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कुर्सी पर दावा छोड़कर राहुल गांधी को PM की आलोचना सकारात्मक रूप से लेनी चाहिए

अगर वाकई राहुल गांधी देश के लिए फिक्रमंद हैं, तो उन्हें निजी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. अगर हमेशा के लिए नहीं, तो कम से कम सिर्फ इस चुनाव के लिए

Aakar Patel

हमारे प्रधानमंत्री की जबरदस्त खूबियों में से एक यह भी है कि वो किस तरह से किसी तर्क को गढ़ लेते हैं. जब वो कोई साधारण विषय भी चुनते हैं तो कुछ नया और यकीनी बना देते हैं. इस हफ्ते उन्होंने कांग्रेस के इस दावे का जवाब दिया कि जवाहर लाल नेहरू की बनाई व्यवस्था के कारण ही वो प्रधानमंत्री बने.

अपनी प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें चुनौती देता हूं... गांधी परिवार के बाहर से कांग्रेस के किसी अच्छे नेता को केवल 5 साल के लिए पार्टी अध्यक्ष बनने दें, फिर मैं मान लूंगा कि नेहरूजी ने वास्तव में लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाई है.'


इसका एक जवाब यह है कि, एक गैर-गांधी शख्स जो 5 साल अध्यक्ष था, वो पीवी नरसिम्हा राव थे जो भारत के 9वें प्रधानमंत्री भी बने. और उसके बाद, भले ही एक छोटी अवधि के लिए सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने.

कांग्रेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह है, जहां सभी शेयर एक ही परिवार के पास 

लेकिन वास्तविक मुद्दा यह है कि नरेंद्र मोदी ने सही बात कही है, कांग्रेस एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह है, जहां सभी शेयर एक ही परिवार के पास हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी की तरह है जहां शेयर लोगों के एक बड़े समूह के बीच बंटे हैं, और जहां पारिवारिक संबंधों की तुलना में योग्यता अधिक महत्वपूर्ण है.

अगर आप गांधी हैं तो आप कई बार नाकाम होने के बाद भी कांग्रेस के मुखिया बने रह सकते हैं. उस पर कामयाबी हासिल करने का कोई दबाव नहीं है. दूसरी तरफ, अगर मोदी 2019 में अपनी पार्टी को निर्णायक जीत नहीं दिला पाते हैं, तो उन्हें तत्काल असंतोष और पार्टी के भीतर से चुनौती का सामना करना पड़ेगा. एक लोकतांत्रिक ढांचे में किसी भी ठीक-ठाक राजनीतिक दल में ऐसा ही होता है.

नरेंद्र मोदी ने हाल के अपने एक चुनावी भाषण में कांग्रेस अध्यक्ष के चयन प्रक्रिया पर तीखे सवाल उठाए थे

और इसलिए मोदी ने कांग्रेस के बारे में जो कहा है, वो सच्चाई है, और इसे खारिज नहीं किया जा सकता. सवाल यह है कि उनकी चुनौती या सलाह कांग्रेस के लिए एक पार्टी के रूप में स्वीकार करने लायक है या नहीं. मुझे लगता है कि है. और मुझे नहीं लगता कि मोदी के कहे अनुसार वैसा ही मान लेना चाहिए, जैसा कि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने को कहा है.

यहां तक कि अगर राहुल गांधी इतना भी कहते हैं कि उनका प्रधानमंत्री बनने का कोई इरादा नहीं है, तो उनकी खुद की और उनकी पार्टी की विश्वसनीयता बढ़ जाएगी. वर्तमान में आबादी के बड़े हिस्से में कांग्रेस में विश्वसनीयता की कमी है. त्याग हमारे समाज के सबसे शक्तिशाली प्रतीकों में से एक है और जो कोई भी सत्ता और संपत्ति का त्याग करता है, जैसा कि महात्मा गांधी ने किया था, वो लोगों के दिलो-दिमाग में अपने आप ऊंचा स्थान पा जाता है.

