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वसुंधरा सरकार में राजस्थान हर मोर्चे पर पिछड़ गया, कांग्रेस जीतकर वापस लाएगी गौरव: सचिन पायलट

राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष ने कहा, वसुंधरा सरकार में गरीबों के विकास के मुख्य मुद्दे बिसार दिए गए. उन्होंने 611 वादे किए थे लेकिन उनमें से शायद ही कोई वादा पूरा हुआ हो

Rangoli Agrawal

राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट को पूरा भरोसा है कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में सूब में सत्तारूढ़ बीजेपी पर जीत दर्ज करेगी. उन्होंने एक इंटरव्यू में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को विकास के हर मोर्चे पर राज्य के पिछड़े होने के लिए कसूरवार ठहराया.

राजस्थान की कुल 200 विधानसभा सीटों के लिए एक ही चरण में 7 दिसंबर को मतदान होना है. पेश है सचिन पायलट के इंटव्यू का कुछ अंश...


सवाल: किसानी का संकट और बेरोजगारी जैसे मुद्दे लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के वक्त उठाए जाते रहे हैं. इस बार कांग्रेस कौन से नए मुद्दे लेकर सामने आई है?

सचिन पायलट: बीते 5 वर्षों से सूबे में वसुंधरा राजे की बहुमत की सरकार है, उनके पाले में 165 विधायक हैं और केंद्र में भी बीजेपी की स्पष्ट बहुमत की सरकार है लेकिन हालात इतने खराब कभी नहीं रहे. अफसोस की बात है कि उन्होंने जनादेश को एकदम गारंटीशुदा मान लिया. गरीब लोगों के विकास के मुख्य मुद्दे बिसार दिए गए. उन्होंने 611 वादे किए थे लेकिन उनमें से शायद ही कोई वादा पूरा हुआ हो. बेशक, यह मसले बार-बार उठाए जाते हैं लेकिन अभी खेती-बाड़ी को जिस तरह से संकट ने घेर लिया है वैसा सूबे में कभी नहीं हुआ था. राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि 150 किसानों ने आत्महत्या की है. बेरोजगारी बहुत ज्यादा है.

राजस्थान एक युवा राज्य है, हमारे पास ऊर्जा और प्रतिभा की कमी नहीं. लेकिन पिछले दिनों 4 बेरोजगार नौजवानों ने नौकरी के अभाव में आत्महत्या कर ली- यह दिल दहला देने वाली बात है. वसुंधरा राजे ने राजस्थान के जनादेश के साथ दगा किया है. राज्य बदलाव के लिए मचल रहा है. दूसरी ओर देखें तो कांग्रेस अपनी बात सकारात्मक स्वर में कह रही है. हम सिर्फ बीजेपी के दोष ही नहीं गिना रहे, दोषियों का चेहरा सामने लाने तक ही हम सीमित नहीं बल्कि हमने 5 साल की एक योजना भी सुझाई है ताकि राजस्थान अभी जिन बाधाओं का सामना कर रहा है उसकी बेड़ियों को तोड़कर बाहर निकल सके.

सवाल: कांग्रेस की 5 साला योजना की मुख्य बातें क्या हैं?

सचिन पायलट: कृषि संकट और किसानों की माली हालत का समाधान किया जाएगा. मसला सिर्फ कर्ज और उधारी तक सीमित नहीं है. मसला बाजार तक पहुंच बनाने और वित्तीय तथा अन्य संसाधन मुहैया कराने का भी है. मिसाल के लिए, राजस्थान में यूरिया की भारी कमी पैदा हो गई है. पूरा किसान समुदाय एकबारगी बोझ तले दब गया है सो पूरे माहौल को ही नए सिरे से गढ़ने और खड़ा करने की जरुरत है. दूसरा मसला है कि नौजवान लोगों को रोजगार चाहिए. अगर आपने पीएचडी कर रखी है या आपके पास मास्टर डिग्री है लेकिन आप सबसे निचले पादान की सरकारी नौकरी के लिए अर्जी लगा रहे हैं तो समझिए कि आप छुपी हुई बेरोजगारी के शिकार हैं.

