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राजस्थान चुनाव 2018: बेनीवाल का उदय बीजेपी के लिए अच्छी खबर क्यों है

माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा

FP Politics

जाट लीडर हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय देख रहा है. यह पिछले तमाम महीनों में बीजेपी के लिए सबसे अच्छी खबर है. नई पार्टी न सिर्फ आने वाले विधान सभा चुनाव में, बल्कि अगले साल लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए मददगार साबित होगी.

बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) मुख्य तौर पर ऐसे पूर्व बीजेपी नेताओं का एक साथ आना है, जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में अपने लिए कोई भविष्य नहीं देखते. इन लोगों का सामूहिक लक्ष्य खुद को ऐसी जगह ले जाना है, जहां से वो कांग्रेस और राजे दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उनकी राजनीति का खेल कुछ ऐसा है, जहां राजे को खत्म किया जा सके और राजस्थान में नया पावर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी की जा सके.


वोट एकजुट करने की कोशिश

आने वाले विधानसभा चुनाव में, इनकी उम्मीद बीजेपी के खिलाफ वोट को एकजुट करने की है. इस तरह वे कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे. बेनीवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि वे त्रिशंकु विधान सभा में अच्छे नंबर के साथ आएं. इसके बाद वे किंग मेकर्स बन जाएं. ठीक वैसे ही, जैसे कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी ने किया. अगर ऐसा होता है, तो उनकी पहली पसंद राजे रहित बीजेपी होगी.

तीसरे मोर्चे में एकमात्र अहम नेता बेनीवाल हैं. अहम होने की वजह उनका जाट नेता होना है. जाटों के बारे में माना जाता है कि वे एकजुट होकर एक पार्टी को  वोट देते हैं. राजस्थान में पुरानी कहावत है -जाट की रोटी, जाट का वोट, पहले जाट को. अभी जाटों के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जिसकी पूरे राजस्थान में धमक हो. बेनीवाल का लक्ष्य उसी खालीपन को भरना और निर्विवाद तौर पर जाटों का नेता बनने का है. राज्य में जाटों की तादाद करीब 12 से 14 फीसदी है, बेनीवाल इन्हीं को एकजुट करना चाहते हैं.

यह ऐसा इलेक्शन है, जिसे एंटी इनकंबेंसी के अंडर करंट की तरह से देखा जा रहा है, जो राजे के खिलाफ है. ऐसे में जाटों के लिए स्वाभाविक पसंद कांग्रेस है. बेनीवाल के होने से समुदाय के पास एक और विकल्प होगा, जो कांग्रेस के नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन बेनीवाल के लिए चुनौती होगी जाटों को कांग्रेस से दूर रखना. वो इसकी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने पूर्व मुख्य मंत्री अशोक गहलोत पर हमला बोला है. गहलोत को जाटों में नापसंद किया जाता है. माना जाता है कि उन्होंने कांग्रेस में जाट नेताओं को खत्म कर दिया. हालांकि सचिन पायलट के उभरने से यह रणनीति नाकाम रह सकती है. जाटों के लिए पायलट क्लीन स्लेट की तरह शुरुआत कर रहे हैं. ऐसे में गहलोत के लिए जाटों का गुस्से का कोई मतलब नहीं बचता.

क्या है समस्या

तीसरे मोर्चे के लिए एक और समस्या है बड़े स्तर पर सामाजिक गठबंधन का अभाव. बिहार में लालू यादव या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास मुसलमानों सहित कुछ और जातियों, समुदायों का समर्थन रहा है. लेकिन यहां बेनीवाल के साथ अकेले जाट हैं. ऐसे में 12 से 14  फीसदी वोट किसी उम्मीदवार को हराने में काम आ सकते हैं, लेकिन वे अपने उम्मीदवार को इलेक्शन नहीं जिता सकते.

इसके अलावा, जब भी राजस्थान में कोई ताकतवर समुदाय एक साथ आता दिखता है, तो उसके खिलाफ काउंटर पोलराइजेशन या जवाबी ध्रुवीकरण होने लगता है. समस्या तब नहीं होती, अगर नए फ्रंट के बाकी नेताओं का बड़ा आधार होता. लेकिन बेनीवाल के साथी, जैसे घनश्याम तिवाड़ी अपनी खुद की सीट जीतने की क्षमता नहीं रखते. ऐसे में सिर्फ एक अहम नेता को आगे रखकर नैया पार करना आसान नहीं होगा.

हां, लंबे समय में बेनीवाल के उदय से बीजेपी को फायदा होगा. माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा. संभावना है कि बीजेपी या तो राजपूत या ब्राह्मण को नए चेहरे के तौर पर पेश करेगी. अगर बेनीवाल नए नेतृत्व के साथ पार्टी से जुड़ते हैं, तो बीजेपी एक बड़ा सामाजिक गठजोड़ बनाने में कामयाब होगी. ऐसे में उसका वोट बेस विधान सभा चुनावों के मुकाबले काफी बड़ा होगा.