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राजस्थान चुनाव 2018: मैदान-ए-जंग से लेकर चुनावी रण तक दिखी राजस्थान की सियासत में रियासतों की ठाठ

राजस्थान में सियासी पारा ऊफान पर है. हर बार सत्ता परिर्वतन के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्थान में रियासतों की सियासत इस बार क्या करवट लेती है, इस पर निगाहें टिकना लाजमी है.

Himanshu Kothari

राजस्थान की मिट्टी में रियासतों का जलवा सदियों से देखा गया है. आजादी से पहले जहां इन रियासतों के राजा-महाराजा मैदान-ए-जंग में दुश्मन से लोहा लेने के लिए तैयार रहते थे तो वहीं अपनी शाही शान लिए आजादी के बाद चुनावी जंग में भी इन राजाओं के राजघराने अपनी पहचान छोड़ने लगे. राजस्थान की राजनीति में राजघरानों ने भी अपनी छाप छोड़ी है. राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में अगर कोई राजघराना किसी खास राजनीतिक पार्टी या नेता को अपना समर्थन देता है तो उसकी जीत काफी हद तक पक्की मान ली जाती है.

राजस्थान की राजनीति के इस रण में रियासतों से भी कई बड़े चेहरे सामने आए हैं जो सियासत में भी अपनी पहचान बना चुके हैं. वहीं अगर कोई राजघराना किसी पार्टी से मुंह फेर लेता है तो उसके वोट कटने भी तय मान लिए जाते हैं. हालांकि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि राजस्थान के राजघरानों ने लहर के हिसाब से अपनी चाल भी बदली है. जिससे किसी को नफा तो किसी को नुकसान भी हुआ है. ऐसे में राजस्थान के चुनावी रण में इन राजघरानों पर भी गौर फरमाना जायज लगता है.


धौलपुर राजघराना

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया धौलपुर राजघराने की बहू हैं. ऐसे में इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि धौलपुर राजघराने का भारतीय जनता पार्टी को किस कदर समर्थन हासिल है. वसुंधरा राजे बीजेपी की तरफ से दो बार मुख्यमंत्री पद हासिल कर चुकी हैं. झालरापाटन से मौजूदा विधायक वसुंधरा राजे झालावाड़ से पांच बार सांसद भी रह चुकी हैं. साल 1984 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजे को शामिल किया गया था. इसके साथ ही धौलपुर राजघराने की वसुंधरा का राजस्थान की राजनीति में कद इतना बड़ा है कि उनके इशारे के बिना राजस्थान में पत्ता तक नहीं हिलता है. वहीं धौलपुर राजघराने से ही वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह भी लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए धौलपुर राजघराना वोटबैंक के लिहाज से काफी अहम माना जाता है.

जोधपुर राजघराना

जोधपुर राजघराने के पूर्व नरेश गज सिंह के भारतीय जनता पार्टी के साथ काफी अच्छे संबंध थे. हालांकि उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा. वो हमेशा बीजेपी का समर्थन करते और उनके नेताओं के लिए वोट जुटाते. लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, बीजेपी के लिए वोट जुटाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन मामला तब गड़बड़ा गया जब साल 2009 के लोकसभा चुनाव में गज सिंह की बहन चन्द्रेश कुमारी को कांग्रेस ने टिकट दे दिया. अपनी बहन की जीत के लिए नरेश सिंह ने जमकर प्रचार किया और वोट मांगे. उनका प्रचार रंग भी लाया और उनकी बहन ने चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री पद भी सौंपा.

जयपुर राजघराना

जयपुर के राजघराने ने हर बार अपनी हवा बदली है. इस राजघराने ने कभी कांग्रेस के लिए वोट मांगे तो कभी बीजेपी के लिए वोट बैंक बनाने की कवायद की. अगर इतिहास पर गौर किया जाए तो ऐसा कहा जा सकता है कि किसी एक पार्टी के लिए जयपुर राजघराने की आस्था बिल्कुल भी नहीं रही है.

तस्वीर: न्यूज़18

जयपुर राजघराने की पूर्व राजमाता गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी से सांसद रह चुकी हैं. वहीं उनके बेटे और जयपुर राजघराने के पूर्व महाराजा कर्नल भवानी सिंह ने 1989 में कांग्रेस का टिकट हासिल किया और चुनाव लड़ा. हालांकि कर्नल भवानी सिंह इस चुनाव में कांग्रेस के लिए वोट नहीं ले पाए और चुनाव में उनको शिकस्त का सामना करना पड़ा था. वहीं उनकी बेटी दिया कुमारी ने बीजेपी के लिए वोट मांगे और सवाई माधोपुर सीट से बीजेपी की विधायक बनीं.

भरतपुर राजघराना

राजस्थान में चुनाव हो और भरतपुर राजघराने को नजरअंदाज किया जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता है. जाट वोट जुटाने के लिए भरतपुर राजघराना काफी अहम माना जाता है. एक वक्त था जब बीजेपी के लिए इस राजघराने के जरिए वोट मांगे जाते थे. तब इस राजघराने से ताल्लुक रखने वाले विश्वेंद्र सिंह जनता दल के टिकट पर 1989 और साल 1999 और 2004 में बीजेपी के टिकट पर भरतपुर से सांसद रह चुके हैं. लेकिन अब विश्वेंद्र सिंह कांग्रेस विधायक हैं. वे डीग-कुम्हेर विधानसभा सीट से कांग्रेस पार्टी से विधायक के तौर पर चुने गए थे. वहीं उनके चाचा मानसिंह भी विधायक रह चुके हैं. भरतपुर राजघराना से ही मानसिंह की बेटी कृष्णेन्द्र कौर दीपा वर्तमान में राज्य में बीजेपी विधायक हैं और वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री हैं.

अलवर राजघराना

राजस्थान के राजघरानों में अलवर राजघराना भी राजनीति में अपना रंग दिखा चुका है. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए इस राजघराने के काफी मायने रहे हैं. इस राजघराने से समय-समय पर दोनों पार्टियों के लिए वोट बटोरे हैं. लेकिन अब कांग्रेस के लिए अलवर राजघराना काफी अहम बन चुका है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खास माने जाने वाले भंवर जितेन्द्र सिंह अलवर राजघराने से ही आते हैं. भंवर जितेन्द्र सिंह कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिव का पद रखते हैं. अलवर राजघराना के भंवर जितेन्द्र सिंह का पूरे अलवर जिले में खासा प्रभाव माना जाता है. वहीं मनमोहन सिंह सरकार में भंवर जितेन्द्र सिंह मंत्री पद भी संभाल चुके हैं. पिछले कुछ राजस्थान विधानसभा चुनाव पर गौर किया जाए तो मालूम होगा कि अलवर जिले में चुनावी जीत-हार तय करने में भंवर जितेन्द्र सिंह का काफी महत्व देखा गया है. वहीं उनकी मां महेन्द्र कुमारी साल 1991 में बीजेपी के टिकट पर चुनावी रण में उतर चुकी हैं. इसके बाद 1998 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 1999 में कांग्रेस का हाथ थाम कर उन्होंने चुनाव लड़ा. लेकिन दोनों बार उनको हार का मुंह देखना पड़ा था.

राजस्थान में सियासी पारा ऊफान पर है. हर बार सत्ता परिवर्तन के तौर पर पहचाने जाने वाले राजस्थान में रियासतों की सियासत इस बार क्या करवट लेती है, इस पर निगाहें टिकना लाजमी है.