view all

राजस्थान: 'भूत' के कारण फिर खाली रहेगी एक सीट ?

अलवर की रामगढ़ सीट पर चुनाव स्थगित हो गया है. 7 दिसंबर को अब 200 सीटों पर नहीं बल्कि 199 सीटों पर ही वोट डाले जाएंगे.

Mahendra Saini

अलवर की रामगढ़ सीट पर चुनाव स्थगित हो गया है. 7 दिसंबर को अब 200 सीटों पर नहीं बल्कि 199 सीटों पर ही वोट डाले जाएंगे. रामगढ़ सीट राजस्थान की सबसे हॉट सीटों में से एक है. पिछले कुछ साल में मेवात क्षेत्र में आने वाले अलवर के गांव-कस्बे गौ-तस्करों और गौ-रक्षकों की झड़पों से चर्चित रहे हैं. अलवर जिले में रकबर खान और पहलू खान जैसे लोग भीड़ की हिंसा का शिकार भी हुए हैं.

फिलहाल, खबर मॉब लिंचिंग की नहीं है. खबर है, रामगढ़ में चुनाव स्थगित होने और राजस्थान विधानसभा से जुड़े एक अनचाहे संयोग की. ये संयोग ऐसा है कि तमाम आधुनिकता, वैज्ञानिक और तार्किकवाद के बावजूद इसका उत्तर ढूंढ़े से नहीं मिल रहा. पढ़े-लिखे लोग इस संयोग को कोरी बकवास और वहम करार देते हैं. लेकिन बात वही पर अटक जाती है कि ऐसा है तो फिर 18 साल से संयोग बरकरार क्यों है.


कभी पूरी नहीं हो सकी विधानसभा

राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं. जयपुर के ज्योतिनगर इलाके में अभी जो विधानसभा की बिल्डिंग है, उसमें यह 2001 में ही शिफ्ट हुई है. इससे पहले विधानसभा पुराने शहर के टाउन हॉल में चलती थी. पिछली सदी के आखिरी दशक में भैरों सिंह शेखावत ने नई बिल्डिंग का काम शुरू करवाया. जब तक काम पूरा होता, शेखावत की जगह कांग्रेस की गहलोत सरकार सत्ता में आ गई. लिहाजा, नई बिल्डिंग का उद्घाटन कांग्रेस सरकार ने किया.

भैरो सिंह शेखावत

रोचक बात ये है कि 2001 के बाद से शायद ही कोई सत्र ऐसा रहा जब विधानसभा में पूरे 200 विधायक मौजूद हों. अगर ऐसा हुआ भी तो वो ज्यादा दिन तक कायम नहीं रह सका. नई बिल्डिंग में शिफ्ट होते ही तब के मंत्री भीखा भाई और लूणकरणसर विधायक भीमसेन चौधरी का निधन हो गया. 2004 में कांग्रेस के ही राम सिंह बिश्नोई और इसके अगले साल डीग विधायक अरुण सिंह का निधन हो गया. पिछले 17 साल में इस तरह 8 विधायकों का पद पर रहते हुए निधन हो चुका है.

2008 से 2013 का कार्यकाल तो कई विधायकों के लिए अपशकुनों की सीरीज साथ लेकर आया. मौजूदा पंचायती राज मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ को तब दारा सिंह एनकाउंटर केस में 56 दिन तक जेल में रहना पड़ा. 2011 में भंवरी देवी हत्याकांड में मंत्री महीपाल मदेरणा और विधायक मलखान सिंह बिश्नोई जेल गए तो अब तक नहीं निकले. 2013 में एक और मंत्री बाबू लाल नागर को रेप केस में जेल जाना पड़ा. संयोग देखिए कि इन 4 में से 3 सत्तारूढ़ दल से थे.

