view all

सीपी जोशी का सुसाइडल ब्राह्मणवाद: कांग्रेस कैसे करेगी भरपाई?

पिछले कई चुनावों में कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इतना बड़बोलापन दिखाया है जिसका फायदा बीजेपी ने आसानी से उठाया है

Mahendra Saini

आज से करीब एक हजार साल पहले महमूद गजनवी के साथ अलबरुनी नाम का एक विद्वान भारत आया था. ये गजनवी के साथ वापस नहीं लौटा. ये भारतीय दर्शन, अध्यात्म और विज्ञान को पढ़ने के लिए यही रुक गया. बाद में अपने पूरे अनुभव को अलबरुनी ने तहकीक-ए-हिंद नाम की क़िताब में उतारा. इस क़िताब में बताया कि क्यों उसे संस्कृत सीखने को मजबूर होना पड़ा जबकि दर्शन, अध्यात्म और विज्ञान की जानकारी तो वह किसी भारतीय विद्वान से भी ले सकता था.

अलबरुनी ने लिखा- भारत में ब्राह्मण ये भ्रम पाले हुए हैं कि उनके जैसा ज्ञानी दुनिया में कोई नहीं, उनके जैसा दर्शन दुनिया में किसी के पास नहीं और उनके जैसा राजा भी दुनिया में कहीं नहीं. अलबरुनी के शब्दों में- हैरानी की बात ये है कि ये लोग भारत के इस महान ज्ञान को अपने गैर-ब्राह्मण भाई-बहनों से भी छिपा कर रखते हैं. न उन्हें पढ़ने देते हैं और न ही उन्हें वाद-विवाद का अधिकार है. अगर कोई विदेशी इनसे ज्ञान-विज्ञान पर बहस करना चाहे तो ये अपनी महानता की पुरानी पड़ चुकी कहानियां सुनाने लगते हैं.


ये भी पढ़ें: 'राजीव गांधी ने ही ताले खुलवाए थे और कांग्रेस का प्रधानमंत्री ही राम मंदिर बनवाएगा'

क्या ज्ञान पर ब्राह्मणों का एकाधिकार है? क्या कोई गैर-ब्राह्मण विद्वान नहीं हो सकता? क्या किसी गैर ब्राह्मण विशेषकर पिछड़ी जातियों को धर्म पर बात करने का कोई अधिकार नहीं है? अलबरुनी के एक हजार साल बाद ये सवाल एक बार फिर उठ खड़े हुए हैं. भगवान श्रीनाथ जी के शहर नाथद्वारा से चुनाव लड़ रहे 'ब्राह्मण' सी पी जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा की जातियों (तीनों ही पिछड़े वर्ग से हैं) पर सवाल उठाते हुए उन्हें हिंदू धर्म पर बात करने का अधिकार न होने का दावा किया है.

बयान से उठा बवाल, थमना आसान नहीं

श्रम विभाजन के लिए बनी वर्ण व्यवस्था ने जब जाति का कठोर रूप लिया तो भारतीय समाज का पतन शुरू हो गया था. गैर-ब्राह्मणों विशेषकर शूद्रों के साथ इतिहास में कैसा व्यवहार किया गया, ये ह्येनसांग, सुलेमान और मार्को पोलो जैसे चीनी, अरबी और यूरोपीयन यात्रियों ने अपनी क़िताबों में लिखा है. हम इसकी तह में नहीं जाकर फिलहाल जोशी के बयान और इसके सियासी नफे-नुकसान का विश्लेषण करेंगे.

कांग्रेस में ऐसे बयान बहादुरों की कोई कमी नहीं है. पिछले कई चुनावों में कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इतना बड़बोलापन दिखाया है जिसका फायदा बीजेपी ने आसानी से उठाया है. इस बार भी सी.पी जोशी के इस बयान को बीजेपी ने पिछड़े वर्गों को नीचा दिखाने वाला ठहराया है. राज्य से लेकर केंद्रीय नेताओं तक ने इसे हाथों-हाथ लपका है. बीजेपी ने पूछा है कि क्या आज भी कांग्रेस में वही 'ब्राह्मणवादी' सोच कायम है, जिसका विरोध खुद डॉ भीम राव अंबेडकर और महात्मा गांधी भी ताउम्र करते रहे.

हालांकि चौतरफा आलोचना के बाद कांग्रेस नेता सी पी जोशी ने अपने बयान पर खेद जता दिया है. राहुल गांधी और अशोक गहलोत जैसे नेताओं ने हालात संभालने की कोशिश की है. खुद अशोक गहलोत ने कहा कि पुराने नुकसानों को देखते हुए एक महीने पहले ही राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं को विवादास्पद बयान न देने को ताकीद किया था. लेकिन हालात ढाक के वही तीन पात ही दिखते हैं. कुछ दिन पहले सी पी जोशी ने ही राम मंदिर को लेकर बयान दिया था. राज बब्बर ने प्रधानमंत्री की मां को लेकर विवादास्पद बयान दिया है. कमलनाथ के विवादास्पद वीडियो पहले ही वायरल हैं.

