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राहुल के मंदिर दर्शन का फायदा कांग्रेस को हुआ है, देखते जाइए अभी भक्ति और बढ़ेगी

2019 के चुनाव की सरगर्मी जैसे-जैसे बढ़ेगी राहुल गांधी की मंदिर दौड़ और तेज हो सकती है

Arun Tiwari

अमेरिका के 18वें राष्ट्रपति यूलिसिस एस ग्रांट ने विरोधियों पर जीत हासिल करने के लिए नायाब बात कही थी. ग्रांट राष्ट्रपति बनने से पहले सेना में बड़े अधिकारी थे सो वो ये जानते थे कि विरोधी युद्धक्षेत्र में हो राजनीति में, उनसे निपटना कैसे है. ग्रांट ने कहा है, ‘युद्ध की कला बेहद सरल है. पहले ये जान लीजिए कि आपका विरोधी कहां पर है. उसे जल्द से जल्द खोज निकालिए. उसके नजदीक पहुंचिए और उस पर सर्वाधिक ताकत के साथ प्रहार करिए. और फिर आगे बढ़ते रहिए.’

ब्राह्मण नहीं जनेऊधारी ब्राह्मण


गुजरात चुनाव वो पहली शै थी जहां राहुल गांधी को ए.के.एंटनी की वो बहुचर्चित रिपोर्ट शिद्दत से याद आई जिसमें उन्होंने लिखा था-हमारी हार में मुस्लिमों की तरफ झुकाव बड़ा कारण है. जैसे लगा कि 2014 में लिखी गई वो रिपोर्ट राहुल गांधी के कानों में 2017 के आखिरी में आकर गूंजंने लगी थी. मीडिया में राहुल की खूब आलोचना भी हुई कि वो एक पुरातन सेकुलर पार्टी के नेता हैं और मंदिर दर्शन खूब कर रहे हैं. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान गुजरात में राहुल गांधी ने करीब 27 मंदिरों के दर्शन किए.

सिर्फ मंदिर दर्शन ही नहीं पूरी पार्टी तरफ से राहुल गांधी को धार्मिक व्यक्ति साबित करने की मुहिम सी चली. सोमनाथ मंदिर में हुए एक विवाद पर पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने जोर देकर राहुल गांधी को महज ब्राह्मण नहीं बल्कि जनेऊधारी ब्राह्मण बताया. राहुल गांधी की तरफ से भी इस बात पर कोई विरोध नहीं दर्ज कराया गया. इसका मतलब साफ था कि राहुल गांधी रणदीप सुरजेवाला के स्टेटमेंट को एंडोर्स कर रहे थे और चाहते थे कि ये जनता के बीच फैले. ऐसा क्यों? ऐसा इस वजह से क्योंकि राहुल गांधी भी अपनी वही छवि बनाना चाह रहे थे. वो जनता के बीच मैसेज देना चाहते थे कि उनकी पार्टी का मुस्लिम तुष्टिकरण के तमगे से कुछ लेना-देना नहीं है.

कांग्रेस इससे फायदे में ही रही है

राहुल के इस नए अवतार के फायदे-नुकसान गिनने बैठा जाए तो साफ नजर आएगा कि मंदिर दर्शन की इस नई जुगत ने कांग्रेस को फायदे में ही रखा है. जिस गुजरात में कांग्रेस सालों से पिछड़ी नजर आ रही थी वहां 77 सीटें हासिल कर न सिर्फ सदन में अपनी स्थिति मजबूत करवाई बल्कि बीजेपी को एक मैसेज भी दिया कि सुराग तो आसमां में भी हो सकता है. बीजेपी बहुमत तक तो पहुंच गई लेकिन नरेंद्र मोदी के पीएम रहते जो उम्मीद राज्य की जनता से बीजेपी कर रही थी उसके मुताबिक सीटें उसे नहीं मिलीं.