मौजूदा विधानसभा में भी अपशकुन कायम

अब जैसे रामगढ़ सीट पर चुनाव स्थगित हुआ है, वैसे ही 2013 में चूरू में उम्मीदवार के निधन की वजह से चुनाव नहीं हो सका था. यानी लगातार दूसरा चुनाव 199 सीटों पर ही लड़ा जा रहा है. एक संयोग देखिए कि दोनों ही बार बीएसपी प्रत्याशी का निधन हुआ. बाद में चूरू में चुनाव होने से पूरी 200 सीटें भरी तो अप्रैल, 2014 के आम चुनाव में 4 विधायकों के सांसद बन जाने से भरी सीटें फिर 200 से नीचे आ गई.

विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों में ही धौलपुर विधायक बाबू लाल कुशवाह को हत्या के आरोप में जेल जाना पड़ा. उनकी विधायकी रद्द हो जाने के बाद यहां उपचुनाव हुआ. इसके अलावा, मांडलगढ़ विधायक कीर्ति कुमारी, मुंडावर विधायक धर्मपाल चौधरी और नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह का निधन होने से फिर सीटें खाली हो गई. संयोग देखिए कि इन 4 में से 3 सत्तारूढ़ दल से थे.

क्या भूत ले रहा विधायकों की जान ?

पिछले 17 साल से जारी इन संयोगों को देखते हुए कई बार ऐसी भी चर्चाएं जोर पकड़ती रही कि विधानसभा की बिल्डिंग में भूतों का डेरा है. चर्चा इतनी मजबूत रही कि ये विधानसभा में बहस का मुद्दा तक बनी. पिछले बजट सत्र में सरकारी सचेतक कालूलाल गुर्जर ने इस पर चर्चा करते हुए सरकार से हवन कराने की मांग की. अब कांग्रेस में आ चुके तब के बीजेपी विधायक हबीबुर्रहमान ने भी सीटें पूरी न भर पाने की वजह भूतों को ही बताया था. कांग्रेस विधायक धीरज गुर्जर ने भूत पर सरकार से रुख साफ करने की मांग की थी. मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ ने तो जांच के लिए कमेटी बनाने का सुझाव ही दे दिया था.

विधानसभा में भूतों का मुद्दा उठने का कारण कई तरह की अफवाहें हैं. दरअसल, इस बिल्डिंग का काम कई साल तक चला था और इस दौरान कई मजदूरों की मौत हो गई थी. जिस जमीन पर ये बिल्डिंग है, उसके एक हिस्से में श्मशान भी हुआ करता था. इन्ही वजहों से भूत की चर्चा जब-तब जोर पकड़ती रहती है. विधानसभा में देर रात तक काम करने वाले कर्मचारियों ने कई बार कॉरीडोर में चहलकदमी की आवाज आने, बत्तियों के अपने आप जलने-बुझने और अजीब आवाजों का भी दावा किया. हालांकि कभी इनकी पुष्टि नहीं हो सकी.

ऐसा नहीं है कि इन चर्चाओं को रोकने के लिए सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए. इमारत का वास्तुदोष दूर करने के लिए विधानसभा परिसर की उत्तर दिशा में बोरवेल भी खुदवाया गया. इसके अलावा, जिस जगह पर श्मशान हुआ करता था, उसपर बगीचा और पार्किंग बना दिया गया. लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भूत की चर्चाएं खत्म नहीं हो सकी हैं.

बहरहाल, पिछली बार जब भूत की चर्चाएं आम हुई थी तब अवाप्ति से पहले इस जमीन के मालिकों में से एक रहे प्रेम बियानी ने भी कम रोचक बयान नहीं दिया था. बियानी के मुताबिक निश्चित रूप से वे आत्माएं परेशान हैं जिनकी ये जमीन थी. 1964 में सरकार ने ये जमीन अवाप्त की थी लेकिन 53 साल बाद आज भी मुआवजे के कई केस पेंडिंग ही चल रहे हैं. इस दौरान कई लोग मुआवजे की आस लिए स्वर्ग सिधार चुके हैं. बियानी ने मजाक में कहा कि जमीन मालिकों के उत्तराधिकारियों को उनका वाजिब हक दिया जाए तो शायद हालात में परिवर्तन हों.