलग बात करें तो कुमारी शैलजा की नियुक्ति बीजेपी के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी करेगी. हरियाणा से आने वाली शैलजा एक दलित नेता हैं. आजादी के बाद से ही अनुसूचित जातियां कांग्रेस के लिए वोट करती रही हैं. उत्तर प्रदेश में चाहे मायावती ने दलितों को अपने पाले में करने में कामयाबी हासिल कर ली हो पर राजस्थान में बीएसपी का वोट प्रतिशत 6-7% पर ही सीमित है. 2008 में बीएसपी की टिकट पर 6 विधायक चुने गए थे. बाद में इन सबने कांग्रेस को समर्थन दिया था.

दलित वोटों पर कांग्रेस की नजर

2014 लोकसभा और उससे पहले 2013 विधानसभा चुनाव में दलितों का वोट बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुआ था. लेकिन बीते कुछ महीनों से बीजेपी को दलित विरोध झेलना पड़ रहा है. ऐसे में शैलजा की नियुक्ति दलितों में ये मैसेज देने का काम करेगी कि कांग्रेस ने उनका बेहतर खयाल रखा है. वैसे भी, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ‘मैसेज’ और इसे देने के तरीकों का खास तौर पर खयाल रखते हैं.

राजस्थान में अनुसूचित जाति के लिए 34 सीट आरक्षित हैं. इनमें से 2013 में 32 सीटें बीजेपी ने जीत ली थी. ये मोदी लहर थी. लेकिन अब गुजरात के जिग्नेश मेवाणी भी कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने के लिए राज्य के लगातार दौरे कर रहे हैं. मेवाणी की रैलियों में उमड़ रही भीड़ और खुद बीजेपी के दलित विधायकों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है.

गुजरात से लगते मेवाड़ और वागड़ के कुछ इलाकों में तो मेवाणी के सभा करने पर भी रोक लगाई गई. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पिछले चुनाव में दलितों को बरगलाया गया. लेकिन महज 4 साल के भीतर ही ये साफ हो गया कि बीजेपी सिर्फ सवर्णों की पार्टी है और दलितों के कल्याण से उसका कोई वास्ता नहीं.

कांग्रेस की रणनीति बीजेपी से खफा चल रहे राजपूतों और अलग पार्टी बना चुके घनश्याम तिवाड़ी के जरिए ब्राह्मण वोटों को अपने पाले में लाने की भी है. यही वजह है कि अशोक गहलोत ने बीते कुछ दिनों में कभी उनके प्रतिद्वंद्वी रहे पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के अपमान का मुद्दा बार-बार उठाया है. आपको बता दें कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर शेखावत और उनके परिवार को पर्याप्त सम्मान न देने का आरोप लगता रहा है.

बहरहाल, एक बात साफ है कि चुनाव से 5 महीने पहले सरगर्मियां काफी तेज हो गई हैं. नए गठबंधन की संभावनाओं को टटोलने के साथ ही पुरानी दोस्तियों को और मजबूत करने की कोशिशें भी शुरू हो गई हैं. लेकिन दोनों पार्टियों के सामने एक दूसरे से लड़ाई के अलावा अंदरूनी कलह से निपटना भी कम बड़ी चुनौती नहीं है.