बेरोजगारी और छुपी हुई बेरोजगारी दोनों ही गंभीर मसले हैं और इनका समाधान किया जाएगा. हमारे मेनिफेस्टो में कई और बातों कही गई हैं. हमारी सोच है कि वसुंधरा राजे के शासन में राज्य के संसाधनों की बंदरबांट मची है लेकिन अब इसे आगे नहीं होने दिया जाएगा. वसुंधरा राजे की सरकार स्कूल और अस्पताल तक पीपीपी (निजी-सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी) मॉडल पर चलाने की जुगत भिड़ा रही है. अगर सरकार शिक्षा और चिकित्सा नहीं मुहैया करा सकती तो फिर उसे शासन में रहने का अधिकार नहीं है.

सवाल: आपने हाल में कहा था कि शिक्षा के लिए आवंटित राशि को खर्च के बजाय निवेश समझा जायेगा. अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो शिक्षा में निवेश की क्या योजना है?

सचिन पायलट: शिक्षा एक निवेश है क्योंकि जब आप शिक्षा पर खर्च के लिए किसी चेक पर दस्तखत करते हैं तो आप दरअसल भविष्य की सोचकर निवेश कर रहे होते हैं. आपको उम्मीद से ज्यादा हासिल होता है क्योंकि भावी पीढ़ी को ज्ञान, विवेक, अवसर और आत्म-सम्मान की प्राप्ति होती है. शिक्षा सामाजिक बुराइयों को खत्म करती है. सो, आप छोटे बच्चों में सिर्फ इस नाते ही निवेश नहीं कर रहे होते कि उन्हें नौकरी मिलेगी बल्कि उन्हें बेहतर नागरिक बनाने के नाते भी निवेश कर रहे होते हैं. वसुंधरा राजे ने जिन चीजों को मटियामेट किया है उन्हें हम फिर से बनाएंगे और हमारा जोर शिक्षा पर रहेगा. आखिर कोई सरकारी स्कूल किसी निजी स्कूल की ही तरह बेहतर क्यों ना हो? हर स्कूल गुणवत्ता में नवोदय विद्यालय या फिर केंद्रीय विद्यालय के जैसा क्यों ना हो? ऐसा कर दिखाना मुमकिन है, बस कुछ प्रयासों की जरुरत है. मैं जानता हूं, इतिहास हमारे खिलाफ है लेकिन संकल्पों में लोहे की सी मजबूती हो, विश्वास गहरा और आस्था दृढ़ हो तो फिर कोई कारण नहीं कि हमारे सूबे की शिक्षा व्यवस्था वैसी बेहतरीन न बने जैसा कि देश में बाकी जगहों पर है.

सवाल: बीजेपी ने बहुत सारी योजनाएं शुरू की हैं, इनमें इंटरनेट आधारित योजनाएं भी हैं. कांग्रेस सत्ता में आई तो इन योजनाओं के साथ क्या सलूक होगा?

सचिन पायलट: योजनाएं खुद में बुरी नहीं हैं, लेकिन जरा भामाशाह परियोजना पर गौर कीजिए. यह योजना सिरे से नाकाम है क्योंकि इसपर कुछ भ्रष्ट लोगों का कब्जा बन गया है. अस्पताल, बिचौलिए और लोगों के बीच एक सांठगांठ बन गई है. बीमा कंपनियां योजना से मुंह फेर रही हैं. देखने में कार्यक्रम बहुत जोरदार जान पड़ता है लेकिन इसका क्रियान्वयन एकदम ही संतोषजनक नहीं है. बीजेपी घोषणा करने, नाम बदलने और योजनाओं को नए नाम देने में खूब आगे है लेकिन क्रियान्वन के मोर्चे पर मामला एकदम सिफर (जीरो) है. लोगों को हाथ में हासिल कुछ भी नहीं हो रहा.

सवाल: अजमेर की जगह, जो आपकी परंपरागत सीट है, टोंक से चुनाव लड़ने के बारे में आप क्या सोचते हैं? राहुल गांधी अगर आपसे पूछें तो राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते आप मुख्यमंत्री के रूप में किसका नाम सुझाएंगे?

सचिन पायलट: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा है और मैंने फैसला पार्टी पर छोड़ दिया है. कांग्रेस को लगेगा कि अमुक जगह से चुनाव लड़ना सबसे ज्यादा फायदेमंद रहेगा तो मैं वहीं से चुनाव लड़ूंगा. मैंने राजी-खुशी फैसले को स्वीकार किया. नतीजों में एक बार हमें बहुमत मिल जाए तो फिर विधायक और कांग्रेस पार्टी मिलकर तय करेंगे कि सत्ता की बागडोर कौन संभाले. तरीका तो यही है. हम मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित नहीं करते. हम चुनाव लड़ते हैं, बहुमत हासिल करते हैं और निर्वाचित होकर विधायक अपना नेता चुन लेते हैं. पहले से ही मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का नाम बताकर चलना कांग्रेस की रीत नहीं है.