वर्ष 2004 में सोनिया गांधी अपनी छवि बदलने में कामयाब हुई थीं, जब उन्होंने बीजेपी को पराजित करने के बाद यही बात कही थी. हममें से जिन लोगों की उम्र इतनी है कि वो समय को याद कर सकें, जानते होंगे कि उस लम्हे से पहले उनकी छवि कितनी अलग थी.

हमेशा के लिए नहीं, कम से कम सिर्फ इस चुनाव के लिए छोड़ें अपनी महत्वाकांक्षा

वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष ने कई बार कहा है कि, उनकी राजनीतिक लड़ाई उस भारत को बचाने की है, जिसे हिंदुत्व बर्बाद कर रहा है. वो देश में फैलाई जा रही नफरत और हिंसा के कारण भविष्य को लेकर चिंतित हैं, और अपने देश का भला चाहते हैं. यह बात काबिल-ए-तारीफ है. लेकिन अगर वाकई देश जिस दिशा में जा रहा है, उसे लेकर राहुल फिक्रमंद हैं, तो उन्हें निजी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. अगर हमेशा के लिए नहीं, तो कम से कम सिर्फ इस चुनाव के लिए.

अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए कांग्रेस में काबिल लोगों की कोई कमी नहीं है, हालांकि, इस समय यह नामुमकिन लग सकता है, लेकिन वो चुनाव जीतने में कामयाब होंगे. वास्तव में, अगर कांग्रेस निजी महत्वाकांक्षा के बिना दूसरी पार्टियों से संपर्क करती है तो उसे गठबंधन बनाने में आसानी होगी.

अगर वो (राहुल) कहते हैं कि किसी गांधी की पद पाने में रुचि नहीं है तो उनके राष्ट्रीय मोर्चे के विचार को ठोस विश्वसनीयता मिलेगी. अगर राहुल कहते हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं तो लाखों भारतीय उन्हें जिस तरह से देखते हैं, उस नजरिए में फौरन और सकारात्मक बदलाव आ जाएगा. और इससे उनकी पार्टी को भी मदद मिलेगी, क्योंकि इससे बाहरी लोगों की हिस्सेदारी बढ़ेगी, जो पार्टी में ज्यादा समय, मेहनत और पैसा लगाने के लिए प्रेरित होंगे. यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन जाएगी और इसका दीर्घकालिक भविष्य ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा.

दिसंबर 2017 में राहुल गांधी निर्विरोध रूप से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे

मैं कोई भी बात इसलिए नहीं कह रहा क्योंकि राहुल के साथ मेरा कोई झगड़ा है. मेरी कभी उनसे मुलाकात भी नहीं है और उनमें अच्छा या महान नेता बनने की काबिलियत है. निश्चित रूप से, उन्हें जो भी पद चाहिए उसके लिए कोशिश करने का उनको अधिकार है, क्योंकि यह लोकतंत्र है. मैं जो बात कह रहा हूं वो यह है कि मोदी की कही बात पर राहुल को सकारात्मक रूप से विचार करना चाहिए. उन्हें आकलन करना चाहिए कि क्या उस चुनौती को मंजूर करने से उनके मकसद और उनकी पार्टी को मदद मिलेगी. मुझे लगता है कि ऐसा करेंगे.

गांधी परिवार ने किसी भी राजनीतिक दल के नेतृत्व से ज्यादा कुर्बानियां दी हैं

बेशक, हमें यह स्वीकार करना होगा कि गांधी परिवार ने इस देश के लिए किसी भी राजनीतिक दल के नेतृत्व से ज्यादा कुर्बानियां दी हैं. उनके दो नेताओं की हत्या कर दी गई है और परिवार के लिए राजनीति में रहने को काफी हिम्मत और मजबूत संकल्प की जरूरत थी. वो सम्मान के काबिल हैं, जो उन्हें हमेशा नहीं मिला. उन्हें मोदी जैसे लोगों के लापरवाही से बोले गए अपशब्द सुनने पड़ते हैं, जो बिना इसका ख्याल किए कि उन्होंने क्या तकलीफें झेली हैं, उन्हें निशाना बनाते हैं.

क्या उनकी प्रतिष्ठा एक और बलिदान और त्याग से बहाल की जानी चाहिए? मुझे लगता है यह होगा.