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सवा फीसदी वोट पर सत्ता बदलने वाले राजस्थान में सिर्फ दो बार बनी 50 फीसदी से ज्यादा वोट वाली सरकार

भले ही कम वोट स्विंग में राजस्थान की सत्ता अदलती-बदलती रही हो मगर एक फैक्टर ये भी है कि 14 बार के चुनावों में इस राज्य में केवल दो बार ही 50 फीसदी से ज्यादा वोट वाली सरकार बनी है.

Shubham Sharma

चुनावी मौसम में चलने वाली लहर ही तय करती है कि सत्ता का रुख किस तरफ होगा. यही कारण है कि हार या जीत के लिए प्रत्याशियों या दलों के पक्ष में बहने वाली लहर भी एक चुनावी फैक्टर होता है. राजस्थान में भी ये फैक्टर देखने को मिलता है. मगर वहां का चुनावी गणित कुछ ऐसा है कि सवा फीसदी से पांच फीसदी वोट स्विंग पर ही सरकार बदल जाती है. इतना ही नहीं, पिछले 14 विधानसभा चुनावों में सिर्फ दो बार ही राजनीतिक दल प्रदेश की 50 फीसदी से अधिक जनता का दिल जीतने में कामयाब हो पाए हैं.

कई बार वोट स्विंग ने बदला चुनावी माहौल


राजस्थान में वोट स्विंग एक ऐसा फैक्टर है जिसने न जाने कितनों का खेल बनाया और बिगाड़ा है. सबसे बड़ा उदाहरण है साल 2008 का विधानसभा चुनाव. कांग्रेस के सीपी जोशी महज एक वोट से हार गए थे. जिसके बाद उनकी सीएम की दावेदारी चली गई थी. इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि चुनाव में एक-एक वोट की कीमत होती है और पार्टियां भी इस बात को बखूबी समझती हैं.

साल 1993 और 2008 के चुनाव, ये दो ऐसे उदाहरण हैं जिनमें महज कुछ फीसदी वोटों ने पूरे चुनाव की हवा ही बदल दी. 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट कांग्रेस से महज 0.33 प्रतिशत अधिक था, लेकिन सीटों का अंतर 19 तक पहुंच गया था. जिसके चलते कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा. कुछ ऐसा ही साल 2008 के विधानसभा चुनावों में भी हुआ. जब कांग्रेस के खाते में सिर्फ 1.26 फीसदी वोट की बढ़ोतरी हुई और कांग्रेस ने 56 से सीधे 96 सीटों पर छलांग लगाई. वहीं बीजेपी की झोली से 4.93 वोट झिटक गए और वो 120 से सीधा 78 सीटों पर सिमट कर रह गई.

आपातकाल और राम मंदिर भी बने वोट स्विंग का कारण

साल 1977 के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट स्विंग हुआ. इसका कारण था आपातकाल. कांग्रेस को आपातकाल का खामियाजा इस कदर भुगतना पड़ा कि उसके खाते से 19.64 वोट खिसक गए. तब कांग्रेस को 41 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. इसके उलट प्रदेश में जनता पार्टी की लहर थी. जिसने 152 सीटों के साथ बंपर जीत दर्ज की.

वोट स्विंग का ऐसा करारा झटका कांग्रेस को 1990 के चुनाव में भी झेलना पड़ा. इससे पहले 1985 में कांग्रेस ने 46.57 फीसदी वोटों के साथ 113 सीटों पर कब्जा किया था. लेकिन साल 1990 का दौर वो था जब देश में राम मंदिर का मुद्दा पूरे चरम पर था और एक बार फिर कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. इस साल कांग्रेस का वोट करीब 12.93 फीसदी कम हुआ और उसे सिर्फ 50 सीटें ही मिल पाई. इस साल बीजेपी और जनता दल ने मिल कर चुनाव लड़ा. बीजेपी को 25.25 फीसदी वोटों के साथ 85 और जनता दल को 21.58 फीसदी वोटों के साथ 55 सीटें मिली.

अब तक सिर्फ दो बार ही बनी 50 फीसदी वोट की सरकार

भले ही कम वोट स्विंग में राजस्थान की सत्ता अदलती-बदलती रही हो मगर एक फैक्टर ये भी है कि 14 बार के चुनावों में इस राज्य में केवल दो बार ही 50 फीसदी से ज्यादा वोट वाली सरकार बनी है. 2013 के विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने 163 सीट जीतकर सत्ता की गद्दी तो हासिल कर ली लेकिन सिर्फ 45.50 फीसदी वोट के साथ. साल 1972 और 1977 के ही वो चुनाव थे जब राजनीतिक दलों को 50 फीसदी से अधिक जनता का साथ मिला था.

सबसे पहले साल 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 51.13 फीसदी मतों के साथ 145 सीटों पर कब्जा किया था. यह वो दौर था जब पहली बार इतने ज्यादा वोट प्रतिशत वाली सरकार राज्य में बनी. वहीं साल 1977 आते-आते कांग्रेस जनता के दिल से उतर गई. इसका कारण था 1975 में लगा आपातकाल जिसकी वजह से न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश में कांग्रेस विरोधी लहर चल पड़ी. कांग्रेस के प्रति इस विरोध का फायदा मिला जनता पार्टी को, जिसने साल 1977 के चुनाव में सीधे 50.39 फीसदी वोट के साथ राजस्थान की 152 सीटों पर कब्जा कर कांग्रेस को विपक्ष में बैठा दिया. यही वो साल था जब दूसरी और आखिरी बार राजस्थान में 50 फीसदी से ज्यादा वोट किसी राजनीतिक दल को मिले.

क्या इस बार टूटेगी यह परंपरा?

क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में महज चंद वोटों का स्विंग किसी भी पार्टी को सत्ता से बेदखल कर अन्य राजनीतिक दल को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचा देता है. ऐसे में फिलहाल राज्य में एक बार फिर से चुनावी बिगुल बज चुका है. चुनावों में राज्य के दो मुख्य दलों में कांटे की टक्कर के कयास लगाए जा रहे हैं. हालांकि क्या इस बार भी हल्का सा वोट स्विंग सत्ता परिवर्तन करा पाता है या यह रीत इन चुनावों में टूटती है, यह देखना दिलचस्प रहेगा.