सवाल: आप कहते हैं कि बीते कुछ वर्षों में आपने सूबे में पार्टी का निर्माण किया है और इसी का नतीजा है कि पार्टी को हाल के उप-चुनावों में जीत हासिल हुई. आपने ऐसा किस तरह किया और यह रणनीति अब किस तरह कारगर होगी?

सचिन पायलट: पार्टी ने पिछले सालों से लगातार प्रयास किया है. हमारे सभी नेताओं ने योगदान दिया है. हमलोग 5 साल से अभियान चला रहे हैं. प्रकाश जावेड़कर, अमित शाह और मोदी साहब की नजर तो हाल-फिलहाल राजस्थान पर गई है. जब प्राकृतिक आपदा घेरती है, दंगे होते हैं, बलात्कार और हत्या की घटनाएं पेश आती हैं, भीड़ लोगों की पीट-पीटकर जान ले लेती है, उस घड़ी तो शायद इन नेताओं को राजस्थान की फिक्र नहीं सताती. यह वरिष्ठ नेता बीते 5 वर्षों के दरम्यान कहां थे? अब चुनाव सिर पर है तो सभी वोट मांगने के लिए चले आ रहे हैं. सूबे में पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते मैंने पहले दिन से अभियान चलाया है. मैंने सत्ताविरोधी लहर के चलने का इंतजार नहीं किया क्योंकि वह कोई मुंहमांगी मुराद नहीं बल्कि जनता की उकताहट का इजहार है.

मैं अपना चुनाव-प्रचार और मुहावरा नकारात्मकता की बुनियाद पर नहीं चला सकता. लोगों के दिल-दिमाग में जगह बनाने का काम 6 महीने में नहीं होता, ज्यादा वक्त लगता है, त्याग करना होता है. हमारी गिरफ्तारी हुई, लाठीचार्ज हुआ, हमने धरना किया, रैली और पदयात्रा निकाली. वो सारा कुछ किया जो किसानों और नौजवानों के आंदोलन को जारी रख सके और इस तरह हम बीजेपी की ताकत से भिड़े रहे. बहुमत में होने के बावजूद बीजेपी वैसा नहीं कर सकी जैसा उसने सोच रखा था.

सवाल: हनुमान बेनीवाल और घनश्याम तिवाड़ी का तीसरा मोर्चा कांग्रेस के कुल वोट शेयर पर कुछ असर डाल पायेगा, आपको क्या लगता है?

सचिन पायलट: राजस्थान में राजनीति द्विध्रुवीय रही है. हर चुनाव में एक-दो पार्टियां और कुछ निर्दलीय आ खड़े होते हैं लेकिन मुकाबला मुख्य रुप से बीजेपी और कांग्रेस के बीच रहता है. मुझे नहीं लगता इस बार के चुनाव में इस परिपाटी से कुछ अलग हटकर होगा. छोटी पार्टियां होती ही हैं और उनका अपना मुकाम होता है. मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच होना है और मुझे नहीं लगता कि कोई तीसरा, चौथा, पांचवां मोर्चे की इस तस्वीर में कोई जगह है और चुनाव के नतीजों पर उसका कोई असर होने जा रहा है. हां, ऐसे मोर्चे को खबरों में जगह मिल सकती है, वो अपने चुस्त जुमलों के सहारे समाचारों में बेशक मौजूदगी जता सकते हैं लेकिन प्रदेश के लोग जानते हैं कि जीत कांग्रेस की होने जा रही है. राजस्थान के वोटर बहुत समझदार हैं, वो अपना वोट धर्म या जाति या फिर किसी मोर्चे के नाम पर बर्बाद नहीं करने वाले. यह छोटी पार्टियां चुनाव के बस एक माह पहले सर उठाती हैं- इनका न तो कोई अजेंडा होता है ना ही कोई इतिहास और भविष्य.

(जयपुर निवासी रंगोली अग्रवाल स्वतंत्र लेखन करती हैं और जमीनी स्तर के संवाददाताओं के अखिल भारतीय नेटवर्क 101Reporters.com की सदस्य हैं)