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राजस्थान चुनाव: सरदारपुरा के ‘सरदार’ हैं गहलोत, 20 साल से जादू बरकरार

अगर कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीत लेती है और सीएम पद के लिए गहलोत का नाम पक्का हो जाता है तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि गहलोत खास मौकों पर जादू करना जानते हैं

Kinshuk Praval

राजस्थान के विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस कोई नया प्रयोग नहीं करना चाहती है. वो नहीं चाहती है कि जिस तरह राजस्थान में सीपी जोशी के एक वोट से चुनाव हार कर मुख्यमंत्री की रेस से भी बाहर हो गए, उसी तरह इस बार राजस्थान में सरकार बनाने को लेकर मिला सुनहरा मौका किसी भी वजह से हाथ से निकल जाए. कांग्रेस को राजस्थान का रण जीतने के लिए सबका साथ चाहिए. इसी वजह से राजस्थान में कांग्रेस के जादूगर अशोक गहलोत एक बार फिर सरदारपुरा सीट से चुनाव मैदान में हैं.

सरदारपुरा की सीट पर अशोक गहलोत का जादू ही कुछ ऐसा है कि उनके सामने आने से बीजेपी के उम्मीदवारों की ताकत घट कर आधी रह जाती है. पिछले चार विधानसभा चुनावों से बीजेपी सरदारपुरा सीट से हारती आई है.


सरदारपुरा की सीट को गहलोत की पारंपरिक सीट माना जाता है. अशोक गहलोत सरदारपुरा सीट से लगातार 4 चुनाव जीतते आ रहे हैं. साल 1998 के चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में बहुमत मिला था. उस वक्त अशोक गहलोत ने चुनाव नहीं लड़ा था. मानसिंह देवड़ा ने सरदारपुरा की सीट गहलोत के लिए खाली की थी जिसके बाद गहलोत ने बीजेपी के मेघराज लोहिया को उपचुनाव में सरदारपुरा सीट से हराया था. अशोक गहलोत तब से लगातार साल 2003, 2008 और 2013 में चुनाव जीतते आ रहे हैं.

गहलोत राज्य के दो बार सीएम रह चुके हैं. सरदारपुरा सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके गहलोत इस बार भी अपनी जीत को लेकर आशान्वित होंगे क्योंकि साल 2013 में मोदी लहर में वो अकेले ही थे, जिन्होंने सरदारपुरा से चुनाव जीता था जबकि जिले में दूसरी सीटों से कांग्रेसी उम्मीदवार चुनाव हार चुके थे. उन्हें सरदारपुरा सीट से माली समाज का समर्थन हासिल है.

अशोक गहलोत को चुनाव लड़ाने के लिए सियासी मायने बहुत हैं. काफी समय से अशोक गहलोत के चुनाव लड़ने पर सस्पेंस था. अब गहलोत और पायलट के चुनाव मैदान में उतरने से जहां कार्यकर्ताओं में उत्साह है तो वहीं सियासी गलियारे में सवाल ये है कि अगर कांग्रेस चुनाव जीतती है तो सीएम कौन बनेगा?

सीएम पद के लिए गहलोत का इतिहास दावेदारी करता है. राजस्थान में अशोक गहलोत कांग्रेस के व्यापक जनाधार वाले नेता हैं. गांधी परिवार से कई दशकों की नजदीकी के अलावा वरिष्ठता और अनुभव के मामले में राजस्थान में कांग्रेस के पास उनसे बड़ा नेता नहीं है. गहलोत अकेले ऐसे नेता हैं जो कि पूर्व में इंदिरा गांधी सरकार से लेकर राजीव गांधी कैबिनेट और नरसिम्हा राव सरकार में जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.

साल 1980 में जोधपुर से अशोक गहलोत पहली दफे लोकसभा का चुनाव जीते. लेकिन उनकी राजनीतिक दूरदर्शिता और काबिलियत को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहचाना था. तत्कालीन केंद्र की इंदिरा सरकार में अशोक गहलोत को कैबिनेट में उप मंत्री का पद मिला जो कि शानदार शुरुआत मानी जा सकती है. इसके बाद अशोक गहलोत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनके सियासी करियर का ग्राफ तबसे लगातार बढ़ता ही रहा है.

साल 1982 में वो केंद्र सरकार में पर्यटन उप मंत्री थे तो 1991 में नरसिम्हा राव सरकार में कपड़ा राज्यमंत्री थे. वो पहली बार 1985 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो उसके बाद दोबारा 1994 और फिर 1997 में अध्यक्ष बने. साल 1998 में पहली बार उन्हें राजस्थान का सीएम बनने का मौका मिला. गहलोत की जादूगरी का इससे बड़ा उदाहरण कोई दूसरा नहीं हो सकता कि बिना चुनाव लड़े उनके पास सीएम पद आया. इसी पद की वजह से उनका सरदारपुरा की सीट से उपचुनाव के जरिए नाता जुड़ा और फिर मतदाताओं का भरोसा इतना पक्का हुआ कि ये सीट गहलोत के नाम ही हो गई.

उनके इस राजनीतिक उत्थान से गांधी परिवार के प्रति उनकी निष्ठा, वफादारी और नजदीकी को समझा जा सकता है. राज्य की जिम्मेदारी के अलावा उन्हें कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव पद की भी जिम्मेदारी मिली. आज वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ साए की तरह नजर आते हैं. गुजरात विधानसभा चुनाव में गहलोत के जादुई मंतर राहुल अपनी  रैलियों में फूंकते नजर आए हैं. गहलोत की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट की तमाम कोशिशों के बावजूद गहलोत को टिकट दिया गया.

अगर कांग्रेस विधानसभा चुनाव जीत लेती है और सीएम पद के लिए गहलोत का नाम पक्का हो जाता है तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि गहलोत खास मौकों पर जादू करना जानते हैं. इसलिए नहीं कि उनके पिता जादूगर थे बल्कि इसलिए कि गहलोत खुद भी जादूगर हैं और इस बार भी उनका जादू चलता दिखाई दे रहा है.