मतलब जो कांग्रेस पार्टी गुजरात चुनाव के पहले यूपी विधानसभा चुनावों से बिल्कुल गिरे हुए मनोबल के साथ निकली थी उसे गुजरात के चुनाव में सदन में ताकत और मनोबल की संजीवनी मिली. कांग्रेस की इन बढ़ी हुई सीटों में मंदिर जाने का क्या योगदान हो सकता है इसे ऐसे समझिए कि गुजरात देश के उन प्रांतों में है जिसे बेहद आस्थावान प्रदेश के तौर पर जाना जाता है. भगवान सोमनाथ से लेकर द्वारकाधीश कृष्ण की नगरी में राहुल गांधी ने अपनी स्थिति उसी धार्मिक कार्ड के जरिए मजबूत की जैसे बीजेपी ने 1990 के दशक की शुरुआत में वहां की थी. गुजरात चुनाव के बाद कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी खूब मठों में गए थे. वहां पार्टी एंटी इंकंबैंसी से जूझ रही थी लेकिन दोबारा सरकार कांग्रेस की ही बनी भले ही गठबंधन वाली.

बीजेपी को तिलमिलाहट क्यों है?

अब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी का प्रचार अभियान पूरी धार्मिकता के साथ जारी है. लेकिन राहुल के मंदिर दर्शन पर सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया कहां से आती है, ये भी देखना मजेदार है. ऐसा किसी भी सो कॉल्ड सेकुलर पार्टी की तरफ से नहीं बल्कि बीजेपी की तरफ से किया जाता है. राहुल गांधी किसी मंदिर के दर्शन पर जाएं और बीजेपी की तरफ से प्रतिक्रिया न आए, ऐसा सामान्य तौर पर नहीं होता. प्रतिक्रिया भी बेहद तीखी होती है. कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस तक भी मामला पहुंचा है. आखिर राहुल गांधी के मंदिर दर्शन से बीजेपी में इतनी तिलमिलाहट जैसी प्रतिक्रिया क्यों होती है?

अमेरिकी राष्ट्रपति के ऊपर दिए गए कथन में ये बात बिल्कुल साफ है. दरअसल जब आप वो जगह खोज निकालते हैं जहां विरोधी छिपा बैठा है तो उससे निपटना आसान होता है. बीजेपी जिस धार्मिक कार्ड के जरिए जनता तक अपनी पैठ बना रही थी, राहुल गांधी ने ठीक वही रास्ता अख्तियार कर लिया है.

धार्मिक दिखने में कोई हिचकिचाहट नहीं

दरअसल, पूरा मामला वोटबैंक का है. राहुल गांधी जैसे-जैसे अपनी पार्टी की इमेज से 'मुस्लिमपरस्त' होने का तमगा हटाने की कोशिश कर रहे हैं वैसे-वैसे बीजेपी की तरफ से कड़ी प्रतिक्रियाएं आती हैं. बीजेपी को भी मालूम है कि अगर लोगों को धार्मिक कांग्रेस और बीजेपी में से चुनना होगा तो वो किस तरफ जाएंगे. हाल ही में जब राहुल गांधी मानसरोवर यात्रा पर गए और अपनी तस्वीर ट्वीट की तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एक हास्यास्पद ट्वीट किया. उन्होंने लिखा कि राहुल गांधी ने जो हाथ में डंडा ले रखा है कि उसकी परछाई तस्वीर में नहीं दिखाई दे रही है. इसका मतलब है ये तस्वीर फोटोशॉप है. किसी केंद्रीय मंत्री के स्तर के नेता क्या लोग ऐसी उम्मीद करते हैं? शायद नहीं. लेकिन ऐसा हुआ और राहुल गांधी ने कोई प्रतिक्रिया भी नहीं दी.

धार्मिक दिखने में राहुल गांधी को अब को कोई हिचक नहीं बल्कि इसे वो मजबूत ढंग से जनता के बीच फैलाना चाहते हैं. ये पूरे सोचे-समझे तरीके से किया जा रहा है. जरूर पार्टी के भीतर का एक तबका है जो मानता है कि ऐसा करने से उन्हें लाभ होगा और राहुल गांधी उनकी बातों को मान भी रहे हैं. गुजरात और कर्नाटक चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो मंदिर दर्शन ने कांग्रेस को फायदा भी पहुंचाया है. 2019 के चुनाव की सरगर्मी जैसे-जैसे बढ़ेगी राहुल गांधी की मंदिर दौड़ और तेज हो सकती है.