राजस्थान में कांग्रेस आसान जीत की ओर बढ़ रही थी. ये जीत इतनी तय लग रही थी कि पार्टी ने गठबंधन के लिए बीएसपी तक को इनकार कर दिया. कांग्रेस नेताओं को लग रहा था कि बिना मायावती को करीब लाए ही एससी वोट उन्हें मिल जाएंगे. लेकिन अब बीजेपी को जैसे तिनके का सहारा मिल गया है तो वह पूरे प्रचार के दौरान जोशी के ब्राह्मणवाद को हवा देने में क्यों पीछे रहेगी. पार्टी पिछड़ों को ये बयान बार-बार वैसे ही याद दिलाती रहेगी जैसे गुजरात में मणिशंकर अय्यर के 'नीच जाति' के बयान को या बिहार में प्रधानमंत्री के डीएनए वाले बयान को याद दिला कर बाजी पलटी गई.

राजस्थान में क्या है जातियों का गणित ?

सी.पी जोशी ब्राह्मण हैं और नाथद्वारा विधानसभा क्षेत्र में जहां उन्होने ये भाषण दिया, हो सकता है उन्होने वहां ब्राह्मण वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की हो. क्योंकि ब्राह्मण आमतौर पर बीजेपी के कोर वोटर माने जाते हैं. लेकिन उन्हें ये भी ध्यान रखना चाहिए था कि सिर्फ ब्राह्मण वोटों के भरोसे न उनकी जीत सुनिश्चित हो सकती है और न ही कांग्रेस पार्टी ही इस तरह से 'समझदार' लोगों को अपने खेमे में ला सकती है.

ये भी पढ़ें: सत्ता छिनने के बाद कांग्रेस को याद आए राम, क्या साल 2019 में राम-भरोसे चुनाव लड़ेंगे राहुल?

मोटे तौर पर राजस्थान में माना जाता है कि ब्राह्मण वोट करीब 4 से 5 फीसदी हैं. कुल सवर्ण वोट करीब 15 फीसदी हैं. अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाता करीब 31 फीसदी हैं. जिन नेताओं की जातियों पर जोशी ने सवाल उठाया है, उनका वर्ग यानी ओबीसी की संख्या करीब 54 फीसदी है. ज्यादातर ओबीसी जातियां पहले ही कांग्रेस से दूर जा चुकी हैं. इन्हे अपने पाले में लाने के लिए ही कांग्रेस, राहुल पर जनेऊधारी ब्राह्मण से लेकर कैलाश-मानसरोवर की यात्रा तक के प्रयोग कर रही है. पर ऐसा एक बयान ही महीनों की मेहनत पर पानी फेरने के लिए काफी है.

2014 में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बड़े वर्ग ने बीजेपी का समर्थन किया था. हालांकि इसके बाद से ही विपक्षी दल इन वर्गों को बीजेपी से दूर करने की कोशिशें कर रहे हैं. कुछ कामयाबी मिलती भी नजर आ रही है. राजस्थान में ही दमित वर्गों को ये समझाने की कोशिशें हो रही हैं कि सामाजिक न्याय और समता की स्थापना बीजेपी नहीं कर सकती. इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ब्राह्मणवादी नेतृत्व की मिसाल दी जाती है. लेकिन सी पी जोशी का ये कहना सुसाइडल गोल ही कहा जाएगा कि 50 साल में आरक्षण के बूते पिछड़े लोग खुद में ब्राह्मणों जितनी बुद्धि होने का भ्रम न पालें.

अब आगे क्या?

कांग्रेस हमेशा से ही बीजेपी पर सांप्रदायिकता फैलाने और ध्रुवीकरण के आरोप भी लगाती रही है. लेकिन 2014 में हिंदू ध्रुवीकरण के बीजेपी के सफल प्रयोग के बाद कांग्रेस भी अब सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर है. खुद सी.पी जोशी ने भी अपने विवादास्पद बयान की शुरुआत में लोगों को जताने की कोशिश की कि वे सुबह से कितने मंदिरों में 'धोक' दे चुके हैं. कांग्रेस को अब ये साफ करने की जरूरत है कि उसका नया स्टैंड सांप्रदायिक राजनीति से कितना दूर है.

यूनानी दार्शनिक सुकरात ने ज्ञान को ही एकमात्र सद्गुण माना था. वे कहते थे कि ज्ञान जन्मजात नहीं होता. यानी ज्ञान, धर्म या नीति को कोई भी सीख सकता है. इस पर ब्राह्मणों का एकाधिकार नहीं हो सकता. न ही किसी भी गैर ब्राह्मण शख्स में ब्राह्मणों के मुकाबले कम दिमाग होना कहीं प्रमाणित हुआ है. 7 दिसंबर वोटिंग का दिन है और अब देखने वाली बात होगी कि जोशी के बयान से हुए नुकसान की कांग्रेस अगले 13 दिन में कितनी भरपाई कर पाती है.